दशवैकालिक
दशवैकालिक आचार्य शय्यम्भव की निर्यूहणकृति है , वे श्रुतकेवली थे। उन्होंने विभिन्न पूर्वों से दशवैकालिक निर्यूहण किया।[1] इसमें १० अध्याय हैं , इसकी रचना विकाल में पूर्ण हुई थी।
दशवैकालिक में मुख्य रूप से धर्मका स्वरूप साधु की भिक्षाचर्या , श्रामण्य की पूर्व भूमिका भाषाशुद्धि , विनय समाधि आदि का सुंदर विवेचन [2] हुआ है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ .Jainlibrary. "Dashvaikalika Sutra" (PDF). www.jainlibrary.org. अभिगमन तिथि 20 फरवरी 2016.[मृत कड़ियाँ]
- ↑ Yumpu. "Dashvaikalika Sutra - Jain Library - Yumpu". www.yumpu.com. अभिगमन तिथि 20 फरवरी 2016.
बाहरी कड़ियाँ
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