दादासाहब फालके
धुंडिराज गोविन्द फालके उपाख्य दादासाहब फालके (मराठी : दादासाहेब फाळके) (३० अप्रैल १८७० - १६ फ़रवरी १९४४) वह महापुरुष हैं जिन्हें भारतीय फिल्म उद्योग का 'पितामह' कहा जाता है। [2][3][4]
दादासाहेब फाल्के | |
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फाल्के अपने हाथों में फिल्म के एक छोटे रोल के साथ एक कुर्सी पर बैठे | |
जन्म |
धुंडीराज गोविंद फाल्के अप्रैल 30, 1870 त्रयंबक, बॉम्बे प्रेसिडेंसी, ब्रिटिश भारत |
मौत |
16 फ़रवरी 1944 नासिक, बॉम्बे प्रेसिडेंसी, ब्रिटिश भारत | (उम्र 73)
शिक्षा की जगह | बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय |
पेशा | फिल्म निर्देशक, निर्माता, पटकथा लेखक |
कार्यकाल | १९१३ - १९३७ |
दादा साहब फालके, सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट से प्रशिक्षित सृजनशील कलाकार थे। वह मंच के अनुभवी अभिनेता थे, शौकिया जादूगर थे। कला भवन बड़ौदा से फोटोग्राफी का एक पाठ्यक्रम भी किया था। उन्होंने फोटो केमिकल प्रिंटिंग की प्रक्रिया में भी प्रयोग किये थे। प्रिंटिंग के जिस कारोबार में वह लगे हुए थे, 1910 में उनके एक साझेदार ने उससे अपना आर्थिक सहयोग वापस ले लिया। उस समय इनकी उम्र 40 वर्ष की थी कारोबार में हुई हानि से उनका स्वभाव चिड़िचड़ा हो गया था। उन्होंने क्रिसमस के अवसर पर ‘ईसामसीह’ पर बनी एक फिल्म देखी। फिल्म देखने के दौरान ही फालके ने निर्णय कर लिया कि उनकी जिंदगी का मकसद फिल्मकार बनना है। उन्हें लगा कि रामायण और महाभारत जैसे पौराणिक महाकाव्यों से फिल्मों के लिए अच्छी कहानियां मिलेंगी। उनके पास सभी तरह का हुनर था। वह नए-नए प्रयोग करते थे। अतः प्रशिक्षण का लाभ उठाकर और अपनी स्वभावगत प्रकृति के चलते प्रथम भारतीय चलचित्र बनाने का असंभव कार्य करनेवाले वह पहले व्यक्ति बने।
उन्होंने 5 पौंड में एक सस्ता कैमरा खरीदा और शहर के सभी सिनेमाघरों में जाकर फिल्मों का अध्ययन और विश्लेषण किया। फिर दिन में 20 घंटे लगकर प्रयोग किये। ऐसे उन्माद से काम करने का प्रभाव उनकी सेहत पर पड़ा। उनकी एक आंख जाती रही। उस समय उनकी पत्नी सरस्वती बाई ने उनका साथ दिया। सामाजिक निष्कासन और सामाजिक गुस्से को चुनौती देते हुए उन्होंने अपने जेवर गिरवी रख दिये (40 साल बाद यही काम सत्यजित राय की पत्नी ने उनकी पहली फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ बनाने के लिए किया)। उनके अपने मित्र ही उनके पहले आलोचक थे। अतः अपनी कार्यकुशलता को सिद्ध करने के लिए उन्होंने एक बर्तन में मटर बोई। फिर इसके बढ़ने की प्रक्रिया को एक समय में एक फ्रेम खींचकर साधारण कैमरे से उतारा। इसके लिए उन्होंने टाइमैप्स फोटोग्राफी की तकनीक इस्तेमाल की। इस तरह से बनी अपनी पत्नी की जीवन बीमा पॉलिसी गिरवी रखकर, ऊंची ब्याज दर पर ऋण प्राप्त करने में वह सफल रहे।
फरवरी 1912 में, फिल्म प्रोडक्शन में एक क्रैश-कोर्स करने के लिए वह इंग्लैण्ड गए और एक सप्ताह तक सेसिल हेपवर्थ के अधीन काम सीखा। कैबाउर्न ने विलियमसन कैमरा, एक फिल्म परफोरेटर, प्रोसेसिंग और प्रिंटिंग मशीन जैसे यंत्रों तथा कच्चा माल का चुनाव करने में मदद की। इन्होंने ‘राजा हरिशचंद्र’ बनायी। चूंकि उस दौर में उनके सामने कोई और मानक नहीं थे, अतः सब कामचलाऊ व्यवस्था उन्हें स्वयं करनी पड़ी। अभिनय करना सिखाना पड़ा, दृश्य लिखने पड़े, फोटोग्राफी करनी पड़ी और फिल्म प्रोजेक्शन के काम भी करने पड़े। महिला कलाकार उपलब्ध न होने के कारण उनकी सभी नायिकाएं पुरुष कलाकार थे (वेश्या चरित्र को छोड़कर)। होटल का एक पुरुष रसोइया सालुंके ने भारतीय फिल्म की पहली नायिका की भूमिका की। शुरू में शूटिंग दादर के एक स्टूडियो में सेट बनाकर की गई। सभी शूटिंग दिन की रोशनी में की गई क्योंकि वह एक्सपोज्ड फुटेज को रात में डेवलप करते थे और प्रिंट करते थे (अपनी पत्नी की सहायता से)। छह माह में 3700 फीट की लंबी फिल्म तैयार हुई। 21 अप्रैल 1913 को ओलम्पिया सिनेमा हॉल में यह रिलीज की गई। पश्चिमी फिल्म के नकचढ़े दर्शकों ने ही नहीं, बल्कि प्रेस ने भी इसकी उपेक्षा की। लेकिन फालके जानते थे कि वे आम जनता के लिए अपनी फिल्म बना रहे हैं, अतः यह फिल्म जबरदस्त हिट रही।[5][6]
फालके के फिल्मनिर्मिती के प्रयास तथा पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र के निर्माण पर मराठी में एक फिचर फिल्म 'हरिश्चंद्राची फॅक्टरी' २००९ में बनी, जिसे देश विदेश में सराहा गया।
Dada Saheb Phalke जीवन परिचय
संपादित करेंदादासाहब फालके का पूरा नाम धुंडीराज गोविन्द फालके है और इनका जन्म महाराष्ट्र के नाशिक शहर (प्रसिद्ध तीर्थ) से लगभग २०-२५ किमी की दूरी पर स्थित बाबा भोलेनाथ की नगरी त्र्यंबकेश्वर (यहाँ प्रसिद्ध शिवलिंगों में से एक स्थित भी है) में ३० अप्रैल १८७० ई. को हुआ था। इनके पिता संस्कृत के प्रकांड पंडित थे और मुम्बई के एलफिंस्तन कालेज में प्राध्यापक थे। इस कारण दादासाहब की शिक्षा-दीक्षा मुम्बई में ही हुई। २५ दिसम्बर १८९१ की बात है, मुम्बई में 'अमेरिका-इंडिया थिएटर' में एक विदेशी मूक चलचित्र "लाइफ ऑफ क्राइस्ट" दिखाया जा रहा था और दादासाहब भी यह चलचित्र देख रहे थे। चलचित्र देखते समय दादासाहब को प्रभु ईसामसीह के स्थान पर कृष्ण, राम, समर्थ गुरु रामदास, शिवाजी, संत तुकाराम इत्यादि महान विभूतियाँ दिखाई दे रही थीं। उन्होंने सोचा क्यों नहीं चलचित्र के माध्यम से भारतीय महान विभूतियों के चरित्र को चित्रित किया जाए। उन्होंने इस चलचित्र को कई बार देखा और फिर क्या, उनके हृदय में चलचित्र-निर्माण का अंकुर फूट पड़ा।
उनमें चलचित्र-निर्माण की ललक इतनी बड़ गई कि उन्होंने चलचित्र-निर्माण संबंधी कई पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन किया और कैमरा लेकर चित्र खींचना भी शुरु कर दिया। जब दादासाहब ने चलचित्र-निर्माण में अपना ठोस कदम रखा तो इन्हें बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जैसे-तैसे कुछ पैसों की व्यवस्था कर चलचित्र-निर्माण संबंधी उपकरणों को खरीदने के लिए दादासाहब लंदन पहुँचे। वे वहाँ बाइस्कोप सिने साप्ताहिक के संपादक की मदद से कुछ चलचित्र-निर्माण संबंधी उपकरण खरीदे और १९१२ के अप्रैल माह में वापस मुम्बई आ गए[7]। उन्होने दादर में अपना स्टूडियो बनाया और फालके फिल्म के नाम से अपनी संस्था स्थापित की। आठ महीने की कठोर साधना के बाद दादासाहब के द्वारा पहली मूक फिल्म "राजा हरिश्चंन्द्र" का निर्माण हुआ। इस चलचित्र (फिल्म) के निर्माता, लेखक, कैमरामैन इत्यादि सबकुछ दादासाहब ही थे। इस फिल्म में काम करने के लिए कोई स्त्री तैयार नहीं हुई अतः लाचार होकर तारामती की भूमिका के लिए एक पुरुष पात्र ही चुना गया। इस चलचित्र में दादासाहब स्वयं नायक (हरिश्चंन्द्र) बने और रोहिताश्व की भूमिका उनके सात वर्षीय पुत्र भालचन्द्र फालके ने निभाई। यह चलचित्र सर्वप्रथम दिसम्बर १९१२ में कोरोनेशन थिएटर में प्रदर्शित किया गया। इस चलचित्र के बाद दादासाहब ने दो और पौराणिक फिल्में "भस्मासुर मोहिनी" और "सावित्री" बनाई। १९१५ में अपनी इन तीन फिल्मों के साथ दादासाहब विदेश चले गए। लंदन में इन फिल्मों की बहुत प्रशंसा हुई। कोल्हापुर नरेश के आग्रह पर १९३७ में दादासाहब ने अपनी पहली और अंतिम सवाक फिल्म "गंगावतरण" बनाई। दादासाहब ने कुल १२५ फिल्मों का निर्माण किया। १६ फ़रवरी १९४४ को ७४ वर्ष की अवस्था में पवित्र तीर्थस्थली नासिक में भारतीय चलचित्र-जगत का यह अनुपम सूर्य सदा के लिए अस्त हो गया। भारत सरकार उनकी स्मृति में प्रतिवर्ष चलचित्र-जगत के किसी विशिष्ट व्यक्ति को 'दादा साहब फालके पुरस्कार' प्रदान करती है।[8]
प्रमुख फिल्में
संपादित करेंदादासाहब नें १९ साल के लंबे करियर में कुल ९५ फिल्में और २७ लघु फिल्मे बनाईं[9]।
- राजा हरिश्चंद्र (१९१३)[10]
- मोहिनी भास्मासुर (१९१३)
- सत्यवान सावित्री (१९१४ )
- लंका दहन (१९१७)
- श्री कृष्ण जन्म (१९१८)
- कलिया मर्दन (१९१९)
- बुद्धदेव (१९२३)
- बालाजी निम्बारकर (१९२६)
- भक्त प्रहलाद (१९२६)
- भक्त सुदामा (१९२७)
- रूक्मिणी हरण (१९२७)
- रुक्मांगदा मोहिनी (१९२७)
- द्रौपदी वस्त्रहरण (१९२७)
- हनुमान जन्म (१९२७)
- नल दमयंती (१९२७)
- भक्त दामाजी (१९२८)
- परशुराम (१९२८)
- कुमारी मिल्ल्चे शुद्धिकरण (१९२८)
- श्रीकृष्ण शिष्टई (१९२८)
- काचा देवयानी (१९२९)
- चन्द्रहास (१९२९)
- मालती माधव (१९२९)
- मालविकाग्निमित्र (१९२९)
- वसंत सेना (१९२९)
- बोलती तपेली (१९२९)
- संत मीराबाई (१९२९)
- त मीराबाई (१९२९)
- कबीर कमल (१९३०)
- सेतु बंधन (१९३२)
- गंगावतरण (१९३७)-दादा साहब फाल्के द्वारा निर्देशित पहली बोलती फिल्म है।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Dada Saheb Phalke – A Distinguished Student of Kalabhavan". Fortunecity.com. 16 फ़रवरी 1944. मूल से 15 March 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 January 2012.
- ↑ Dadasaheb Phalke, the father of Indian cinema – Bāpū Vāṭave, National Book Trust – Google Books. Books.google.co.in. मूल से 24 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 November 2012.
- ↑ Sachin Sharma, TNN 28 June 2012, 03.36AM IST (28 June 2012). "Godhra forgets its days spent with Dadasaheb Phalke – Times of India". Articles.timesofindia.indiatimes.com. मूल से 1 नवंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 November 2012.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
- ↑ Vilanilam, J. V. (2005). Mass Communication in India: A Sociological Perspective. New Delhi: Sage Publications. पृ॰ 128. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7829-515-6. मूल से 20 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 अप्रैल 2018.
- ↑ PTI (20 September 2009). "'Harishchandrachi Factory' India's entry for Oscars – Times of India". Timesofindia.indiatimes.com. मूल से 11 नवंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 November 2012.
- ↑ Express News Service. "Harishchandrachi Factory to tell story behind making of India's first feature film". Express India. मूल से 30 September 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 November 2012.
- ↑ Cybertech. "Hall of Fame : Tribute : Dadasaheb Phalke". Nashik.com. मूल से 25 January 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 January 2012.
- ↑ "Pran chosen for Dada Saheb Phalke award". The Hindu. Chennai, India. 12 April 2013. मूल से 9 सितंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 अप्रैल 2018.
- ↑ "Raja-Harishchandra - Trailer from - Cast - Showtimes - NYTimes.com". Movies.nytimes.com. मूल से 5 November 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 November 2012.