दग्धाक्षर
दग्धाक्षर वे अक्षर हैं जिन्हें छंदशास्त्र में अशुभ माना जाता है। इनका प्रारंभ में प्रयोग से छंद को दूषण माना जाता है, व कवि पर विपत्ति की संभावना रहती है। इसलिए आचार्यों ने इनके आरंभ में प्रयोग को वर्जित माना है। अर्थात् काव्य के आरंभ में इनका प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। पहले इनकी संख्या १९ मानी जाती थी परन्तु आगे नए कवियों ने इनकी संख्या घटाकर ५ कर दी है।[1]
ये ५ दग्धाक्षर निम्न हैं:
झ, ह, र, भ ,ष
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ हिन्दी छन्दोलक्षण. वाणी प्रकाशन.
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