दुर्गसिंह (काल : १०२५ ई) चालुक्य नरेश जयसिंह द्वितीय के 'संधि-विग्रह' के मंत्री थे। उन्होने संस्कृत में उपलब्ध पंचतंत्र की कहानियों का कन्नड में अनुवाद किया जिसमें 'चंपू' छन्द का प्रयोग हुआ है। इसमें कुल ६० कथाएँ हैं जिनका झुकाव जैन धर्म की तरफ है। इनमें से १३ कहानियाँ मौलिक हैं। प्रत्येक कथा के अन्त में 'कथाश्लोक' है जिसमें उस कथा का सारांश एवं शिक्षा दी गयी है। यह ग्रंथ पंचतंत्र का भारतीय लोकभाषाओं में हुए सबसे पहले अनुवादों में से है।