दंत क्षरण, जिसे दंत-अस्थिक्षय या छिद्र भी कहा जाता है, एक बीमारी है जिसमें जीवाण्विक प्रक्रियाएं दांत की सख्त संरचना (दन्तबल्क, दन्त-ऊतक और दंतमूल) को क्षतिग्रस्त कर देती हैं। ये ऊतक क्रमशः टूटने लगते हैं, जिससे दन्त-क्षय (छिद्र, दातों में छिद्र) उत्पन्न हो जाते हैं। दन्त-क्षय दो जीवाणुओं के कारण प्रारंभ होता है: स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स (Streptococcus mutans) और लैक्टोबैसिलस (Lactobacillus) . यदि इसका इलाज न किया गया तो, इस बीमारी के परिणामस्वरूप दर्द, दांतों की हानि, संक्रमण और चरम स्थितियों में मृत्यु तक हो सकती है।[1] वर्तमान में, दंत-क्षय पूरे विश्व में सबसे आम बीमारी बना हुआ है। दंत-क्षय के अध्ययन को क्षय-विज्ञान (Cariology) कहा जाता है।

दंत-क्षरण
वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
दंत-क्षरण से उत्पन्न ग्रीवा के क्षरण के करण दांत का विनाश. इस प्रकार के क्षरण को मूल क्षरण भी कहा जाता है।
आईसीडी-१० K02.
आईसीडी- 521.0
डिज़ीज़-डीबी 29357
मेडलाइन प्लस 001055

क्षयों की प्रस्तुति में अंतर हो सकता है; हालांकि, जोखिम कारक और विकास के चरण एक समान होते हैं। प्रारंभ में यह एक छोटे खड़ियामय क्षेत्र के रूप में प्रतीत हो सकता है, जो अंततः एक बड़े छिद्र के रूप में विकसित हो जाता है। कभी-कभी क्षय को प्रत्यक्ष रूप से देखा भी जा सकता है, हालांकि दांतों के कम दर्शनीय भागों के लिये व क्षति के विस्तार का आकलन करने के लिये इसकी पहचान की अन्य विधियों, जैसे रेडियोग्राफ, का प्रयोग किया जाता है।

दन्त-क्षय अम्ल-उत्पन्न करने वाले एक विशिष्ट प्रकार के जीवाणुओं के कारण होता है, जो कि किण्वन-योग्य कार्बोहाइड्रेट्स, जैसे सुक्रोज़ (sucrose), फ्रुक्टोज़ (fructose) और ग्लूकोज़ (glucose) की उपस्थिति में दांतों को क्षति पहुंचाते हैं।[2][3][4] दांतों की खनिज सामग्री लैक्टिक अम्ल के कारण होने वाली अम्लता-वृद्धि के प्रति संवेदनशील होती है। विशिष्ट रूप से, एक दांत (जो कि मुख्यतः खनिज से मिलकर बना होता है) में दांत व लार के बीच अखनीजीकरण (demineralization) और पुनर्खनीजीकरण (remineralization) की एक सतत प्रक्रिया चलती रहती है। जब दांत की सतह पर पीएच (pH) 5.5 से नीचे चला जाता है, तो पुनर्खनीजीकरण की तुलना में अखनीजीकरण अधिक तेज़ी से होने लगता है (जिसका अर्थ यह है कि दांत की सतह पर खनिज संरचना में शुद्ध हानि हो रही है)। इसके परिणामस्वरूप दांत का क्षरण होता है। दांत के क्षरण के विस्तार के आधार पर, दांत को पुनः उपयुक्त स्वरूप, कार्य व सौंदर्य में वापस लाने के लिये विभिन्न उपचार किये जा सकते हैं, लेकिन दांत की संरचना की बड़ी मात्रा की पुनर्प्राप्ति के लिये कोई ज्ञात विधि उपलब्ध नहीं है, हालांकि स्टेम-सेल संबंधी अनुसंधान ऐसी एक विधि की ओर संकेत करते हैं। इसके बजाय, दंत स्वास्थ्य संगठन दंत क्षय से बचाव के लिये नियमित मौखिक स्वच्छता और आहार में परिवर्तन जैसे निवारक और रोगनिरोधक उपायों का समर्थन करते हैं।[5]

वर्गीकरण

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दंत-क्षय का वर्गीकरण स्थान, हेतुविज्ञान, विकास की दर और प्रभावित सख्त ऊतकों के आधार पर किया जा सकता है।[6] इन वर्गीकरणों का प्रयोग दंत-क्षय के किसी विशिष्ट मामले का विवरण देने के लिये किया जा सकता है, ताकि अन्य लोगों को स्थिति की जानकारी अधिक अचूकता के साथ दी जा सके और साथ ही दांत के क्षरण की गंभीरता की ओर सूचित भी किया जा सके।

 
जी.वी. पुनर्स्थापनों के काले वर्गीकरण

अवस्थिति

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सामान्यतः स्थिति के आधार पर वर्गीकरण करने पर क्षति के दो प्रकार होते हैं: चिकनी सतह पर मिलने वाली क्षति और गड्ढों व दरारों में मिलने वाली क्षति.[7] चिकनी सतह पर होने वाली क्षति का स्थान, विकास और श्रेणी गड्ढों व दरारों में होने वाली क्षति से भिन्न होता है। जी. वी. ब्लेक (G.V. Black) ने एक वर्गीकरण प्रणाली विकसित की, जिसका प्रयोग व्यापक पैमाने पर किया जाता है और जो दांत में हो रहे क्षय की स्थिति पर आधारित है। मूल वर्गीकरण में दंत-क्षयों को पांच समूहों में रखा गया था, जिन्हें शब्द “श्रेणी (Class)” तथा एक रोमन अंक के द्वारा सूचित किया जाता था। गड्ढों व दरारों में होने वाले क्षय को श्रेणी I के रूप में सूचित किया जाता है; चिकनी सतह पर होने वाली क्षति को आगे श्रेणी II, श्रेणी III, श्रेणी IV व श्रेणी V में विभाजित किया गया है।[8] दंत-क्षय के ब्लेक के वर्गीकरण में एक श्रेणी VI भी जोड़ा गया था और यह भी चिकनी सतह पर होने वाली क्षति का प्रतिनिधित्व करता है।

 
दांत के गड्ढ़े और छेद एक स्थान प्रदान करते हैं।

गड्ढों व दरारों में होने वाला क्षरण (श्रेणी I दंत-क्षय)

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गड्ढे व दरारें दांत पर स्थित संरचनात्मक चिह्न हैं, जहां से दन्तबल्क (enamel) भीतर की ओर मुड़ता है। दरारों का निर्माण खांचों (grooves) के विकास के दौरान होता है, लेकिन उस स्थान पर स्थित दन्तबल्क पूरी तरह जुड़ा हुआ नहीं होता। इसके परिणामस्वरूप, दन्तबल्क की सतह की संरचना पर एक गहरा रेखीय गड्ढा बन जाता है, जो दंत-क्षय को विकसित होने व पनपने के लिये एक स्थान प्रदान करता है। दरारें अधिकांशतः पश्च (पिछले) दांतों की संरोधक (चबाने वाली) सतह और जंभिका पर स्थित अग्र (अगले) दांतों की तालव्य सतह पर स्थित होती हैं। गड्ढे छोटे, सुई की नोक के आकार के छिद्र होते हैं, जो अधिकांशतः खांचों के छोर या अनुप्रस्थ भाग (cross-section) पर पाए जाते हैं।[9] विशिष्ट रूप से, चर्वणक (molar) दांतों की बाहरी सतहों पर कपोल गड्ढे (buccal pits) पाए जाते हैं। सभी प्रकार के गड्ढों व दरारों के लिये अत्यधिक गहराई तक मुड़ा हुआ दन्तबल्क इन सतहों पर मौखिक स्वास्थ्य का ध्यान रख पाना कठिन बना देता है, जिसके कारण इन क्षेत्रों में दंत-क्षति विकसित होना अधिक आम है।

दांतों की संरोधक परत दांत की कुल परत का 12.5% होती है, लेकिन कुल दंत-क्षयों का 50% से अधिक भाग इन्हीं पर पाया जाता है।[10] कुल दंत-क्षयों का 90% बच्चों के दांतों के गड्ढों व दरारों में होने वाली क्षतियां होती हैं।[11] गड्ढों व दरारों में होने वाले क्षरण की पहचान कर पाना कभी-कभी कठिन हो सकता है। जैसे-जैसे क्षरण में वृद्धि होती जाती है, दांत की सतह के सबसे पास स्थित दन्तबल्क का क्षय क्रमशः गहराई में फैलने लगता है। एक बार जब यह क्षय दन्त-ऊतक और दन्तबल्क के संयोजन-स्थल (dentino-enamel junction) (डीईजे) (DEJ) के दन्त-ऊतक पर पहुंचता है, तो यह क्षरण तेज़ी से पार्श्विक रूप से फैलता है। दन्त-ऊतक के भीतर, यह क्षरण एक त्रिभुज पैटर्न का पालन करता है, जिसकी दिशा दांत के गूदे की ओर होती है। क्षरण के इस पैटर्न का वर्णन विशिष्ट रूप से दो त्रिभुज (एक तिकोन दन्तबल्क में और दूसरा दन्त-ऊतक में) के द्वारा किया जाता है, जिनके आधार डीईजे (DEJ) पर एक दूसरे से जुड़े होते हैं। चिकनी सतह पर होने वाले क्षरण (जिसमें दो त्रिभुजों के आधार व शीर्ष जुड़े होते हैं) के विपरीत आधार-से-आधार का यह पैटर्न एक गड्ढे व दरार के क्षरण का विशिष्ट पैटर्न है।

चिकनी सतह पर होने वाला क्षरण

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चिकनी सतह पर होने वाले क्षरण के तीन प्रकार होते हैं। समीपस्थ क्षरण, जिसे अंतःसमीपस्थ क्षरण भी कहा जाता है, समीपस्थ दांतों के बीच की चिकनी सतह पर होता है। मूल क्षरण दांतों की मूल सतहों पर होता है। चिकनी सतह पर होने वाला तीसरे प्रकार का क्षरण दांत की किसी भी अन्य चिकनी सतह पर होता है।

 
इस रेडियोग्राफ़ में, आसन्न दांतों में काले धब्बे समीपस्थ क्षरण दिखाते है।

समीपस्थ क्षरण की पहचान करना सर्वाधिक कठिन होता है।[12] अक्सर इस प्रकार के क्षरण की पहचान केवल देखकर या दंत अन्वेषक के द्वारा मानवीय रूप से नहीं की जा सकती. समीपस्थ क्षरण दो दांतों के संपर्क-स्थल के ठीक नीचे ग्रैव रूप से (दांत के मूल की ओर) निर्मित होता है। इसके परिणामस्वरूप, शुरुआती चरण में ही समीपस्थ क्षरण की पहचान करने के लिये एक रेडियोग्राफ की आवश्यकता होती है।[13] ब्लेक की वर्गीकरण प्रणाली में, पिछले दांतों (चर्वणक और अग्रचर्वणक) पर उत्पन्न समीपस्थ क्षरण श्रेणी II के क्षरण कहलाते हैं।[14] अगले दांतों (छेदक व रदनक) पर होने वाले समीपस्थ क्षरण में यदि कृंतक छोर (चबानेवाली सतह) शामिल न हो, तो इसे श्रेणी III में रखा जाता है और यदि कृंतक छोर शामिल हो, तो इसे श्रेणी IV में रखते हैं।

मूल क्षरण, जिनका वर्णन कभी-कभी चिकनी-सतह वाले क्षरण के एक प्रकार के रूप में किया जाता है, क्षरण का तीसरा सबसे आम प्रकार हैं और ये सामान्यतः तब उत्पन्न होते हैं, जब मूल सतहें मसूड़ों में घटाव के कारण उजागर हो गईं हों. यदि मसूड़े स्वस्थ हों, तो मूल क्षरण के विकास की संभावना नहीं होती क्योंकि जीवाण्विक प्लाक मूल सतहों तक नहीं पहुंच सकता. दन्तबल्क की तुलना में मूल सतहें अखनिजीकरण प्रक्रिया के प्रति अधिक असुरक्षित होती हैं क्योंकि दन्त-मूल 6.7 पीएच (pH) पर अखनिजीकृत होना प्रारंभ करता है, जो कि दन्तबल्क के नाज़ुक पीएच (pH) से उच्च है।[15] इसके बावजूद, दन्तबल्क क्षरण की अपेक्षा मूल क्षरण के विकास को रोकना अधिक सरल है क्योंकि दन्तबल्क की तुलना में मूल में फ्लोराइड का पुनःअवशोषण अधिक होता है। अंतःसमीपस्थ सतहों की तुलना में, जिहीय सतहों की तुलना में जिह्वीय सतहों पर मूल क्षरण होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। जबड़ों पर स्थित चर्वणक दांत मूल क्षरण के सबसे आम स्थान हैं, जिसके बाद जबड़ों पर स्थित अग्रचर्वणक, जंभिका पर स्थित अग्रवर्ती, जंभिका पर स्थिति पश्चवर्ती और जबड़े पर स्थित अग्रवर्ती दांत आते हैं।

दांतों की चिकनी सतहों पर चोट लग जाना भी संभव है। चूंकि ये अंतःसमीपस्थ क्षेत्रों के अलावा चिकनी सतह के सभी क्षेत्रों में होती हैं, अतः इस प्रकार के क्षरण की पहचान करना सरल होता है और ये प्लाक तथा क्षरण के निर्माण को प्रोत्साहित करने वाले भोजन से जुड़े होते हैं।[12] ब्लेक के वर्गीकरण के अंतर्गत, आननमुखीय अथवा जिहीय सतहों के पास स्थित मसूड़ों पर होने वाले क्षरण को श्रेणी V के रूप में चिह्नित किया जाता है।[14] श्रेणी VI पश्चस्थ दांतों के सिरों और अग्रस्थ दांतों के कृंतक छोरों के लिये आरक्षित है।

अन्य सामान्य विवरण

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पूर्व वर्णित दो श्रेणियों के अलावा, क्षरणग्रस्त चोट को एक दांत की किसी विशिष्ट सतह पर उनकी स्थिति के द्वारा भी वर्णित किया जा सकता है। दांत की जो सतह गालों या होठों से सबसे निकट होती है, उन पर होने वाले क्षरण को “आननमुख क्षरण ("facial caries") कहा जाता है और जीभ की ओर स्थित सतह पर होने वाला क्षरण, जिहीय क्षरण ("lingual caries") कहलाता है। आननमुख क्षरण को आगे कपोल (जब यह गालों के पास स्थित पश्चस्थ दांतों की सतहों पर प्राप्त हुआ हो) और ओष्ठक (जब यह होठों के सबसे निकट स्थित अग्रस्थ दांतों की सतहों पर प्राप्त हुआ हो में वर्गीकृत किया जा सकता है। यदि ओष्ठक क्षरण जंभिका पर स्थित दांतों की ओष्ठक सतहों पर पाया गया हो, तो इसका वर्णन तालव्य के रूप में किया जा सकता है क्योंकि ये दांत सख्त तालू के बगल में स्थित होते हैं।

किसी दांत की ग्रीवा-वह स्थान जहां दांत का शीर्ष-भाग और मूल जुड़ते हैं-के पास क्षरण को ग्रैव क्षरण (cervical caries) कहा जाता है। संरोधक क्षरण पश्चस्थ दांतों की चबाने वाली सतहों पर पाया जाता है। कृंतक क्षरण अग्रस्थ दांतों की चबाने वाली सतहों पर पाया जाता है। क्षरणों का वर्णन “मध्यम (mesial)" अथवा "दूरस्थ (distal)" के रूप में भी किया जा सकता है। मध्यम क्षरण दांतों पर किसी ऐसे स्थान से संबंधित होते हैं, जो चेहरे की मध्य-रेखा के निकट हो, जो कि आंखों के बीच से नीचे नाक की ओर और मध्य कृंतकों के संपर्क के बीच की ऊर्ध्व धुरी पर स्थित होती है। मध्य रेखा से दूर स्थित दांतों की स्थिति का वर्णन दूरस्थ के रूप में किया जाता है।

हेतुविज्ञान

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अत्यधिक फैलनेवाला क्षरण.

कुछ उदाहरणों में, क्षयों का वर्णन किसी अन्य प्रकार से भी किया जाता है, जो इसके कारण की ओर सूचित करता हो। “शिशु बोतल क्षरण”, “प्रारंभिक शैशव क्षरण” अथवा “शिशु बोतल दांत क्षरण” अस्थायी (शिशु) दांतों वाले छोटे बच्चों में पाया जाने वाला एक पैटर्न है। इसमें जबड़ों के अग्र-भाग पर स्थित दांतों पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ने की संभावना होती है, लेकिन सभी दांत प्रभावित हो सकते हैं।[16] इस प्रकार के क्षरण को यह नाम इस तथ्य के आधार पर मिला है कि यह क्षरण सामान्यतः शिशुओं को उनकी बोतल में रखे मीठे द्रवों के साथ सोने की अनुमति देने अथवा शिशुओं दिन में कई बार मीठे द्रव पिलाने के परिणामस्वरूप होता है। क्षरण का एक अन्य पैटर्न “अत्यधिक फैलनेवाला क्षरण (rampant caries)" है, जो अनेक दांतों की कई सतहों पर होने वाले उन्नत या अत्यधिक क्षरण को सूचित करता है।[17] अत्यधिक फैलनेवाला क्षरण मुंह सूखने की बीमारी (xerostomia) से ग्रस्त, मुंह के स्वास्थ्य का ध्यान न रखने वाले, उत्तेजक का प्रयोग (ड्रग से प्रभावित सूखे मुंह के कारण) करने वाले[18] तथा/या चीनी का बहुत अधिक सेवन करने वाले व्यक्तियों में देखा जा सकता है। यदि अत्यधिक फैलनेवाला क्षरण सिर व गरदन पर पूर्ववर्ती विकिरण के कारण हो, तो इसका वर्णन विकिरण-प्रभावित क्षरण के रूप में किया जा सकता है। ये समस्याएं मूल के स्वतःविनाश और जब नये दांत उग रहे हों, तो पूरे दांत की पुनर्रचना या बाद में अज्ञात कारणों से उत्पन्न हो सकती हैं। डॉ॰ मिलर ने 1887 में कहा कि "दंत-क्षरण एक रासायनिक-परजीवी प्रक्रिया है, जिसमें दो चरण होते हैं-दन्तबल्क का अखटीकरण (decalcification), जिसके परिणामस्वरूप पूर्ण विनाश होता है, तथा प्राथमिक चरण के रूप में दन्त-ऊतक का अखटीकरण (decalcification), जिसके बाद मुलायम हो चुका अवशिष्ट का विलयन होता है।" अपनी इस परिकल्पना में, डॉ॰ मिलर ने तीन कारकों को आवश्यक भूमिकाएं आवंटित कीं:

  1. कार्बोहाइड्रेट अधःस्तर.
  2. दांत के खनिजों के विलयन के लिये ज़िम्मेदार अम्ल.
  3. मुंह में पाये जाने वाले वे सूक्ष्म जीव, जो उस अम्ल को उत्पन्न करते हैं व साथ ही प्रोटियोलिसिस (proteolysis) का कारण बनते हैं।

प्रगति की दर

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क्षरणों की प्रगति की दर व पिछले इतिहास की ओर सूचित करने के लिये उन पर अस्थायी विवरण लागू किये जा सकते हैं। “तीव्र (Acute)" तेज़ी से विकसित हो रही स्थिति की ओर संकेत करता है, जबकि “दीर्घकालिक (chronic)" एक ऐसी स्थिति का वर्णन करता है, जिसने विकसित होने के लिये बहुत लंबा समय लिया है, जिसमें हज़ारों बार का भोजन व नाश्ता शामिल है, जिसमें से अनेक के कारण कुछ अम्ल अखनीजीकरण होता है, जिसका पुनःखनिजीकरण नहीं किया जाता अंततः इसके परिणामस्वरूप छिद्र उत्पन्न हो जाते हैं। फ्लोराइड उपचार दांत के दन्तबल्क पुनर्खटीकरण में सहायक हो सकता है।

पुनरावर्ती क्षरण, जिसे द्वितीयक क्षरण भी कहा जाता है, किसी ऐसे स्थान पर उत्पन्न होने वाले क्षरण होते हैं, जिसका क्षरण का पुराना इतिहास रहा हो। अक्सर यह भराई और अन्य दंत प्रत्यावर्तनों पर पाया जाता है। दूसरी ओर, प्रारंभिक क्षरण का प्रयोग किसी ऐसे स्थान पर हुए क्षय का वर्णन करने के लिये किया जाता है, जिसने पहले किसी क्षय का अनुभव न किया हो। रोका गया क्षरण किसी ऐसे दांत पर एक चोट का वर्णन करता है, जो पहले अखनिजीकृत हो गया हो, लेकिन जिसे कोई छिद्र उतपन्न होने से पहले ही पुनर्खनिजीकृत कर लिया गया हो। फ्लोराइड उपचार का प्रयोग करना पुनर्खटीकरण में सहायक हो सकता है।

प्रभावित सख्त ऊतक

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प्रभावित होने वाले ऊतकों के आधार पर, क्षरणों का वर्णन दन्तबल्क, दन्त-ऊतक या दन्त-मूल रखने वाले क्षरणों के रूप में किया जाना संभव है। अपने विकास के प्रारंभ में, क्षरण द्वारा केवल दन्तबल्क को प्रभावित किया जाना संभव है। एक बार जब क्षय का विस्तार दन्त-ऊतक की गहरी परत तक पहुंच जाता है, तो “दन्त-ऊतक क्षरण” शब्दावली का प्रयोग किया जाता है। चूंकि सीमेँटम दांतों की जड़ों को ढंकने वाला सख्त ऊतक है, अतः सामान्यतः यह क्षय द्वारा तब तक प्रभावित नहीं होता, जब तक कि दांत की जड़ें मुंह में उजागर न हो रही हों. हालांकि, “दन्त-मूल क्षरण” शब्दावली का प्रयोग दांतों की जड़ों पर होने वाले क्षय का वर्णन करने के लिये किया जा सकता है, लेकिन बहुत ही दुर्लभ स्थितियों में ही यह क्षरण केवल दन्त-मूल को प्रभावित करता है। जड़ों में दन्त-ऊतक की एक बड़ी परत के ऊपर सीमेँटम की एक बहुत पतली परत होती है और इस प्रकार दन्त-मूल को प्रभावित करने वाले अधिकांश क्षरण दन्त-ऊतक को भी प्रभावित करते हैं।

संकेत व लक्षण

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एक दंत एक्सप्लोरर, जो क्षय निदान के लिए प्रयोग किया जाता है।

यह संभव है कि क्षरण का अनुभव कर रहे व्यक्ति को इसकी जानकारी न हो। [19] एक नए क्षरणग्रस्त घाव का सबसे पहला संकेत दांत की सतह पर एक खड़ियामय सफेद धब्बे के रूप में मिलता है, जो इस बात की ओर सूचित करता है कि उस क्षेत्र में दन्तबल्क का अखनिजीकरण हो रहा है। इसे प्रारंभिक क्षय कहा जाता है। जब घाव का अखनिजीकरण जारी रहता है, तो यह भूरे रंग में बदल सकता है, लेकिन अंततः यह एक कोटख (“छिद्र”) में बदल जाएगा. छिद्र का निर्माण होने से पहले, यह प्रक्रिया प्रतिवर्ति होती है, लेकिन एक बार छिद्र का निर्माण हो जाने पर, दांत की नष्ट हो चुकी संरचना को पुनरुत्पन्न नहीं किया जा सकता.[उद्धरण चाहिए] कोई ऐसा घाव जो भूरे रंग और चमकीला का दिखाई देता हो, यह दर्शाता है कि किसी समय दंत क्षरण मौजूद थे, लेकिन अखनिजीकरण की प्रक्रिया रुक गई है और केवल एक दाग़ रह गया है। मन्द प्रतीत होने वाला एक भूरा दाग़ संभवतः सक्रिय क्षरण का एक संकेत होता है।

जब दन्तबल्क और दन्त-ऊतक नष्ट हो जाते हैं, तो यह छिद्र लक्षणीय हो जाता है। दांत के प्रभावित क्षेत्र अपना रंग बदल देते हैं और छूने पर मुलायम महसूस होते हैं। एक बार जब क्षय दन्तबल्क से होकर गुज़र जाता है, तो दांतों की नलिकाएं, जिनमें दांत की नसों तक जाने का मार्ग होता है, उजागर हो जाती हैं, जिससे दांत में दर्द होने लगता है। गर्म, ठंडे या मीठे भोजन व पेय के संपर्क में आने पर यह दर्द और अधिक बढ़ सकता है।[20] दंत-क्षय के कारण सांसों में बदबू और विकृत स्वाद जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।[21] अत्यधिक विकसित स्थितियों में, दांत में हुआ संक्रमण आस-पास के नर्म ऊतकों तक भी फैल सकता है। गुहामय विवर धनास्रता (cavernous sinus thrombosis) और लुडबिग का कण्ठशूल (Ludwig's angina) जैसी जटिलताओं से जीवन के लिये खतरा भी उत्पन्न हो सकता है।[22][23][24]

किसी क्षरण के निर्माण के लिये चार मुख्य मापदण्डों की आवश्यकता होती है: दांत की सतह (दन्तबल्क या दन्त-ऊतक); क्षरण उत्पन्न करने वाले जीवाणु; किण्वन-योग्य कार्बोहाइड्रेट (जैसे सुक्रोज़); और समय.[25] क्षरण प्रक्रिया का कोई अपरिहार्य परिणाम नहीं होता और बिभिन्न व्यक्ति अपने दांतों के आकार, मौखिक स्वास्थ्य की आदतों और उनकी लार की प्रतिरोधक क्षमता के आधार पर भिन्न-भिन्न श्रेणियों के प्रति संवेदनशील होते हैं। दंत क्षरण दांत की किसी भी ऐसी सतह पर हो सकता है, जो कि मुंह के छिद्र में उजागर हो रही हो, लेकिन यह अस्थि के भीतर बचा ली गई संरचना पर नहीं हो सकता.[26]

दांतों को प्रभावित करने वाली कुछ विशिष्ट बीमारियां व विकृतियां हैं, जिनके कारण किसी व्यक्ति में क्षरन का खतरा बढ़ सकता है। अमेलोजेनेसिस इम्पर्फेक्टा (Amelogenesis imperfecta), जो 718 में से 1 और 14,000 में से एक व्यक्ति के बीच होता है, एक ऐसा रोग है, जिसमें दन्तबल्क या तो पूरी तरह निर्मित ही नहीं होता या अपर्याप्त मात्रा में निर्मित होता है और दांतों से गिर सकता है।[27] दोनों ही स्थितियों में, दांतों में क्षय का खतरा बढ़ सकता है क्योंकि दन्तबल्क दांत की रक्षा कर पानें में सक्षम नहीं होता। [28]

अधिकांश व्यक्तियों में, दंत क्षरण का प्राथमिक कारण दांतों को प्रभावित करनेवाली विकृतियां या बीमारियां नहीं होतीं. दांत के दन्तबल्क का छियानबे प्रतिशत भाग खनिजों से मिलकर बना होता है।[29] अम्लीय वातावरणों के संपर्क में आने पार ये खनिज, विशेषतः हाइड्रॉक्सीपैटाइट (hydroxyapatite), घुलनशील बन जाएंगे. 5.5 के एक पीएच (pH) पर दन्तबल्क का अखनिजीकरण प्रारंभ हो जाता है।[30] दन्तबल्क की तुलना में दन्त-ऊतक व दन्त-मूल में क्षरण का खतरा अधिक होता है क्योंकि उनमें खनिज की मात्रा कम होती है।[31] इस प्रकार, जब दांत की मूल सतहों का सामना मसूड़ों में होने वाले गड्ढों या मसूड़ों से जुड़ी अन्य बीमारियों से होता है, तो क्षरण जल्दी विकसित हो सकते हैं। हालांकि, एक स्वस्थ मौखिक वातावरण में भी दांत में दंत-क्षरण होने का खतरा बना रहता है।

दांतों की संरचना क्षरण के निर्माण की संभावना को प्रभावित कर सकती है। जहां दांतों के गहरे खांचे अधिक संख्या में तथा अतिरंजित होते हैं, वहां गड्ढों व दरारों के विकास की संभावना अधिक होती है। साथ ही, यदि दांतों के बीच अन्न-कण दबे हुए हों, तो क्षरण की संभावना बढ़ जाती है।

 
एक ग्राम स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स के दाग की छवि.

हमारे मुंह में अनेक प्रकार के मौखिक जीवाणु पाये जाते हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि उन जीवाणुओं की केवल कुछ विशिष्ट प्रजातियां ही दन्त-क्षय के लिये उत्तरदायी होती हैं, जिनमें स्ट्रेप्स्टोकॉकस म्युटान्स (Streptococcus mutans) और लैक्टोबैसिली (Lactobacilli) शामिल हैं।[2][4] लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस (Lactobacillus acidophilus), एक्टिनोमाइसेस विस्कॉसस (Actinomyces viscosus), नोकार्डिया एसपीपी. (Nocardia spp.) और स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स (Streptococcus mutans) का दंत-क्षय, विशेषतः दंत-मूल में होने वाले क्षय, के साथ निकट संबंध होता है। दातों और मसूड़ों के आस-पास जीवाणु एक चिपचिपे, मलाई-जैसे रंग के पदार्थ में जमा हो जाते हैं, जिसे प्लाक कहा जाता है, जो एक जैव-आवरण (Biofilm) के रूप में कार्य करता है। कुछ विशिष्ट स्थानों पर प्लाक का एकत्र होना अन्य स्थानों की तुलना में आम होता है। दातों के बीच संपर्क बिंदु की ही तरह चर्वणक (molar) और अग्रचर्वणक (premolar) दांतों की चबाने वाली सतहों पर पाए जाने वाले खांचे भी सूक्ष्मदर्शीय अवरोधन प्रदान करते हैं। मसूड़ों पर प्लाक भी एकत्रित हो सकता है।

किण्वन-योग्य कार्बोहाइड्रेट

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किसी व्यक्ति के मुंह में उपस्थित जीवाणु ग्लूकोज़, फ्रुक्टोज़ और सबसे आम तौर पर सुक्रोज़ (चीनी) को किण्वन नामक एक ग्लाइकोलिटीक प्रक्रिया के द्वारा लैक्टिक अम्ल आदि जैसे अम्लों में परिवर्तित कर देते हैं।[3] यदि इन अम्लों को दांत के संपर्क में छोड़ दिया जाए, तो वे अखनिजीकरण का कारण बन सकते हैं, जो कि खनिजों के विलयन की प्रक्रिया है। हालांकि यह प्रक्रिया गतिज होती है क्योंकि यदि लार या माउथवॉश के द्वारा इस अम्ल को निष्क्रिय कर दिया जाए, तो पुनर्खनिजीकरण भी हो सकता है। फ्लोराइड टूथपेस्ट अथवा दंत वार्निश पुनर्खनिजीकरण में सहायक हो सकते हैं।[32] यदि अखनिजीकरण लंबे समय तक जारी रहता है, तो इतनी बड़ी मात्रा में खनिज-सामग्री की हानि हो सकती है कि शेष रह गया नर्म जैव पदार्थ विघटित हो जाता है, जिससे एक कोटर या छिद्र बन जाता है। ऐसी शर्कराओं द्वारा दंत क्षरण के विकास पर डाले जाने वाले प्रभाव को क्षरणकारिता (cariogenicity) कहते हैं। यद्यपि शर्करा एक बद्ध ग्लूकोज़ व फ्रुक्टोज़ इकाई होती है, लेकिन वास्तव में यह ग्लूकोज़ और फ्रुक्टोज़ की समान मात्रा के मिश्रण की तुलना में अधिक क्षरणकारी (cariogenic) होती है। इसका कारण यह है कि जीवाणु ग्लुकोज़ व फ्रुक्टोज़ की उप-इकाइयों के बीच उपस्थित बंध से ऊर्जा प्राप्त करते हैं। एन्ज़ाइम डेक्स्ट्रान्सुक्रानेज़ (enzyme dextransucranase) द्वारा सुक्रोज़ को डेक्सरान पॉलीसैक्राइड (dextran polysaccharide) नामक एक अत्यधिक चिपचिपे पदार्थ में रूपांतरित करके एस. म्युटान्स (S.mutans) दांत पर स्थिति जैव-परत (biofilm) से चिपका रहता है।[33]

क्षरण के विकास की संभावना इस बात से भी प्रभावित होती है कि दांत किस आवृत्ति पर क्षरणकारी (अम्लीय) वातावरणों के संपर्क में आते हैं।[34] भोजन अथवा नाश्ते के बाद, मुंह में उपस्थित जीवाणु शर्करा का चयापचय करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पीएच (pH) को घटाने वाले एक अम्लीय-उपोत्पाद का निर्माण होता है। समय के साथ-साथ, लार की प्रतिरोधक क्षमता और दांत की सतह की विघटित खनिज सामाग्री के कारण पीएच (pH) पुनः सामान्य स्थिति पर लौट आता है। अम्लीय वातावरण के साथ होने वाले प्रत्येक संपर्क के दौरान, दांतों की सतह पर उपस्थित गैर-जैविक पदार्थ का कुछ भाग विघटित हो जाता है और यह दो घंटों तक विघटित बना रह सकता है।[35] चूंकि, इन अम्लीय अवधियों के दौरान दांतों पर क्षरण का खतरा होता है, अतः दंत क्षरण का विकास अम्लीय संपर्क की आवृत्ति पर अत्यधिक निर्भर होता है।

यदि भोजन में उपयुक्त कार्बोहाइड्रेट की पर्याप्त मात्रा हो, तो यह क्षरण प्रक्रिया मुंह में दांत के उगने के कुछ ही दिनों के भीतर प्रारंभ हो सकती है। प्रमाण इस बात की ओर संकेत करते हैं कि फ्लोराइड उपचार इस प्रक्रिया को धीमा कर देते हैं।[36] समीपस्थ क्षरण को किसी स्थायी दांत के दन्तबल्क से होकर गुज़रने में औसतन चार वर्षों का समय लगता है। चूंकि मूल सतह को ढंकने वाला दन्त-मूल शीर्ष को ढंकनेवाले दन्तबल्क जितना टिकाऊ नहीं होता, अतः मूल क्षरण के सामान्यतः अन्य सतहों पर होने वाले क्षरणों की तुलना में तेज़ी से बढ़ता है। मूल क्षरण पर होने वाला यह विकास और खनिजीकरण की हानि दन्तबल्क पर होने वाले क्षरण की तुलना में 2.5 गुना अधिक तेज़ होती है। अत्यधिक गंभीर मामलों, जिनमें मौखिक स्वास्थ्य बहुत खराब हो और भोजन में किण्वन-योग्य कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बहुत अधिक हो, में क्षरण के कारण दांत के उगने के कुछ माह के भीतर ही छिद्र उत्पन्न हो सकते हैं। उदाहरणार्थ, यदि बच्चे लगातार शिशु बोतलों से शर्करायुक्त पेय का सेवन करते हों, तो ऐसा हो सकता है।

अन्य जोखिम कारक

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लार में कमी व क्षरण में वृद्धि के बीच आपसी संबंध होता है क्योंकि कुछ विशिष्ट खाद्य-पदार्थों द्वारा निर्मित अम्लीय वातावरण को संतुलित करने के लिये लार की प्रतिरोधक क्षमता उपस्थित नहीं होती. इसके परिणामस्वरूप, जो चिकित्सीय स्थितियां लार ग्रंथियों, विशिष्टतः जबड़े की उपग्रंथि और कर्णमूल ग्रंथि, द्वारा उत्पन्न लार की मात्रा को कम कर देती हैं, उनके कारण व्यापक दंत क्षय होने की संभावना होती है। इसके उदाहरणों में स्जोग्रेन सिण्ड्रोम (Sjögren's syndrome), डायाबिटीज़ मेलिटस (diabetes mellitus), डायाबिटीज़ इन्सिपिडस (diabetes insipidus) तथा सार्काइडॉसिस (sarcoidosis) शामिल हैं।[37] एण्टीहिस्टामाइन (antihistamines) और अवसादरोधी (antidepressants) दवाएं भी लार के प्रवाह को खण्डित कर सकती हैं। उत्प्रेरक, सर्वाधिक कुख्यात रूप से मेथिलैंफेटामाइन (methylamphetamine), भी लार के प्रवाह को बहुत अधिक अवरुद्ध कर देते हैं। उत्प्रेरकों का दुरुपयोग करने वालों में बुरे मौखिक स्वास्थ्य की प्रवृत्ति पायी जाती है। भांग के पौधे में पाया जाने वाला सक्रिय रासायनिक पदार्थ, टेट्राहाइड्रोकैनाबिनॉल (Tetrahydrocannabinol), भी लार के प्रवाह को लगभग पूरी तरह रोक देता है और इस स्थिति को बोलचाल की भाषा में “कॉटन माउथ (cotton mouth)" कहते हैं। अत्यधिक शर्करायुक्त पेय तथा अपौष्टिक खाद्य पदार्थ (junk food) की अत्यधिक मात्रा के साथ मिलकर यह भांग का सेवन करने वालों में क्षरण के विस्तार में बहुत अधिक वृद्धि कर देता है।[38] इसके अतिरिक्त, संयुक्त राज्य अमरीका में सबसे आमतौर पर दी जाने वाली दवाओं में से तिरसठ प्रतिशत में इनके ज्ञात दुष्प्रभावों की सूची में मुंह के सूखने का उल्लेख किया गया है।[37] सिर और गरदन का विकिरण उपचार भी लार-ग्रंथि में स्थित कोशिकाओं को प्रभावित कर सकता है, जिससे क्षरण के निर्माण की संभावना बढ़ जाती है।[39]

तंबाकू का प्रयोग की क्षरण के निर्माण के जोखिम को बढ़ा सकता है। धूम्रविहीन तंबाकू के कुछ ब्राण्डों में उच्च शर्करा मात्रा होती है, जिससे क्षरण की संभावना बढ़ जाती है।[40] तंबाकू का प्रयोग दांतों से संबंधित उन बीमारियों के लिये एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक होता है, जो मसूड़े को पीछे धकेल देती हैं।[41] जब मसूड़े का दांतों से जुड़ाव खत्म हो जाता है, तो मूल सतह मुंह में अधिक दर्शनीय हो जाती है। यदि ऐसा होता है, तो मूल क्षरण एक चिंताजनक बात होती है क्योंकि दांतों को ढंकने वाले दन्त-मूल को अम्लों द्वारा दन्तबल्क की तुलना में अधिक सरलता के साथ अखनिजीकृत कर दिया जाता है।[15] वर्तमान में, धूम्रपान और शिरोबन्ध क्षरण के बीच एक अनौपचारिक संबंध का समर्थन करने वाले पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन ये प्रमाण धूम्रपान और मूल-सतह क्षरण के बीच एक संबंध की ओर अवश्य संकेत करते हैं।[42]

अंतर्गर्भाशयी और नवजात शिशुओं में सीसे का संपर्क दंत क्षय को प्रोत्साहित करता है।[43][44][45][46][47][48][49] सीसे के अतिरिक्त, विद्युत आवेश और द्विसंयोजक कैल्शियम के समान आयनिक त्रिज्या वाले सभी अणु,[50] जैसे कैडमियम, कैल्शियम आयन की नकल करते हैं और इसलिये उनसे होने वाला संपर्क दांत के क्षय को बढ़ाता है।[51]

विकारी-शरीरक्रिया विज्ञान

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गड्ढे और विदर क्षय की प्रगति तामचीनी और डेंटिन के जंक्शन साथ उनके ठिकानों की बैठक से दो त्रिकोण जैसा दिखता है।

दन्तबल्क

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दन्तबल्क अत्यधिक खनिजीकृत अकोशिकीय ऊतक होता है और क्षरण जीवाणुओं द्वारा प्रारंभ की जाने वाली एक रासायनिक प्रक्रिया के द्वारा इसे हानि पहुंचाते हैं। जब ये जीवाणु शर्करा का सेवन करने लगते हैं और इसका प्रयोग अपनी स्वयं की ऊर्जा के लिये करने लगते हैं, तब वे लैक्टिक अम्ल उत्पन्न करते हैं। इस प्रक्रिया के प्रभावों में दन्तबल्क में उपस्थित कणों का अखनिजीकरण शामिल है, जो कि समय के बीतने के साथ-साथ अम्लों के कारण होता है और तब तक जारी रहता है, जब तक कि जीवाणु शारीरिक रूप से दन्त-ऊतक को भेद न लें. दन्तबल्क की छड़ें, जो कि दन्तबल्क की संरचना की मूलभूत इकाइयां होती हैं, दांत की सतह से दन्त-ऊतक तक लम्बवत् स्थित होती हैं। चूंकि क्षरण के द्वारा दन्तबल्क का अखनिजीकरण सामान्यतः दन्तबल्क की छड़ की दिशा में ही होता है, अतः दन्तबल्क में गड्ढों व छिद्रों के बीच भिन्न-भिन्न त्रिभुजाकार पैटर्न तथा चिकनी-सतह वाले क्षरण विकसित होते हैं कि दांत के दो क्षेत्रों में दन्तबल्क की छड़ों की स्थिति भिन्न-भिन्न होती है।[52]

जब दन्तबल्क अपने खनिजों को खो देता है और दंत क्षरण का विकास होने लगता है, तो दन्तबल्क में अनेक स्पष्ट क्षेत्र विकसित हो जाते हैं, जिन्हें एक प्रकाश सूक्ष्मदर्शी के द्वारा देखा जा सकता है। दन्तबल्क की सबसे गहरी परत से दन्तबल्क की सतह तक, जिन क्षेत्रों की पहचान की गई है, वे हैं: पारभासी क्षेत्र (translucent zone), काला क्षेत्र (dark zones), घाव का मुख्य-भाग (body of the lesion) और सतह क्षेत्र (surface zone)। [53] पारभासी क्षेत्र क्षरण का पहला दृश्य संकेत होता है और यह खनिजों की एक से दो प्रतिशत हानि होने पर बनता है।[54] काले क्षेत्र में दन्तबल्क का थोड़ा-सा पुनर्खनिजीकरण होता है, जो इस बात का एक उदाहरण प्रस्तुत करता है कि दंत क्षय का विकास वैकल्पिक परिवर्तनों के साथ किस प्रकार एक सक्रिय प्रक्रिया है।[55] सर्वाधिक अखनिजीकरण व विनाश का क्षेत्र स्वतः घाव का मुख्य भाग ही होता है। सतह क्षेत्र अपेक्षाकृत खनिज-युक्त बना रहता है और तब तक उपस्थित रहता है, जब तक कि दांत की संरचना एक छिद्र में न बदल जाए.

दन्तबल्क के विपरीत, दन्त-ऊतक दंत क्षय की प्रगति के प्रति प्रतिक्रिया देता है। दांत के निर्माण के बाद, दन्तबल्क को उत्पन्न करने वाले अमीनोब्लास्ट दन्तबल्क की रचना पूरी हो जाने पर नष्ट हो जाते हैं और इसलिये बाद में दन्तबल्क के नष्ट हो जाने पर वे उसकी पुनर्रचना नहीं कर सकते. दूसरी ओर, पूरे जीवन-काल के दौरान ओडॉन्टोब्लास्ट के द्वारा दन्त-ऊतक उत्पादित होता रहता है, जो गूदे और दन्त-ऊतक के बीच स्थित होता है। चूंकि, ओडॉन्टोब्लास्ट उपस्थित होते हैं, अतः एक उत्प्रेरक, जैसे क्षरण, एक जैविक प्रतिक्रिया को प्रारंभ कर सकता है। इन सुरक्षा कार्यप्रणालियों में श्वेतपटली व तृतीयक दन्त-ऊतक का निर्माण शामिल होता है।[56]

सबसे गहरी परत से दन्तबल्क तक स्थित दन्त-ऊतक में, क्षरण द्वारा प्रभावित होने वाले क्षेत्र पारभासी क्षेत्र, विनाश का क्षेत्र तथा जीवाणिविक छेदन का क्षेत्र हैं।[52] पारभासी क्षेत्र क्षति की प्रक्रिया की आगे बढ़ती सूची का प्रतिनिधित्व करता है और यह वहां स्थित होता है, जहां प्रारंभिक अखनिजीकरण की शुरुआत होती है। जीवाण्विक छेदन तथा विनाश के क्षेत्र आक्रमणकारी जीवाणुओं तथा अंततः दन्त-ऊतक के विघटन के क्षेत्र हैं।

 
डेंटिन के माध्यम से क्षय की तेजी से फैल चिकनी सतह क्षय में इस त्रिकोणीय उपस्थिति बनाता है।

श्वेतपटली दन्त-ऊतक

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दन्त-ऊतक की संरचना सूक्ष्मदर्शी धाराओं, जिन्हें दन्त-ऊतक नलिकाएं कहा जाता है, की एक व्यवस्था होती है, जो गूदे वाले भाग से बाहरी दन्त-मूल या दन्तबल्क की सीमा की ओर बाहर निकलती हैं।[57] दन्त-ऊतक नलिकाओं का व्यास गूदे के पास अधिक (लगभग 2.5 μm) और दन्त-ऊतक व दन्तबल्क के संयोजन-स्थान पर सबसे कम (लगभग 900 nm) होता है।[58] क्षति-प्रक्रिया पूरी दन्त-ऊतक नलिकाओं पर जारी रहती है, जो कि दांत में गहराई तक क्षरण के विकास के परिणामस्वरूप उत्पन्न त्रिभुजाकार पैटर्न के लिये ज़िम्मेदार होती हैं। नलिकाएं क्षरणों को भी तेज़ी से विकसित होने का मौका देती हैं।

इसकी प्रतिक्रियास्वरूप, नलिकाओं के भीतर उपस्थित द्रव इस जीवाण्विक संक्रमण से लड़ने के लिये हमारे प्रतिरोधक तंत्र से इम्युनोग्लोब्युलिन (immunoglobulins) लाता है। इसी समय, आस-पास की नलिकाओं के खनिजीकरण में भी वृद्धि हो जाती है।[59] इसका परिणाम नलिकाओं के निर्माण के रूप में मिलता है, जो कि जीवाण्विक प्रगति की गति को कम करने का एक प्रयास है। इसके अतिरिक्त, जब जीवाणुओं का अम्ल हाइड्रॉक्सीपेटाइट कणों का अखनिजीकरण करता है, तो कैल्शियम व फॉस्फोरस छोड़े जाते हैं, जिससे अधिक संख्या में कणों के अवक्षेपण का मौका मिलता है, जो दन्त-ऊतक नलिकाओं में गहरे तक समा जाते हैं। ये कण एक अवरोध का निर्माण करते हैं और क्षरण के विस्तार को धीमा करते हैं। इन रक्षात्मक प्रतिक्रियाओं के बाद, दन्त-ऊतक को श्वेतपटली माना जाता है।

ऐसा माना जाता है दन्त-ऊतक की नलिकाओं के भीतर उपस्थित द्रवों के कारण दांत के गूदे के भीतर स्थित दर्द अभिग्राही सक्रिय हो जाते हैं।[60] चूंकि श्वेतपटली दन्त-ऊतक ऐसे द्रवों के प्रवाह को रोकता है, अतः संभव है कि जिस दर्द ने जीवाणुओं के आक्रमण की चेतावनी दी होती, वह पहले पहल उत्पन्न ही न हो। इसके परिणामस्वरूप, दांत की किसी भी संवेदनशीलता के बिना दंत क्षरण एक लंबे समय तक प्रगति करता रह सकता है, जिससे दांत की संरचना की बहुत अधिक हानि हो सकती है।

तृतीयक दन्त-ऊतक

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दंत क्षय की प्रतिक्रियास्वरूप, गूदे की दिशा में और अधिक दन्त-ऊतक का उत्पादन हो सकता है। इस नए दन्त-ऊतक का उल्लेख तृतीयक दन्त-ऊतक के रूप में किया जाता है।[58] तृतीयक दन्त-ऊतक का निर्माण आगे बढ़ रहे जीवाणुओं से गूदे की यथासंभव रक्षा करने के लिये किया जाता है। जब अधिक तृतीयक दन्त-ऊतक उत्पन्न हो जाता है, तो गूदे का आकार घट जाता है। इस प्रकार के दन्त-ऊतक को मूल ओडॉन्टोब्लास्ट की उपस्थिति या अनुपस्थिति के अनुसार उप-वर्गीकृत किया गया है।[61] यदि ओडॉन्टोब्लास्ट इतने अधिक समय तक बच जाते हैं कि वे दंत क्षय के प्रति प्रतिक्रिया दे सकें, तो इस स्थिति में उत्पन्न दन्त-ऊतक को “प्रतिक्रियात्मक (reactionary)" दन्त-ऊतक कहते हैं। यदि ओडॉन्टोब्लास्ट नष्ट हो जाते हैं, तो इस स्थिति में उत्पन्न दन्त-ऊतक को “सुधारक (reparative)" दन्त-ऊतक कहते हैं।

सुधारक दन्त-ऊतक की स्थिति में, नष्ट हो चुके ओडॉन्टोब्लास्ट की भूमिका निभाने के लिये अन्य ऊतकों की आवश्यकता होती है। ऐसा माना जाता है कि विकास कारक, विशेषतः टीजीएफ-बीटा (TGF-β),[61] गूदे के फाइब्रोब्लास्ट (fibroblasts) और मेसेन्शिमल (mesenchymal) ऊतकों के द्वारा सुधारक दन्त-ऊतक का निर्माण प्रारंभ करते हैं।[62] सुधारक दन्त-ऊतक औसतन 1.5 μm/प्रतिदिन की दर पर विकसित किया जाता है, लेकिन इसे 3.5 μm/प्रतिदिन तक बढ़ाया जा सकता है। परिणामित दन्त-ऊतक में अनियमित आकार वाली दन्त-ऊतक नलिकाएं होती हैं और संभव है कि वे पहले से मौजूद दन्त-ऊतक नलिकाओं के साथ पंक्तिबद्ध न हों. यह दन्त-ऊतक नलिकाओं के भीतर आगे बढ़ पाने की दंत क्षय की क्षमता को घटा देता है।

 
(क) एक दांत की सतह पर दिखाई क्षय की एक छोटी जगह है। (ख) रेडियोग्राफ़ से दन्त-ऊतक के भीतर अखनीजीकरण के एक एक्स्टेंसिव क्षेत्र का पता चलता है (तीर).(ग) एक छेद दांत के पक्ष में क्षय को हटाने की शुरुआत में की खोज की है। (घ) सभी क्षय को हटा दिया गया।

प्राथमिक निदान में प्रकाश के एक अच्छे स्रोत, दंत दर्पण व अन्वेषक की सहायता से दांत की सभी दृश्य सतहों का निरीक्षण करना शामिल होता है। दंत रेडियोग्राफ (एक्स-रे) दंत क्षरण, विशेषतः दांतों के बीच स्थित क्षरण, को किसी अन्य प्रकार से दर्शनीय होने से पूर्व ही दिखा सकता है। बड़े दंत क्षरण अक्सर नंगी आंखों से देखे जा सकते हैं, लेकिन छोटे घावों को पहचान पाना कठिन हो सकता है। दंत-चिकित्सकों द्वारा, विशिष्ट रूप से गड्ढों व छिद्रों के क्षरण का पता लगाने के लिये, रेडियोग्राफ के साथ ही दृश्य और स्पर्श-द्वारा निरीक्षण का प्रयोग किया जाता है।[63] प्रारंभिक, छिद्र-हीन क्षरण की पहचान अक्सर संदिग्ध क्षेत्र के आर-पार हवा प्रवाहित करके की जाती है, जो नमी को हटा देती है और अखनिजीकृत दन्तबल्क की प्रकाशीय विशेषताओं को परिवर्तित कर देती है।

कुछ दंत अनुसंधानकर्ताओं ने क्षरण की खोज करने के लिये दंत अन्वेषकों का प्रयोग न करने की चेतावनी दी है।[12] जिन स्थितियों में दांत के किसी छोटे भाग का अखनिजीकरण प्रारंभ हो गया हो, लेकिन अभी तक कोई छिद्र उत्पन्न न हुआ हो, उनमें दंत अन्वेषक से पड़ने वाले दबाव के कारण छिद्र का निर्माण हो सकता है। चूंकि, छिद्र के निर्माण से पूर्व क्षति की प्रक्रिया को रोककर लौटाया जा सकता है, अतः फ्लोराइड के साथ क्षरण को रोकना व दांत की सतह को पुनर्खनिजीकृत करना संभव हो सकता है। जब एक छिद्र उपस्थित हो, तो दांत की खो चुकी संरचना को बदलने के लिये पुनर्स्थापना की आवश्यकता होगी।

अनेक बार, गड्ढों व छिद्रों के क्षरणों की पहचान करना कठिन हो सकता है। दन्त-ऊतक तक पहुंचने के लिये जीवाणु दन्तबल्क का भेदन कर सकते हैं, लेकिन तब बाहरी सतह को पुनर्खनिजीकृत किया जा सकता है, विशेषतः यदि फ्लोराइड उपस्थित हो। [64] ये क्षरण, जिन्हें कभी-कभी “छिपे हुए क्षरण (hidden caries)” कहा जाता है, इसके बावजूद भी एक्स-रे रेडियोग्राफ द्वारा देखे जा सकेंगे, लेकिन दांत का दृश्य परीक्षण यह दर्शाएगा कि दन्तबल्क अविकल है अथवा न्यूनतम छिद्रित है।

 
एक मिश्रण जो दांत में एक सबल सामग्री के रूप में इस्तेमाल किया गया।

दांत की नष्ट हो चुकी संरचना पूरी तरह पुनर्निर्मित नहीं होती, हालांकि यदि स्वच्छता को इसके इष्टतम स्तर पर रखा जाए, तो बहुत छोटे क्षतिग्रस्त घावों का पुनर्खनिजीकरण संभव हो सकता है।[20] छोटे घावों के लिये, कभी-कभी सामयिक फ्लोराइड का प्रयोग पुनर्खनिजीकरण को प्रोत्साहित करने के लिये किया जाता है। बड़े घावों के लिये, दंत क्षय की प्रगति को उपचार के द्वारा रोका जा सकता है। उपचार का लक्ष्य दांत की संरचना को बनाए रखना और दांत के और अधिक विनाश को रोकना होता है।

सामान्यतः जल्दी किया गया उपचार देर से किये गये उपचार की तुलना में कम दर्दनाक और कम खर्चीला होता है। असंवेदक (Anesthetics)—स्थानीय, नाइट्रस ऑक्साइड ("हास्य गैस (laughing gas)"), अथवा अन्य अनुशंसित दवाएं— उपचार के दौरान या इसके बाद दर्द को कम करने अथवा उपचार के दौरान बेचैनी से राहत देने के लिये आवश्यक हो सकती हैं।[65] क्षतिग्रस्त पदार्थ के बड़े भागों को दांत से निकालने के लिये एक दंत हैण्डपीस (“ड्रिल”) का प्रयोग किया जाता है। एक चम्मच एक दंत उपकरण होता है, जिसका प्रयोग सावधानीपूर्वक क्षरण को निकालने के लिये किया जाता है और कभी-कभी इसका प्रयोग तब किया जाता है, जब दन्त-ऊतक में हो रहा क्षरण गूदे के पास तक पहुंच जाए.[66] एक बार क्षरण को हटा दिये जाने पर, दांत की खो चुकी संरचना को किसी प्रकार की दंत पुनर्स्थापना की आवश्यकता होती है, ताकि दांत को पुनः इसकी कार्यात्मकता व सुरुचिपूर्ण स्थिति पर वापस लाया जा सके।

पुनर्स्थापनात्मक पदार्थों में दंत सम्मिश्रण, मिश्रित राल, चीनी-मिट्टी और स्वर्ण शामिल हैं।[67] मिश्रित राल व चीनी-मिट्टी को इस प्रकार बनाया जा सकता है कि वे मरीज़ के दांतों के प्राकृतिक रंग के समान दिखाई दें और इसलिये जब सौन्दर्य एक चिंता का विषय हो, तो अक्सर इनका प्रयोग किया जाता है। मिश्रित पुनर्स्थापना दंत सम्मिश्रण अथवा स्वर्ण जितनी मज़बूत नहीं होती; कुछ दंत चिकित्सक स्वर्ण को पिछले दांतों, जिनमें चबाने का बल बहुत अधिक होता है, के लिये एकमात्र संस्तुति-योग्य पुनर्स्थापना मानते हैं।[68] जब क्षरण बहुत अधिक व्यापक हो, तो यह संभव है कि दांत की संरचना में पर्याप्त रूप से इतना स्थान न हो कि पुनर्स्थापनात्मक पदार्थ को दांत के भीतर रखा जा सके। अतः एक शीर्ष की आवश्यकता हो सकती है। यह पुनर्स्थापना एक टोपी की तरह दिखाई देती है और इसे दांत के शेष बचे शीर्ष के ऊपर जोड़ दिया जाता है। शीर्ष अक्सर स्वर्ण, चीनी-मिट्टी या धातु में जुड़ी चीनी-मिट्टी से बने होते हैं।

 
अंततः व्यापक निकासी की आवश्यकता के साथ एक दांत क्षय.

कुछ विशिष्ट स्थितियों में, दांत की पुनर्स्थापना के लिये एन्डोडॉन्टिक उपचार (endodontic therapy) करना आवश्यक हो सकता है।[69] एन्डोडॉन्टिक उपचार, जिसे “रूट कनाल (root canal)" भी कहा जाता है, कि अनुशंसा तब की जाती है, यदि दांत में उपस्थित गूदा क्षति-कारक जीवाणुओं के कारण या चोट के कारण नष्ट हो जाए. रूट कनाल के दौरान, दांत के क्षतिग्रस्त भाग के साथ ही दांत के गूदे, नसों व संवहनी ऊतकों सहित, को हटा दिया जाता है। नलिकाओं (canals) को एन्डोडॉन्टिक फाइलों के औज़ारों के द्वारा साफ करके उन्हें आकार दिया जाता है, फिर सामान्य रूप से उन्हें रबर-जैसे पदार्थ के द्वारा भरा जाता है, जिसे गुटा पर्चा (gutta percha) कहते हैं।[70] दांत को भरा जाता है और इसमें एक शीर्ष भी जोड़ा जा सकता है। रूट कनाल के पूर्ण हो जाने पार दांत अब प्राण-हीन है क्योंकि यह किसी भी सजीव ऊतक से रहित है।

उच्छेदन भी दांतों के क्षरण का एक उपचार हो सकता है। क्षतिग्रस्त दांत को हटाने का निर्णय तब लिया जाता है, यदि क्षतिकारक प्रक्रिया के कारण दांत इतना अधिक नष्ट हो चुका हो कि उसे प्रभावी रूप से पुनर्स्थापित न किया जा सकता हो। कभी-कभी उच्छेदन पर विचार तब किया जाता है, यदि दांत के लिये कोई विरोधी दांत उपलब्ध न हो अथवा जब इससे भविष्य में आगे कोई समस्या उत्पन्न हो सकती हो, जैसा कि प्रज्ञा-दंत (Wisdom teeth) के मामले में हो सकता है।[71] उन स्थितियों में भी उच्छेदन को प्राथमिकता दी जा सकती है, जब मरीज़ दांत की पुनर्स्थापना में आने वाला खर्च या तकलीफ न उठाना चाहता हो।

दंत क्षय के उपचार में औषधीय पौधों

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[72]

एस. नं. वानस्पतिक नाम एक हिस्सा का इस्तेमाल निषेध अवयव
1. एकेकिया ल्यूकोफ्लोएअ छाल स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
2. अल्बिज़िया लेबेक छाल स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
3. अबिएस कैनाडेंसिस पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
4. एरिस्टोलोशिया साइम्बिफेरा पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
5. एनोना सेनेगलेन्सिस पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
6. अल्बिज़िया ज्युलिब्रिसीं पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
7. ऑलियम सतिवं बल्ब स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
8. ऐनासैक्लास रेथ्रम जड़ स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
9. एरेका कैटिषू नट्स स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
10. ब्रेय्निया निवोसस पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
14. सिट्रस मेडिका जड़ें स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
15. कोप्तिडिस र्हिजोम पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
16. केसलपिनिया मर्टिअस फल स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स, स्ट्रेप्टोकॉकस ओरालिस, लैक्तोबसिलस कसेइ
17. कोकोस न्यूसीफेरा पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
18. काएसाल्पिनिया प्य्रामीडलीस पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
19. चेलीडोनिम मजूस पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
20. ड्रोसेरा पेल्टटा पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स, स्ट्रेप्टोकॉकस सौब्रिनस
21. एम्बेलिया राइब्स फल स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
22. एरीथ्रिना वेरीगाटा जड़ स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स, स्ट्रेप्टोकॉकस सौब्रिनस
23. युस्लेअ नाटलेंसिस पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
24. फिस्कास माइक्रोकार्पा हवाई हिस्सा स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
25. जेम्नेमा सिलवेस्टर पत्तियां, जड़ें स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
27. ग्लीस्र्र्हिज़ा ग्लाब्र जड़ स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
28. हममेलिस वर्जिनियाना पत्तियां एक्टिनोमाइसेस सैप., एक्टिनोमाइसेस ओडोंटोलिटीकस
29. हारूनगाना मादागस्करिएन्सिस पत्तियां एक्टिनोमाइसेस, फ्युसोबैक्टेरियम, लैक्टोबकिलस, प्रेवोटेल्ला, प्रोपिओनी बैक्टेरियम, स्ट्रेप्टोकोकस सैप.
30. हेलीचेरिस्म इटालीकम पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स, स्ट्रेप्टोकॉकस संगीअस, स्ट्रेप्टोकॉकस सौब्रिनस
31. जिन्को बाइलोबा पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
32. ज्यूनीपेरस वर्जिनीयाना पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
33. कैमपेरिया पंडूरता ड्राइड रेहिज़ोम्स रूट स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
34. लेगेनारिया सिकेरानिया पत्तियां स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
35. मेंथा अरवेंसिस पत्तियां स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
36. मिकानिया लाविगता हवाई भाग स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स, स्ट्रेप्टोकॉकस सौब्रिनस
37. मिकानिया ग्लोमेराटा पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस क्राइकेटस
38. मेलिस्सा औफिशिनालिस पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स, स्ट्रेप्टोकॉकस संगीअस
39. मैगनोलिया ग्रैंडीफ्लोरा पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स, स्ट्रेप्टोकॉकस संगीअस
40. मेलिस्सा औफिशिनालिस पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स, स्ट्रेप्टोकॉकस संगीअस
41. मैगनोलिया ग्रैंडीफ्लोरा पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स, स्ट्रेप्टोकॉकस संगीअस
42. निकोटियाना टाबाकम पत्तियां स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
43. फ्य्सालिस अन्गुलाटा फूल स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
44. पीनस वर्जिनियाना पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
45. पिस्टासिया लेंटीसकस मैस्टिक गम पॉरफिरोमोनस जिन्जिवालिस
46. पिस्टासिया वेरा पूरे संयंत्र मौखिक स्ट्रेप्टोकॉकस
47. पाइपर क्युबेबा पूरे संयंत्र पिरियडोंटल पैथोजेन्स
48. पॉलीगोनम कस्पीडटम जड़ स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स, स्ट्रेप्टोकॉकस संगीअस
49. हेडिया ब्रासिलीनसिस फल स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
50. रहस कोरिअरिया पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स, स्ट्रेप्टोकॉकस संगीअस
51. रहस कोरिअरिया पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स, स्ट्रेप्टोकॉकस संगीअस
52. रोस्मारीनस औफिशिनालिस पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
53. क्युरेकस इन्फेक्तोरीया पित्त स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
54. रहस कोरिअरिया पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स, स्ट्रेप्टोकॉकस संगीअस
55. स्येज्यगियम क्युमिनी छाल स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
56. सस्साफ्रास अल्बिडम पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
57. सोलानम क्सेथाओकार्पम पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स
58. स्येज्यगियम अरोमैटीकम सूखे फूल स्टाफीलोकोकस ओरीयस
59. थाइमस वॉल्गरिस पूरे संयंत्र स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स, स्ट्रेप्टोकॉकस संगीअस
60. टानासेटम वल्गारे पूरे संयंत्र स्टाफीलोकोकस ओरीअस
61. थ्यूया प्लिकाटा पूरे संयंत्र स्टाफीलोकोकस ओरीअस
62. ज़िज़िफुस जोअज़िरो पूरे संयंत्र स्टाफीलोकोकस ओरीअस
 
सामान्यतः टूथब्रशेस से दांत साफ किया जाता है।

मौखिक स्वच्छता

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व्यक्तिगत स्वच्छता देखभाल में प्रतिदिन ठीक से दांत साफ करना (brushing) और मुलायम धागे से सफाई करना (flossing) शामिल हैं।[5] मौखिक स्वच्छता का उद्देश्य मुंह में बीमारी के किसी भी हेतुकीय प्रतिनिधि की उपस्थिति को कम करना होता है। दांत साफ करने व मुलायम धागे से सफाई करने का मुख्य उद्देश्य प्लाक को हटाना और इसके निर्माण को रोकना होता है। अधिकांशतः प्लाक में जीवाणु होते हैं।[73] जीवाण्विक प्लाक की मात्रा बढ़ने पर, जब खाद्य-पदार्थों में उपस्थित कार्बोहाइड्रेट प्रत्येक भोजन या नाश्ते के बाद दांतों पर छूट जाते हैं, तो दांतों पर दंत क्षय का खतरा बढ़ जाता है। एक टूथब्रश का प्रयोग अभिगम्य सतहों पर से प्लाक को हटाने के लिये तो किया जा सकता है, लेकिन दांतों के बीच से या चबाने वाली सतहों पर स्थित गड्ढों व दरारों के भीतर से नहीं. यदि इसे सही तरह से प्रयोग किया जाए, तो दंत फ्लॉस उन स्थानों से प्लाक को हटा सकता है, जिन पर अन्यथा समीपस्थ क्षरण विकसित हो सकता है। स्वच्छता की अन्य सहायक विधियों में अंतर्दंत ब्रश (interdental brushes), वॉटर पिक (water picks) और माउथवॉश (mouthwashes) शामिल हैं।

हालांकि मौखिक स्वास्थ्य संभवतः दंत क्षय के बजाय मसूड़ों की बीमारियों को रोकने में अधिक प्रभावी है। ब्रश और फ्लोराइड टूथपेस्ट उन गड्ढों व दरारों तक नहीं पहुंच सकते, जिनमें चबाए जाते समय भोजन फंस जाता है। (अवरोधक क्षरण बच्चों में होने वाले कुल क्षरण का 80 से 90 प्रतिशत है) (वीन्ट्रॉब 2001 (Weintraub, 2001))। घाव से होने वाले क्षरण का खतरा प्रथम व द्वितीय अग्रचर्वणक दातों पर सर्वाधिक होता है।)

व्यावसायिक स्वच्छता देखभाल में दांतों की नियमित जांच व सफाई शामिल होती है। कभी-कभी प्लाक को पूरी तरह हटा पाना कठिन होता है और दंत-चिकित्सक या दंत-स्वास्थ्य विज्ञानी की आवश्यकता पड़ सकती है। मौखिक स्वास्थ्य के अतिरिक्त, दंत निरीक्षण के दौरान रेडियोग्राफ लिये जा सकते हैं, ताकि मुंह के उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में संभावित दंत क्षरणों के विकास की पहचान की जा सके।

आहारीय संशोधन

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दांतों के स्वास्थ्य के लिये, चीनी के सेवन की आवृत्ति, उपभोग की गई चीनी की मात्रा से अधिक महत्वपूर्ण होती है।[34] चीनी और अन्य कार्बोहाइड्रेटों की उपस्थिति में, मुंह में स्थित जीवाणु ऐसे अम्ल उत्पन्न करते हैं, जो दन्तबल्क, दन्त-ऊतक व दन्त-मूल को अखनिजीकृत कर सकते हैं। दांतों को ऐसे वातावरण में लाए जाने की आवृत्ति जितनी अधिक होगी, दंत क्षरण उत्पन्न होने की संभावना भी उतनी ही अधिक बढ़ जाएगी. अतः नाश्ते की मात्रा को कम से कम रखने की अनुशंसा की जाती है क्योंकि नाश्ता करने से मुंह में उपस्थित जीवाणुओं को अम्ल-निर्माण के लिये पोषण की सतत आपूर्ति मिलती है। साथ ही, बहुत अधिक चबाए जाने वाले और चिपचिपे खाद्य-पदार्थ (जैसे सूखे मेवे या कैण्डी) लंबे समय तक दांतों पर चिपके रहते हैं और परिणामस्वरूप वे किसी भोजन के एक भाग के रूप में सबसे अच्छी तरह खाए जाते हैं। भोजन के बाद ब्रश से दांतों की सफाई करना अनुशंसित है। बच्चों के लिये, अमेरिकन डेंटल असोसियेशन (American Dental Association) और यूरोपियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक डेंटिस्ट्री (European Academy of Paediatric Dentistry) शर्करा-युक्त पेय-पदार्थों की खपत की आवृत्ति को सीमित करने और शिशुओं को नींद के दौरान शिशु बोतलें (baby bottles) न देने की अनुशंसा करते हैं।[74][75] माताओं को भी यह सलाह दी जाती है कि वे अपने बर्तन और कप अपने शिशुओं के साथ साझा करने से बचें, ताकि मां के मुंह से जीवाणु के स्थानांतरण को रोका जा सके। [76]

यह पाया गया है कि यदि दूध और चीज़ के विशिष्ट प्रकारों, जैसे शेडर (Cheddar) को दांतों के लिये संभावित रूप से हानिकारक भोजन का सेवन करने के तुरंत बाद लिया जाए, तो वे दंत क्षय का सामना करने में सहायक हो सकते हैं।[34] साथ ही, दांतों की रक्षा करने के लिये कुछ देशों में च्युइंग गम में ज़ाइलिटॉल (xylitol) (एक शर्करा अल्कोहल) का प्रयोग व्यापक पैमाने पर किया जाता है और यह फिनलैण्ड के कैण्डी उद्योग में विशेष रूप से लोकप्रिय है।[77] प्लाक को कम करने में ज़ाइलिटॉल संभवतः इसलिये प्रभावी होता है क्योंकि जीवाणु इसका उपयोग अन्य शर्कराओं की तरह कर पाने में सक्षम नहीं होते.[78] यह भी ज्ञात हुआ है कि चबाने और जीभ पर स्थित स्वाद अभिग्राहकों की उत्प्रेरणा लार के उत्पादन व मुक्ति को बढ़ाती है, जिसमें कुछ प्राकृतिक प्रतिरोधक होते हैं, जो मुंह में पीएच (pH) के स्तर को उस बिंदु तक नीचे जाने से रोकते हैं, जहां दन्तबल्क अखनिजीकृत हो सकता है।[79]

 
सामान्य दंत चिकित्सा ट्रे के लिए फ्लोराइड का इस्तेमाल किया जाता है।

अन्य निरोधक उपाय

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दंत सीलेंट (Dental Sealant) का प्रयोग रोकथाम का एक माध्यम है। एक सीलेंट एक पतली प्लास्टिक-नुमा परत होती है, जिसे चर्वणक दातों की चबाने वाली सतहों पर लगाया जाता है। यह परत चबाए जाने पर उत्पन्न होने वाले दबाव के चलते भोजन को खांचों के भीतर गड्ढों व दरारों में फंस जाने से रोकती है, ताकि वहां निवास करने वाले जीवाणु उस कार्बोहाइड्रेट से वंचित रह जाते हैं, जिसे वे अम्ल अखनिजीकरण में बदलते हैं और इस प्रकार यह गड्ढों व दरारों में क्षरण के निर्माण को रोकती है, जो कि दंत क्षरण का सबसे आम रूप हैं। बच्चों के दांतों पर सीलेंट को सामान्यतः चर्वणक दांतों के उगने के कुछ ही समय बाद लगाया जाता है। बूढ़े लोग भी दंत सीलेंट से लाभ उठा सकते हैं, लेकिन सामान्यतः उनके दंत इतिहास और क्षरण निर्माण की संभावना पर विचार किया जाता है।

दंत क्षरण से बचाव के लिये अक्सर दूध व हरी सब्जियों आदि जैसे खाद्य-पदार्थों में मिलनेवाले कैल्शियम की अनुशंसा की जाती है। यह प्रदर्शित किया जा चुका है कि कैल्शियम तथा फ्लोराइड संपूरक दंत क्षय की घटनाओं को कम करते हैं। दन्तबल्क के हाइड्रॉक्सीपेटाइट कणों को बांध कर फ्लोराइड दांत के क्षय को रोकने में सहायता करता है।[80] समाविष्ट कैल्शियम दन्तबल्क को अखनिजीकरण के प्रति और इस प्रकार क्षय के प्रति, अधिक प्रतिरोधक बनाता है।[81] दांत की परत की रक्षा के लिये फ्लोराइड के सामयिक प्रयोग की भी अनुशंसा की जाती है। इसमें फ्लोराइड टूथपेस्ट या माउथवॉश शामिल हो सकता है। अनेक दंत चिकित्सक नियमित जांच के एक भाग के रूप में फ्लोराइड के सामयिक प्रयोग को शामिल करते हैं।

अन्य उत्पादों, पुनर्खननिजीकरण के सन्दर्भ में जिनकी प्रभावकारिता का समर्थन करने के लिये बहुत कम या थोड़े वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध हैं, में डीसीपीडी (DCPD), एसीपी (ACP), कैल्शियम यौगिक, फ्लोराइड, तथा इनैमेलॉन (Enamelon) शामिल हैं।

पुनर्खनिजीकरण का कार्य दंत चिकित्सक द्वारा व्यावसायिक रूप से भी किया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त, हालिया अनुसंधान यह दर्शाते हैं कि अर्गोन आयन लेज़र (argon ion lasers) के निम्न तीव्रता वाले लेज़र विकिरण दन्तबल्क क्षरण और श्वेत-चिह्न क्षरण की संभावना को रोक सकते हैं।[82]

चूंकि जीवाणु बुरे मौखिक स्वास्थ्य में योगदान करने वाले प्रमुख कारक हैं, अतः दंत क्षरण के लिये किसी टीके की खोज करने के लिये वर्तमान में अनुसंधान जारी है। 2004 तक प्राप्त जानकारी के अनुसार, जानवरों पर ऐसी एक दवा का प्रयोग सफलतापूर्वक किया जा चुका है,[83] और मई 2006 में मिली जानकारी के अनुसार अभी यह मनुष्यों के लिये चिकित्सीय परीक्षण चरण में है।[84]

भोजन के बाद च्युइंग गम चबाना लार के प्रवाह को बढ़ाता है, जो अम्लीय पीएच (pH) वातावरण को प्राकृतिक रूप से कम करती है और पुनर्खनिजीकरण को प्रोत्साहित करती है।

ज़ाइलिटॉल लॉली (Xylitol lollies) और गम (gum) भी स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स (स्ट्रेप्टोकॉकस mutans) की वृद्धि को रोकते हैं।

महामारी-विज्ञान

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विकलांगता-2004 में 100,000 निवासियों के जीवन प्रति समायोजित दंत क्षय.[85][144][145][146][147][148][149][150][151][152][153][154][155][156]

पूरे विश्व में, अधिकांश बच्चे और अनुमानित रूप से नब्बे प्रतिशत वयस्कों ने क्षरण का अनुभव किया है और यह बीमारी एशियाई और लैटिन अमरीकी देशों में सर्वाधिक तथा अफ्रीकी देशों में सबसे कम प्रचलित है।[86] संयुक्त राज्य अमरीका में, दंत क्षरण बचपन की सबसे आम दीर्घकालिक बीमारी है और यह अस्थमा की तुलना में कम से कम पांच गुना ज़्यादा आम है।[87] यह बच्चों में दांतों के टूटने का मुख्य रोगात्मक कारण है।[88] पचास वर्ष से अधिक आयु के उनत्तीस से उनसठ प्रतिशत वयस्क क्षरण का अनुभव करते हैं।[89]

कुछ विकसित देशों में मामलों की संख्या में कमी आई है और सामान्यतः इस कमी का श्रेय बेहतर मौखिक स्वास्थ्य की आदतों में सुधार और फ्लोराइड उपचार जैसे प्रतिरोधक उपायों को दिया जाता है।[90] इसके बावजूद, जिन देशों ने दंत क्षय के मामलों में सकल कमी का अनुभव किया है, उनमें भी इस बीमारी के वितरण में विषमता बनी हुई है।[89] संयुक्त राज्य अमरीका व यूरोप के बच्चों की बाईस प्रतिशत जनसंख्या दंत क्षय के कुल मामलों के साठ से अस्सी प्रतिशत को झेल रही है।[91] इस बीमारी का एक इसी प्रकार का असमान वितरण पूरे विश्व में देखा जाता है, जिसमें कुछ बच्चों में शून्य या बहुत कम क्षरण है, जबकि अन्य बच्चों में इसकी मात्रा बहुत उच्च है।[89] ऑस्ट्रेलिया, नेपाल और स्वीडन में बच्चों में दंत क्षय के मामलों की संख्या कम है, जबकि कोस्टा रिका और स्लोवाकिया में यह संख्या बहुत अधिक है।[92]

पारंपरिक “डीएमएफ (DMF)" (क्षय/अनुपस्थित/पूरित (decay/missing/filled)) सूचकांक लोगों के बीच क्षरण के प्रचलन और साथ ही आवश्यक दंत उपचार का अनुमान लगाने की सबसे आम विधि है। यह सूचकांक एक सलाई, दर्पण व कपास के गोले का प्रयोग करते हुए व्यक्तियों के वास्तविक चिकित्सीय परीक्षण पर आधारित होता है। चूंकि डीएमएफ सूचकांक एक्स-रे चित्रण के बिना बनाया जाता है, अतः यह क्षरण के वास्तविक विस्तार और आवश्यक उपचार को कम आंकता है।[64]

 
1300s से एक छवि (इसवी) इंग्लैंड के एक संदंश के साथ एक दंत चिकित्सक दांत निकालते हुए का चित्रण.

दंत क्षरण का एक बहुत लंबा इतिहास है। दस लाख वर्षों से भी अधिक समय पूर्व ऑस्ट्रेलोपिथेकस (Australopithecus) जैसे मानव-पूर्वज दंत छिद्रों से ग्रसित रहे थे।[93] क्षरण के विस्तार में सर्वाधिक वृद्धि को खान-पान में परिवर्तनों के साथ जोड़ा जाता रहा है।[93][94] पुरातात्विक प्रमाण यह दर्शाते हैं कि दंत क्षय एक प्राचीन बीमारी है, जो प्रागैतिहासिक काल में भी मौजूद थी। नवपाषाण काल के दस लाख वर्ष पुराने कपाल का तिथि-निर्धारण (skulls dating) क्षरण के चिह्न प्रदर्शित करता है, हालांकि पूर्व-पाषाण युग व मध्य-पाषाण युग के कपाल इसका अपवाद हैं।[93] नव-पाषाण काल में क्षरण के बढ़े हुए मामलों का कारण पौधों से प्राप्त भोजन, जो कार्बोहाइड्रेट युक्त होता है, की बढ़ी हुई खपत को दिया जा सकता है।[95] यह भी माना जाता है कि दक्षिण एशिया में चावल की खेती की शुरुआत के कारण भी क्षरण के मामलों में वृद्धि हुई।

5000 ई. पू. की सुमेरियाई पुस्तक क्षरण के कारण के रूप में एक “दंत कृमि” का वर्णन करती है।[96] इस विश्वास के प्रमाण भारत, मिस्र, जापान और चीन में भी प्राप्त हुए हैं।[94] खुदाई में मिली पुरानी खोपड़ियां प्राचीन दंत कार्य के प्रमाण दर्शाती हैं। पाकिस्तान में मिले 5500 ई.पू. से 7000 ई.पू. पुराने दांत लगभग सटीक छिद्र दर्शाते हैं, जो प्राचीन दंत ड्रिल द्वारा किये गये थे।[97] मिस्र के 1550 ई.पू. के एक ग्रंथ, द एबर्स पैपीरस (The Ebers Papyrus) में दांतों की बीमारियों का उल्लेख है।[96] 668 से 626 ई.पू. के दौरान असीरिया के सर्गोनाइड राजवंश के दौर में, राजा के चिकित्सकों द्वारा किये गये लेखन में सूजन के कारण एक दांत को उखाड़ने की आवश्यकता का वर्णन किया गया है।[94] रोमन साम्राज्य में, पके हुए भोजन के व्यापक प्रयोग के कारण क्षरण के प्रचलन में थोड़ी वृद्धि हुई। [91] मिस्र की सभ्यता के साथ ही, ग्रीक-रोमन सभ्यता में क्षरण से उत्पन्न दर्द के लिये उपचार उपलब्ध थे।[94]

पूरे कांस्य युग और लौह-युग के दौरान क्षरण की दर निम्न बनी रही, लेकिन मध्य युग में इसमें अत्यधिक वृद्धि हुई। [93] क्षरण के प्रचलन में आवधिक वृद्धि 1000 ईसवी में हुई वृद्धि की तुलना में कम रही है, जब गन्ना पश्चिमी विश्व में अधिक सरलता से मिलने लगा. उपचार में मुख्यतः जड़ी-बूटियों संबंधी उपचार और जादू-टोना शामिल था, लेकिन कभी-कभी इनमें रक्तस्राव भी शामिल होता था।[98] उस काल के हज्जाम शल्य-चिकित्सकों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं में दंत उच्छेदन भी शामिल था।[94] प्रशिक्षुता के द्वारा अपना प्रशिक्षण लेकर, ये स्वास्थ्य प्रदाता दांत के दर्द को समाप्त करने में काफी हद तक सफल रहे थे और संभवतः उन्होंने अनेक मामलों में संक्रमण के व्यवस्थित विस्तार को भी रोका था। रोमन कैथलिकों में संत एपोलॉनिया (Saint Apollonia) से की जाने वाली प्रार्थनाओं, भाग्य के रक्षक (the patroness of dentistry), का उद्देश्य दांत के संक्रमण से उपजे दर्द का उपचार करना था।[99]

इस बात के प्रमाण भी उपलब्ध हैं कि उत्तर अमरीका में उपनिवेश बसाने वाले यूरोपीय लोगों के संपर्क में आने के बाद उत्तर अमरीका के भारतीयों (North American Indians) में दंत क्षरण की समस्या में वृद्धि हुई। उपनिवेशन से पूर्व, उत्तर अमरीका के भारतीय (North American Indians) शिकार से प्राप्त भोजन पर आश्रित थे, लेकिन इसके बाद वे मकई की खेती पर अत्यधिक निर्भर हो गए, जिसने इस समूह को क्षरण के प्रति अधिक संवेदनशील बना दिया। [93]

मध्य इस्लामिक विश्व में, अल-गज़्ज़र (al-Gazzar) और अविसीना (Avicenna) (द कैनन ऑफ मेडिसिन (The Canon of Medicine) में) जैसे मुस्लिम चिकित्सकों ने क्षरण का सबसे प्राचीन ज्ञात उपचार प्रदान किया है, हालांकि अपने पूर्वजों की ही तरह उनका भी यह विश्वास था कि इसका कारण दंत-कृमि थे। 1200 ईसवी में गौबारी (Gaubari) नामक एक अन्य मुस्लिम दंत-चिकित्सक ने इस विश्वास को झूठा साबित कर दिया, जो अपनी पुस्तक बुक ऑफ एलाइट कन्सर्निंग द अनमास्किंग ऑफ मिस्ट्रीज़ एण्ड टीयरिंग ऑफ वेल्स (Book of the Elite concerning the unmasking of mysteries and tearing of veils) में, दंत-कृमि को क्षरण का कारण मानने के विचार को खारिज करने वाले पहले व्यक्ति थे और उन्होंने कहा कि वास्तव में दंत कृमि का कोई अस्तित्व ही नहीं है। इस प्रकार तेरहवी सदी के बाद से इस्लामिक विश्व में दंत-कृमि के सिद्धांत को स्वीकार करना बंद कर दिया गया।[100]

यूरोपीय ज्ञान युग (European Age of Enlightenment) के दौरान, यूरोपीय चिकित्सा समुदाय में भी इस विश्वास को स्वीकार करना बंद कर दिया गया कि क्षरण का कारण कोई “दंत-कृमि” था।[101] पियरे फॉचार्ड (Pierre Fauchard), जिन्हें आधुनिक दंत-चिकित्सा के जनक के रूप में जाना जाता है, इस बात को अस्वीकार करने वाले शुरुआती लोगों में से थे कि दंत क्षय कृमि के कारण होता था और उन्होंने उल्लेख किया कि चीनी दांतों व मसूड़ों के लिये हानिकारक थी।[102] 1850 में, क्षरण के प्रचलन में एक अन्य तीव्र वृद्धि उत्पन्न हुई और ऐसा माना जाता है कि ऐसा भोजन में हुए व्यापक परिवर्तनों के कारण हुआ था।[94] इस समय से पूर्व तक, क्षरण का सबसे ज्यादा होने वाला प्रकार दांत की ग्रीवा में होने वाला क्षरण था, लेकिन गन्ने, परिशोधित आटे, ब्रेट और मीठी चाय की उपलब्धता में हुई वृद्धि के साथ ही गड्ढों व दरारों में होने वाले क्षरण में भी वृद्धि हुई।

1890 के दशक में, डब्ल्यू. डी. मिलर (W.D. Miller) ने अध्ययनों की एक श्रृंखला आयोजित की, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने दंत क्षरण की एक व्याख्या दी, जो वर्तमान सिद्धांतों पर प्रभाव डालने वाली सिद्ध हुई। उन्होंने पाया कि मुंह में जीवाणु रहते हैं और वे ऐसे अम्ल उत्पन्न करते हैं, जो किण्वन-योग्य कार्बोहाइड्रेट की उपस्थिति में दांत की संरचना का विघटन कर देते हैं।[103] इस व्याख्या को कीमोपैरासाइटिक क्षरण सिद्धांत (chemoparasitic caries theory) के रूप में जाना जाता है।[104] जी. वी. ब्लेक (G.V. Black) तथा जे. एल. विलियम्स (J.L. Williams) द्वारा प्लाक पर किये गये अनुसंधान के साथ ही, मिलर का योगदान क्षरण के हेतुविज्ञान की वर्तमान व्याख्या का आधार बना। [94] 1921 में फर्नेन्डो ई. रॉड्रिग्ज़ वर्गेस (Fernando E. Rodriguez Vargas) ने जीवाणुओं की विशिष्ट प्रजातियों में से अनेक की पहचान की थी।

इन्हें भी देखें

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  • बिल्ली के समान ओडोंटोक्लास्टिक पुनःशोषी घाव
  • एसिड कटाव
  • मौखिक सूक्ष्मजैविकी

फ़ुटनोट्स और स्रोतों

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बाहरी कड़ियाँ

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