देवकीनन्दन शुक्ल
देवकीनंदन शुक्ल हिन्दी साहित्यकार थे।
देवकीनन्दन शुक्ल का जन्म कन्नौज नगर से लगभग एक मील दूर मकरंदनगर नामक गाँव में हुआ था। इनका रचनाकाल संवत् १८४० से १८६० तक माना जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि संवत् १८४१ में 'शृंगारचरित' की रचना करने तक इन्होंने किसी का आश्रय नहीं ग्रहण किया और स्वतंत्र रूप से काव्यरचना किया करते थे। तत्पश्चात् ये कुंवर सरफराज गिरि नामक संपन्न महंत के आश्रय में रहने लगे जहाँ संवत् १८४३ वि. में 'सरफराज चंद्रिका' नामक अलंकारग्रंथ की रचना की। इसके पश्चात् देवकीनंदन हरदोई जिले में स्थित रुद्दामऊ नामक स्थान के रईस महाराज अवधूतसिंह जी के आश्रय में चले गए जहाँ इन्होंने 'अवधूतप्रकाश' नामक ग्रंथ की रचना की। शिवसिंह सरोज में इनके केवल नखशिख ग्रंथ का उल्लेख है, परंतु मिश्रबंधुओं ने 'शृंगारचरित्र' और 'अवधूतभूषण' नामक दो और ग्रंथों का उल्लेख किया है। अवधूतभूषाण वस्तुत: शृंगारचरित् का ही परिवर्धित रूप है। शृंगारचरित यद्यपि इनका आरंभिक ग्रथ है, तथापि उससे देवकीनंदन जी का पांडित्य प्रकट होता है। इसकी रचना मुख्यत: दोहों में है जिसमें नायिकाभेद और अलंकारों का विशद वर्णन है। इस ग्रंथ में इन्होंने कूटार्थक प्रयोग भी किए हैं, जिससे साहित्य में इनकी गहरी पैठ व्यक्त होती है।