दिष्टधारा विद्युतजनित्र
दिष्टधारा विद्युतजनित्र यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में बदलने वाली विद्युत मशीन है। इसे 'डायनेमो' (Dynamo) भी कहते हैं।
कार्य सिद्धान्त
संपादित करेंडायनेमो फैराडे के मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित है, जो इस प्रकार व्यक्त किए गए हैं:
- यदि कोई चालक किसी चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाया जाए, तो उसमें एक विद्युत वाहक बल (electromotive force) की उत्पत्ति होती है। यदि चालक का परिपथ (circuit) पूर्ण हो, तो प्रेरित वि.वा.व. (e.m.f.) के कारण उसमें धारा का प्रवाह भी होने लगता है।
इस वि.वा.ब. का परिमाण, चालक की लम्बाई, चुंबकीय अभिवाह घनत्व (magnetic flux density) तथा चालक के वेग (क्षेत्र के लंब) के ऊपर निर्भर करता है। इस प्रकार
- e=B. l. v
जहाँ B=चुम्बकीय अभिवाह का घनत्व, l=चालक की लंबाई, v=चालक का वेग (क्षेत्र में लंबवत्)।
उपर्युक्त सिद्धांत के अनुसार ही, फैराडे का दूसरा सिद्धांत है, जो वस्तुतः इसका पूरक है :-
- चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित, विद्युत् धारा का वहन करते हुए किसी चालक पर एक बल आरोपित होता है, जिसका परिमाण चुम्बकीय अभिवाह घनत्व, चालक की लंबाई तथा धारा पर निर्भर करता है। यदि चालक के चलन में कोई रोक न हो, तो उस पर आरोपित होनेवाली ऐंठन (torque) के कारण वह घूमने लगेगा।
आरोपित बल को निम्नलिखित समीकरण से व्यक्त किया जा सकता है -
- F=B . l . I
जहाँ F=चालक पर आरोपित बल, B=चुंबकीय अभिवाह घनत्व, l=चालक की लंबाई तथा I=चालक में प्रवाहित धारा।
परिचय
संपादित करेंउपर्युक्त दोनों सिद्धान्त, विद्युत् इंजीनियरी के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण हैं। वास्तव में ये सिद्धान्त ऊर्जा के एक रूप में दूसरे रूप में इन्हीं सिद्धान्तों पर आधारित हैं। डायनेमो इन सिद्धांतों का व्यावहारिक उपयोग करनेवाला सरलतम यंत्र है। यह मशीन दोनों सिद्धांतों पर आधारित है। डायनेमा इन सिद्धांतों का व्यावहारिक उपयोग करनेवाला सरलतम यंत्र है। यह मशीन दोनों सिद्धांतों को प्रतिपादित करती है। इसके मुख्य भाग, चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करनेवाले चुंबक तथा उस क्षेत्र में घूमनेवाले चालकों का तंत्र, जिसे आर्मेचर (Armature) कहते हैं, होते है। फैराडे के सिद्धांतों को व्यावहारिक बनाने के लिए एक चालक के स्थान पर कई चालकों का होना आवश्यक है, जो आपस में इस प्रकार योजित हो कि उनमें प्रेरक वि.वा.व. जुड़कर व्यवहार योग्य हो सके, अथवा प्रत्येक पर आरोपित बल जुड़कर इतना हो सके कि उसका व्यावहारिक प्रयोग किया जा सके। चालकों का योजन कई प्रकार से किया जा सकता है। इस योजनतंत्र को आर्मेचर कुंडली (Armature Winding) कहते हैं। चुंबकीय क्षेत्र भी विद्युत् का चुंबकीय प्रभाव का उपयोग करके प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए चुंबकों के स्थान पर क्षेत्रकुंडलियाँ (field coils) होती हैं, जिनमें धारा के प्रवाहित होने से चुंबकीय क्षेत्र की उत्पत्ति की जाती है। धारा को आर्मेचर चालकों में लाने अथवा ले जाने के लिए बुरुशों का प्रयोग किया जाता है, जो चलनशील चालकों को बाहरी परिपथ के स्थिर सिरों से योजित करते हैं। आर्मेचर चालक उसमें बने खाँचों में स्थित होते हैं, ताकि अधिक वेग से घूमते हुए भी वे अपनी स्थिति में अवस्थित रहें। आर्मेचर एक शाफ़्ट (shaft) पर कुंजी (kev) द्वारा अवस्थित किया जाता है। यांत्रिक ऊर्जा से विद्युत् ऊर्जा का जनन करने की अवस्था में यह शाफ़्ट यांत्रिक ऊर्जा के संभरण से युग्मक (coupling) द्वारा जोड़ दिया जाता है, जिससे आर्मेचर चुंबकीय क्षेत्र में घूमने लगता है और उसमें वि.वा.व. प्रेरित हो जाता है।
विद्युत् ऊर्जा से यांत्रिक ऊर्जा उपलब्ध करना भी इसी यंत्र द्वारा संभव है। इसके लिए आर्मेचर संचालकों को विद्युत्संभरण से योजित कर दिया जाता है, जिससे उनमें धारा का प्रवाह होने लगता है और चुंबकीय क्षेत्र में स्थित होने के कारण उनपर बल आरोपित हो जाता है। अत: आर्मेचर घूमने लगता है। आर्मेचर के शाफ़्ट को किसी मशीन से योजित कर देने पर मशीन को चलाया जा सकता है और इस प्रकार उत्पन्न हुई यांत्रिक ऊर्जा का व्यावहारिक उपयोग किया जा सकता है।
डायनेमो का सबसे साधारण उपयोग साइकिल की बत्ती जलाने में किया जाता है। इसमें यह एक छोटे यंत्र के रूप में होता है, जिसमें चुंबकीय क्षेत्र, स्थायी चुंबकों द्वारा प्राप्त किया जाता है और यांत्रिक ऊर्जा चलती हुई साइकिल के पहिए से प्राप्त की जाती है। इसके लिए इसके आर्मेचर शाफ़्ट में एक रबर का टुकड़ा लगा होता है, जो साइकिल के रिम (rim) से घर्षण द्वारा शाफ़्ट को चलाता है। इस प्रकार आर्मेचर चालकों में उत्पन्न हुआ वि.वा.व. इतना पर्याप्त होता है कि उससे उत्पन्न धारा साइकिल की बत्ती को जला सके।
इसी प्रकार का डायनेमो, कुछ बड़े आकार में, मोटरकार अथवा बसों में प्रयोग किया जाता है, जो मोटर के इंजन से यांत्रिक ऊर्जा प्राप्त कर उसे विद्युत् ऊर्जा में रूपांतरित कर देता है। इससे बत्तियाँ जलाई जा सकती है, मोटर की बैटरी चार्ज (charge) की जा सकती है तथा विद्युत् शक्ति से प्रतिपादित होनेवाले दूसरे कार्य किए जा सकते हैं।
यह सरल विद्युत् मशीन ही वास्तव में विद्युत् की सभी प्रकार की मशीनों की जननी है। लगभग सभी विद्युत् मशीनें पूर्व कथित दो मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित हैं।
विद्युत् मशीनों के प्ररूप में व्यावहारिक दृष्टिकोण से बहुत से परिवर्तन हुए हैं तथा बहुत प्रकार की मशीनें बनाई गई हैं। विशिष्ट कार्यों के लिए अधिकतम दक्षता पर प्रवर्तन करनेवाली मशीनें बनी हैं। इनकी संरचना विशेष प्रकार के लक्षण (कैरेक्टरिस्टिक्स) प्राप्त करने के लिए की गई है। विभिन्न प्रकार के जनित्र (generator), जो कई हजार किलोवाट तक की क्षमता के होते हैं और विभिन्न प्रकार के मोटर, जो बड़ी से बड़ी औद्योगिक मशीनों को चलाते हैं, वस्तुत: सभी इसी सरल विद्युत् मशीन, डायनेमो, के ही प्ररूप हैं।
डीसी मशीनें बहुत दिनो तक आधुनिक औद्योगिक क्षेत्र में सर्वमान्य रहीं। इनकी उपयोगिता न केवल ऐतिहासिक है वरन् सरल नियंत्रण भी इनकी मुख्य विशेषता होती है। ये आसानी से चलाई जा सकती है तथा इनसे वेग नियंत्रण भी आसानी से किया जा सकता है। साथ ही दूरस्थ नियंत्रण (remote control) द्वारा इनका प्रवर्तन सुविधाजनक स्थान से किया जा सकता है, जिसके कारण विद्युत् मशीनें इतनी सर्वमान्य थीं। किन्तु शक्ति एलेक्ट्रॉनिकी एवं बुद्धिमान एलेक्ट्रानिकी के विकास के कारण अब प्रेरण मोटर अधिक प्रयुक्त होने लगी है क्योंकि इसमें घिसने वाली कोई समस्या (जैसे कम्युटेटर) नहीं होता।