दिलवाड़ा जैन मंदिर
दिलवाड़ा मंदिर या देलवाडा मंदिर, पाँच मंदिरों का एक समूह है यह यह राजस्थान के जोधपुर के निकट सिरोही जिले के माउंट आबू नगर में स्थित हैं। इन मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के बीच हुआ था।[1][2] यह शानदार मंदिर जैन धर्म के र्तीथकरों को समर्पित हैं। दिलवाड़ा के मंदिरों में 'विमलशाही मंदिर' प्रथम र्तीथकर को समर्पित सर्वाधिक प्राचीन है जो 1031 ई. में बना था। बाईसवें र्तीथकर नेमीनाथ को समर्पित 'लुन वासाही मंदिर' भी काफी लोकप्रिय है। यह मंदिर 1231 ई. में वास्तुपाल और तेजपाल नामक दो भाईयों द्वारा बनवाया गया था। दिलवाड़ा जैन मंदिर परिसर में पांचवा मंदिर संगमरमर का है। मंदिरों के लगभग 48 स्तम्भों में नृत्यांगनाओं की आकृतियां बनी हुई हैं। दिलवाड़ा के मंदिर और मूर्तियां मंदिर निर्माण कला का उत्तम उदाहरण हैं।

देलवाड़ा मंदिर का इतिहास
इन मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के दौरान राजा वास्तुपाल तथा तेजपाल नामक दो भाइयों ने करवाया था। दिलवाड़ा के मंदिरों में ‘विमलशाही मंदिर’ प्रथम र्तीथकर को समर्पित सर्वाधिक प्राचीन है जो 1031 ई. में बना था।
बाईसवें र्तीथकर नेमीनाथ को समर्पित ‘लुन वासाही मंदिर’ भी काफी लोकप्रिय है। इन मंदिरों की अद्भुत कारीगरी देखने योग्य है। अपने ऐतिहासिक महत्व एवं संगमरमर पत्थरों पर बारीक़ नक्काशी की जादूगरी के लिए पहचाने जाने वाले राज्य के सिरोही जिले के इन विश्वविख्यात मंदिरों में शिल्प-सौन्दर्य का ऐसा बेजोड़ खजाना है जिसे दुनिया में और कहीं नहीं देखा जा सकता।
इस मंदिर में आदिनाथ की मूर्ति की आंखें असली हीरे की बनी है तथा इनके गले में बहुमूल्य रत्नों का हार है। इन मंदिरों में तीर्थंकर के साथ साथ हिंदू देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थापित की गई हैं। मंदिरों का एक उत्कृष्ट प्रवेश द्वार है। यहां वास्तुकला की सादगी है जो जैन मूल्यों जैसे ईमानदारी और मितव्ययिता को दर्शाती है।
[[]] विमलशाही मंदिर
सफेद संगमरमर से पूर्ण रूप से तराशा गया यह मंदिर गुजरात के चौलुक्य राजा भीम प्रथम के मंत्री विमल शाह द्वारा 1031 ई में बनाया गया था। यह मंदिर जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है। यह मंदिर एक गलियारे से घिरे हुए खुले आंगन में स्थित है जिसमें तीर्थंकरों की छोटी-छोटी मूर्तियां हैं।
समृद्ध पच्चीकारी वाले गलियारे, खंभे, मेहराबों, और मंदप या मंदिर के पोर्टिकों को यहां आश्चर्यजनक रूप से देखा जा सकता है। छतों पर कमल कलियों, पंखुड़िकाओं, फूलों और जैन पुराणों के दृश्यों की नक्काशियां उत्कीर्ण होती हैं। गुडा मंडप, मन्दिर का एक मुख्य आकर्षण है जिसमे श्री आदिनाथ की कई छवियाँ उकेरी गई है।


लूना वसाही मंदिर लूना वसीह मंदिर भगवान नेमीनाथ को समर्पित है। इस भव्य मंदिर का निर्माण 1230 में दो पोरवाड़ भाइयों, वस्तुपाल और तेजपाल ने किया था, जो गुजरात के वाहेला के शासक थे। विमल वसीह मंदिर के बाद उनके दिवंगत भाई लूना के स्मरण में इस मंदिर का निर्माण किया गया।
मन्दिर के मुख्य हॉल, जिसे रंग मंडप कहा जाता है, में 360 छोटे छोटे तीर्थंकरो की मूर्तियों के लिए जाना जाता है। इस मन्दिर के हथिशाला या हाथी कक्ष की विशेषता 10 सुंदर संगमरमर के हाथियों पर बड़ी बारीकी से पालिश करके उन्हें वास्तविक रूप में दिया गया है।
गुडा मंडप में 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ की काली संगमरमर की मूर्ति है। मंदिर के बाईं ओर एक बड़ा काला कीर्थी स्तंभ स्थित है जिसे मेवाड़ के महाराणा कुंभ ने बनवाया था।
पित्तलहार मंदिर
यह मंदिर अहमदाबाद के सुल्तान दादा के मंत्री भीम शाह ने बनवाया था। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) की विशाल धातु प्रतिमा जो पांच धातुओं में ढाली गयी है, को मंदिर में स्थापित किया गया है।
इस प्रतिमा के निर्माण में मूल धातुओं का प्रयोग किया गया है, अत: इसका नाम पित्तलहार है। इस मंदिर में मुख्य गर्भगृह, गुड मंडप और नवचौक है। मन्दिर में स्थित शिलालेख के अनुसार 1468-69 ईस्वी में 108 मूडों (चार मेट्रिक टन) वजनी मूर्ति प्रतिष्ठित की गई थी।
श्री पार्श्वनाथ मंदिर
भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित यह मंदिर मांडलिक तथा उसके परिवार द्वारा 1458-59 में बनाया गया था। भगवान पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर थे। यह एक तीन मंजिला इमारत हैं, जो दिलवाड़ा के सभी मंदिरों में सबसे ऊंची है।
गर्भगृह के चारों मुखों पर भूतल पर चार विशाल मंडप हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों पर ग्रे बलुआ पत्थर में सुंदर शिल्पाकृतियां हैं जिनमें दीक्षित, विधादेवियां, यक्ष, शब्दांजियों और अन्य सजावटी शिल्पांकन शामिल हैं, जो खजुराहो और कोणार्क के मंदिरों की तुलना में दिखते हैं।
श्री महावीर स्वामी मंदिर
महावीर स्वामी जैन धर्म 24वें तीर्थंकर थे। यह मन्दिर 1582 में बनी एक छोटी सी संरचना है जो भगवान महावीर को समर्पित है। छोटा होने के कारण यह दीवारों पर नक्काशी से युक्त एक अद्भुत मंदिर है। इस मन्दिर के ऊपरी दीवारों पर चित्र सिरोही के कलाकारों द्वारा 1764 में चित्रित किया गये हैं।
हर साल धार्मिक महत्व की इस तीर्थ-यात्रा पर हजारों की संख्या में भक्त आते हैं। यह प्राचीन मंदिर अपने आकर्षक आकर्षण से पर्यटकों को भी आकर्षित करता है। ऐसा माना जाता है कि जो कारीगर संगमरमर का काम पूरा करते थे उन्हें एकत्र किए गए धूल के अनुसार भुगतान किया जाता था जिससे वे और अधिक परिष्कृत डिजाइन तैयार करते थे।
उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित इन मंदिरों को राजस्थान के सर्वाधिक लोकप्रिय आकर्षणों में से एक माना जाता है। इन मंदिरों की असाधारण शिल्पकारिता और वास्तुकला की समान रूप से सराहना की जाती है। [[]]
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "IMAGES OF NORTHERN INDIA". Retrieved 2009-03-13.
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is malformed: timestamp (help)CS1 maint: url-status (link) - ↑ "Biyari in Manasollasa, A Chalukya Garb Primer, Introduction - so where are all the Chalukya Pictures?". Archived from the original on 31 जनवरी 2009. Retrieved 2009-03-13.