दामोदर माऊज़ो
दामोदर माऊज़ो (जन्म: १ अगस्त १९४४) गोवा के उपन्यासकार, कथाकार, आलोचक और निबन्धकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास कार्मेलिन के लिये उन्हें सन् १९८३ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कोंकणी) से सम्मानित किया गया।[1]
पेशा | साहित्यकार |
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भाषा | कोंकणी भाषा |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
विधा | उपन्यास |
उल्लेखनीय कामs | कार्मेलिन |
![](http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/e/e7/Damodar_Mauzo.jpg/220px-Damodar_Mauzo.jpg)
परिचय
संपादित करेंदामोदर माऊज़ो का जन्म १ अगस्त १९४४ को हुआ था। उसने अपना प्राथमिक शिक्षा मराठी भाषा में किया। इसके बाद उसने प्रिमेरो ग्राओ (आठवी कक्षा तक) पुरतुगाली भाशा में किया। उसने मडगाँव शहर में अपने मैटरीक की शिक्षा अंग्रेज़ी में किया। उसने आर ए पोदार कॉलेज से स्नातकता वाणिज्य विभाग से किया।
उनके नेत्रृत्व के कारण कॉलेज में उने एन सी सी के अधिकारी चुना गया था। उसने १९६५ में "सर्वोतकृष्ट छात्रवासी" और १९६६ में "सर्वोतकृष्ट छात्र" कॉलेज में उनके निष्पादन के लिए मिला। कॉलेज में उसने बंभय अंतरकॉलेज कोंंकणी ड्रामा प्रतियोगीता को एक नया रूप दिया। जिसके कारण उने "सर्वोतकृष्ट अभिनेता" का पुरस्कार मिला और उसके कॉलेज को भी पुरस्कार मिला।
मुंभय में वे अपने लिखने के गुण से वाकीफ हुआ। १९६३ में उसने अपने पहली कथा लिखा और ओल इन्डया रेडियो, मुंभय पर नाटक प्रस्तूत किया। लेखक के रूप में दामोदर माऊज़ो वामन वर्दे वालावलीकर और कोंकणी नवजाग्रण के पितश्री शैनय गोयबाब के जीवन और लेखन से प्रभावित था।
नीजी जीवन
संपादित करेंदामोदर माऊज़ो गोवा के माजोरडा गाँव में अपनी पत्नी के साथ रहता है। उसके पत्नी की नाम शैला है। उनके तीन बेटियाँ है। उनके नाम रुपाली, मेघना और सोबीता है। उसने एक बातचीत में कहा कि उनके छह नात- संतान है। वह एक प्यारा पति, पिता, नाना और भरोसेमन दोस्त है। इसके साथ वह एक लेखक, उध्योगपति और समाज अधिनियमी है।
सामाज के कार्य
संपादित करेंदामोदर माऊज़ो ने गोवा के ओपिनीयन पोल के लिए मदद की हाथ दिया। इसमे उसते गोवा को अपने अनोकी अस्मीता बरकरार रखने के लिए और गोवा को महाराष्ट्र से नही जोडने के लिए कठोर परिश्रम किया। इसके लिए एक युवकी खून के तरह उसने लाटियो की मार को सहन किया और गोवा के लोगो को तिरांगनी भाशनो से आलोकित किया। इस लडाई के कारण गोवा वासियो ने महाराष्ट्र से जोडने का विरुध्द मत दिया।
वे गोवा के वार्षिक चित्रकला और साहित्य उत्सव के स्थापक है। वे गोवा लेखक संग के भी स्थापक है। वे २००३ से २००७ तक दिल्ली के साहित्य अकेडमी के वित संग के अधिकारी भी रह चुके है।
अब वे सरस्वती समाज से भी जुडे हुए है। इसके भीरला संग ने स्थपित किया। उसके होटो की मुस्कुराहट और मदद और मीत्रपूर्ण स्वभाव के कारण गोवा के लोग उसके साहित्य को प्यार एवं पसंद भी करते है।
वे कोकणी मंडल के सभापति रह चुके है। उसने भारतिय कोकणी साहित्य सम्मेलन मे हिस्सा लिया है। यह १९८५ में हुआ। उसने अपने लेख से कोकणी भाषा को बडावा देने के लिए कम किया है। उनके लिखे लेख पत्रिकी और विस्वल मिशडीया में ह्मेशा आता रहता है।
साहित्य
संपादित करेंचार कहानियो के संग्रह: गानथन(१९७१), जागराना(१९७५), रुमादफूल(१९८९), भुरगी मुगेली ती(२००१)।
तीन उपन्यास: कारमेलीन(१९८१), सूड(१९७५), सुनामी सायमन(२००९)।
काणी एक खोमसाची(१९७६) में लिखे उसके बच्चो के कहानी पुस्तक है।
एक आशिल्लो बाबुलो बालक(१९७७) के उपन्यास है।
चीत्रांगी(१९९३) बाल कहानियो के संग्रह है।
दो जीवनी: ओशे घोडलेम शैनोय गोयबाब(२००३) उच हावेस उच माथेन(२००३)।
अनुवाद
संपादित करेंकारमेलीन को हिन्दी, मराठी, कन्नडा, बंगाली, अंग्रेजी, पंजाबी, सीन्दी, तामील, ओरिया और अन्य भाषा में साहित्य अकेडमी ने किया।
दे आर माय चीलड्रन के अंग्रेज़ी बाल कहानियाँ के संग्रह ने दिल्ली के कथा ने अनुवाद किया।
२ कोकणी कहानियो के संग्रह।
२ अंग्रेजी कहानियो के संग्रह।
सुनामी सायमन को अंग्रेजी में अनुवाद।
पुरस्कार
संपादित करें१९८३ में उपन्यास कारमेलीन के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार कोंकणी से सम्मानीत हुआ।
दो बार कोकणी भाषा मंडल पुरस्कार जीता है।
दो बार गोवा कला अकेडमी पुरस्कार जीता है।
जनगंगा पुरस्कार से सम्मानीत हुए है।
गोवा प्रदेश संस्कृतिक पुरस्कार भी मील चुका है।
विश्व कोकणी केन्द्र साहित्य पुरस्कार भी पाइ है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "अकादमी पुरस्कार". साहित्य अकादमी. मूल से 15 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 सितंबर 2016.
- ↑ www.damodarmauzo.com/
- ↑ www.publishingnext.in/damodar-mauzo