जब किये जाने वाले कामों को बार-बार बाद में करने के लिये छोड़ा जाता है तो उस व्यवहार को दीर्घसूत्रता या काम टालना कहते हैं। मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि दीर्घसूत्रता, काम को शुरू करने या उसे समाप्त करने या निर्णय लेने से जुड़ी हुई चिन्ता से लड़ने का एक तरीका है। किसी व्यवहार को दीर्घसूत्रता कहने के लिये उसमें तीन विशेषताएं होनी चाहिये - यह व्यवहार उत्पादनविरोधी हो ; अनावश्यक हो और देरी करने वाला हो।

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