दर्शन सिंह आवारा
दर्शन सिंह आवारा (1906–1982) एक भारतीय कवि है, जिन्होंने1920 के दशक के आरंभ में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आवेग के तहत कविता लिखना शुरू कर दिया।[1] इन कविताओं का स्वर और उच्चारण क्रांतिकारी राष्ट्रवादी थे और वे सब से पहले बिजली दी कड़क नाम से पुस्तक रूप में प्रकाशित की गई थी। इसको ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया था। 1941 में मैं बागी हाँ प्रकाशित की। इस स्तर पर ब्रिटिश शासकों के मात्र राजनीतिक अवज्ञा से चला विद्रोह से एक सर्वव्यापी दिव्यता में विश्वास और सिद्धांतों और संस्थागत धर्म की रणनीति के खिलाफ और अधिक मौलिक आध्यात्मिक विद्रोह करने तीक चला गया।[1] आवारा भारत में धर्मों की विविधता को आजादी के लिए राष्ट्रीय संघर्ष और बुनियादी मानवता के रास्ते में बाधाओं के रूप में देखा था। 1982 में उनकी मृत्यु हो गई।