दरियाव चन्द्र गौड़ काहिंजारी नामक राज्य के राजपूत राजा थे जिन्होंने 1857 के विद्रोह के समय अंग्रेजी सरकार को बहुत परेशान करके रख दिया था। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था और अंग्रेजों के स्थानीय प्रशासन भवन को लूट लिया था। अंग्रेजों ने उनके किले पर कब्जा करने की कोशिश की लेकिन अंग्रेजों को भारी नुकसान उठाना पड़ा।[1] काहिंजारी, कानपुर के पास स्थित एक छोटी रियासत थी। वर्तमान समय में यह कानपुर ग्रमीण जिला है। राजा दरियाव की युद्ध नीति इतनी सटीक बैठ रही थी जिसके चलते उनकी रियासत के भीतर की सभी चौकियों से अंग्रेजों की सेना को भागने पर विवश होना पड़ा था।

दरियाव चन्द्र को मारने और पकड़ने के लिए अंग्रेजों ने कई छापे मारे लेकिन वे खाली हाथ ही रहे। अन्ततः एक दिन राजा दरियाव को अंग्रेजों ने घात लगाकर पकड़ लिया जब वे एक स्थान से दूसरे स्थन पर जा रहे थे। स्थानीय लोगों में डर पैदा करने के लिए रसूलाबाद में नीम के पेड़ पर राजा को फांसी दे दी गई थी। किले पर भी हमला बोला गया। दीवारों ढहा दी गईं लेकिन पूरी तरह नष्ट नहीं कर सके। राजा की शहादत के बाद उनकी रियासत को डिलवल के जमींदार पहलवान सिंह को सौंप दी।

राजा दरियाव के स्वतंत्रता संग्राम में कई स्थानीय राजपूत जमींदार और किसान शामिल हुए थे। सभी ने मिलकर काफी समय तक कानपुर के आसपास ब्रिटिश सेना को अपने ठोकर पर रखा हुआ था। अंग्रेजी सेना जब राजा की गिरफ्तारी के लिए पहुंची तो भीषण युद्ध हुआ। क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सेना को लगभग परास्त कर ही दिया था कि तभी धोखे से राजा को गिरफ्तार कर लिया गया। इस लड़ाई में सैंकड़ों की तादाद में क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया था।[2]