दखमा या 'टॉवर ऑफ साइलेंस' (निस्तब्धता का दुर्ग) पारसियों के कब्रिस्तान को कहते हैं। यह गोलाकार खोखली इमारत के रूप में होता है जिसमें शव कौओं, चीलों आदि के खाने के लिए रख दिये जाते हैं। यहां पर पारसी लोग अपने मृत जनों का अंतिम संस्कार करते हैं। पारसी समुदाय में मृत शवों को न ही जलाया जाता है और न ही दफ़नाया जाता है, बल्कि उन शवों की चील, कौओं और अन्य पशु-पक्षियों के लिए आहार स्वरूप छोड़ दिया जाता है।

ईरान के याज्द प्रदेश में स्थित एक दखमा

दरअसल, पारसी पृथ्वी, जल और अग्नि को बहुत पवित्र मानते हैं, इसलिए समाज के किसी व्यक्ति के मर जाने पर उसकी देह को इन तीनों के हवाले नहीं करते। इसके बजाय मृत देह को आकाश के हवाले किया जाता है। मृत देह को एक ऊंचे बुर्ज (टावर ऑफ साइलेंस) पर रख दिया जाता है, जहां उसे गिद्ध और चील जैसे पक्षी खा जाते हैं। इस ऊंचे या शव निपटान के स्थान को "दाख्मा" कहते हैं और पूरी प्रक्रिया को “दोखमेनाशीनी” कहा जाता है।

 
मुम्बई का दखमा

मुंबई के मालाबार हिल पर एक टावर ऑफ साइलेंस स्थित है। मालाबार हिल्स मुंबई का सबसे पॉश इलाका है। यह चारों ओर से घने जंगल से घिरा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि इसका निर्माण 19 वीं सदी में हुआ था। टावर ऑफ़ साइलेंस में केवल एक ही लोहे का दरवाज़ा है। टावर का ऊपरी हिस्सा खुला रहता हैं, जहां शवों को रखा जाता है। यहाँ सिर्फ पारसियों के शवों को रखा जाता है क्योंकि उनका मानना है कि आग, पानी बहुत पवित्र है; इन्हें अपवित्र नहीं करना चाहिए इसलिए वह अपनों का शरीर पशु, पक्षी, जानवर, आकाश के हवाले कर देते हैं।