दक्षिण कोरिया का इतिहास

कोरिया में ई. पू. १९१८ से १३९ ई. तक कोर-यो (Kor-Yo) वंश का राज्य था जिससे इस देश का नाम कोरिया पड़ा। चीन तथा जापान से इस देश का अधिक संपर्क रहा है। जापान निवासी इसे चोसेन (Chosen) कहते रहे हैं जिसका शाब्दिक अर्थ है सुबह की ताज़गी का देश। यह देश अगणित बार बाह्य आक्रमणों से त्रस्त हुआ। फलत: इसने अनेक शताब्दियों तक राष्ट्रीय एकांतिकता की भावना अपनाना श्रेयस्कर माना। इस कारण इसे संसार में 'यती देश' (Hermit Kingdom) कहा जाता रहा है।

अनेक शताब्दियों तक यह चीन का एक राज्य समझा जाता था। १७७६ ई. में इसने जापान के साथ संधि-संपर्क स्थापित किया। सन् १९०४-१९०५ ई. के रूस-जापान युद्ध के पश्चात् यह जापान का संरक्षित क्षेत्र बना। २२ अगस्त् १९१० ई. को यह जापान का अंग बना लिया गया। द्वितीय महायुद्ध के समय जब जापान ने आत्मसमर्पण किया तब १९४५ ई. में याल्टा संधि के अनुसार ३८ उत्तरी अक्षांश रेखा द्वारा इस देश को दो भागों में विभाजित कर दिया गया। उत्तरी भाग पर रूस का और दक्षिणी भाग पर संयुक्त राज्य अमरीका का अधिकार हुआ। पश्चात् अगस्त १९४८ ई. में दक्षिणी भाग में कोरिया गणतंत्र का तथा सितंबर, १९४८ ई. में उत्तरी कोरिया में कोरियाई जनतंत्र (Korean Peoples Democratic Republic) की स्थापना हुई। दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल और उत्तर कोरिया की पियांगयांग बनाई गई। सन् १९५३ ई. की पारस्परिक संधि के अनुसार ३८ उत्तर अक्षांश को विभाजन रेखा मानकर इन्हें अब उत्तरी तथा दक्षिणी कोरिया कहा जाने लगा है।

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