दमादम मस्त क़लन्दर
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दमादम मस्त क़लन्दर भारतीय उपमहाद्वीप का एक अत्यंत लोकप्रिय सुफ़िआना गीत है जो सिन्ध प्रांत के महान संत झूले लाल क़लन्दर को सम्बोधित कर के उनके सामने एक माँ की फ़रियाद रखता है। यह गाना मिश्रित पंजाबी और सिन्धी भाषाओँ में है लेकिन यह पूरे उपमहाद्वीप में ख्याति प्राप्त कर चुका है। इसे बहुत से जाने-माने गायकों ने गाया है, जैसे के नुसरत फतह अली खान, रूना लैला और रेश्मा. वडाली भाई , हंसराज हंस, शाजिया खुश्क आदि 'दमादम मस्त क़लन्दर' का अर्थ है 'हर सांस (दम) में मस्ती रखने वाला फ़क़ीर (क़लन्दर)।'
चुने हुए छंद
संपादित करेंयह इस गाने के चुने हुए छंद हैं। पूर्ण गाने में और भी छंद आते हैं। झूले लाल के साथ-साथ इसमें एक और सूफ़ी संत शाहबाज़ क़लन्दर का भी ज़िक्र है। झूले लाल साईं हमेशा लाल चोग़े पहनते थे इसलिए उन्हें 'लाल' या 'लालन' नाम से पुकारा जाता है। गाने का हर छंद 'दमादम मस्त क़लन्दर, अली दम-दम दे अन्दर' पर ख़त्म होता है जिसका मतलब है 'दम-दम में मस्ती रखने वाला क़लन्दर (फ़क़ीर), जो हर सांस में रब (अली) को रखता है।'
सिन्धी-पंजाबी (देवनागरी लिप्यन्तरण) | हिंदी अनुवाद |
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ओ लाल, मेरी पत्त रखियो बला झूले लालण, |
हे लाल, मेरी रक्षा कीजिये, ऊंचे झूले लाल, |
इनमें से एक छंद में झूले लाल की बढ़ाई की गयी है और दूसरे में कहा गया है के एक दुखियारी औरत उनके मज़ार पर हाज़री देने आई है और उनके लिए दिया जला रही है। फिर संत की ख्याति और उनके रोज़े का वर्णन किया गया है और कहा गया है के ये बच्चे मांगने वालों को बच्चे देते हैं। पूरे गाने में ऐसे और भी काफ़ी छंद आते हैं। जिन मशहूर गायकों नें इसे गया है वह कुछ छंद चुन कर सीमित गाना ही गाते हैं।