यह दर्शनीय स्थल औरंगाबाद जिले में स्थित है। यह कोणार्क मन्दिर कि तर्ज पर बना सूर्य मन्दिर है। यहाँ पर प्रयाग के राजा औलिया को भयानक कुष्ठ रोग से मुक्‍ति मिली थी।[1]

Deo Surya Mandir
ऊंचाई 100 Fit
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देव सूर्य मंदिर यह बिहार के देव (औरंगाबाद जिला) में स्थित सूर्य मंदिर है। यह मंदिर पूर्वाभिमुख ना होकर पश्चिमाभिमुख है। यह मंदिर अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए प्रख्यात है। पत्थरों को तराश कर बनाए गए इस मंदिर की नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना है। यहाँ छठ पर्व के अवसर पर भारी भीड़ उमड़ती है। [2][2][3]

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मंदिर का निर्माण संपादित करें

प्रचलित मान्यता के अनुसार इसका निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया है। इस मंदिर के बाहर संस्कृत में लिखे श्लोक के अनुसार 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेतायुग के गुजर जाने के बाद राजा इलापुत्र पुरूरवा ऐल ने इस सूर्य मंदिर का निर्माण प्रारम्भ करवाया था। शिलालेख से पता चलता है कि पूर्व 2007 में इस पौराणिक मंदिर के निर्माणकाल का एक लाख पचास हजार सात वर्ष पूरा हुआ। पुरातत्वविद इस मंदिर का निर्माण काल आठवीं-नौवीं सदी के बीच का मानते हैं।[4][5][6][7]

स्थापत्य संपादित करें

कहा जाता है कि सूर्य मंदिर के पत्थरों में विजय चिन्हकलश अंकित हैं। विजय चिन्ह यह दर्शाता है कि शिल्प के कलाकार ने सूर्य मंदिर का निर्माण कर के ही शिल्प कला पर विजय प्राप्त की थी। देव सूर्य मंदिर के स्थापत्य कला के बारे में कई तरह की किंवदंतियाँ है।

मंदिर के स्थापत्य से प्रतीत होता है कि मंदिर के निर्माण में उड़िया स्वरूप नागर शैली का समायोजन किया गया है। नक्काशीदार पत्थरों को देखकर भारतीय पुरातत्व विभाग के लोग मंदिर के निर्माण में नागर एवं द्रविड़ शैली का मिश्रित प्रभाव वाली वेसर शैली का भी समन्वय बताते है।

प्रतिमाएँ संपादित करें

मंदिर के प्रांगण में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल, मध्याचल तथा अस्ताचल के रूप में विद्यमान हैं। इसके साथ ही वहाँ अद्भुत शिल्प कला वाली दर्जनों प्रतिमाएं हैं। मंदिर में शिव के जांघ पर बैठी पार्वती की प्रतिमा है। सभी मंदिरों में शिवलिंग की पूजा की जाती है। इसलिए शिव पार्वती की यह दुर्लभ प्रतिमा श्रद्धालुओं को खासी आकर्षित करती है।[4][8]

मंदिर का स्वरूप संपादित करें

मंदिर का शिल्प उड़ीसा के कोणार्क सूर्य मंदिर से मिलता है। देव सूर्य मंदिर दो भागों में बना है। पहला गर्भगृह जिसके ऊपर कमल के आकार का शिखर है और शिखर के ऊपर सोने का कलश है। दूसरा भाग मुखमंडप है जिसके ऊपर पिरामिडनुमा छत और छत को सहारा देने के लिए नक्काशीदार पत्थरों का बना स्तम्भ है। तमाम हिन्दू मंदिरों के विपरीत पश्चिमाभिमुख देव सूर्य मंदिर देवार्क माना जाता है जो श्रद्धालुओं के लिए सबसे ज्यादा फलदायी एवं मनोकामना पूर्ण करने वाला है।[9][10]

रख-रखाव संपादित करें

इस मंदिर के देखभाल का दायित्व देव सूर्य मंदिर न्यास समिति का है। [11] [12]

पवई झुंझुनवा एक अजुब्बा पहाड़ है जो सदियो से है उसमें ये खासियत है कि 3 मीटर त्रिज्या वाला एक पत्थर है उस पे छोटा सा पत्थर मारने पर धातु के पीटने जैसा आवाज उतपन्न होता है और यह पहाड़ औरंगाबाद बिहार के पवई गांव में है और यह बटाने नदी के किनारे है।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "दर्शनीय स्थल". मूल से 4 नवंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 दिसंबर 2012.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 20 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 दिसंबर 2017.
  3. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 दिसंबर 2017.
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 दिसंबर 2017.
  5. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 दिसंबर 2017.
  6. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 दिसंबर 2017.
  7. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 दिसंबर 2017.
  8. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 दिसंबर 2017.
  9. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 दिसंबर 2017.
  10. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 दिसंबर 2017.
  11. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 दिसंबर 2017.
  12. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 दिसंबर 2017.