भविष्य पुराण में जगतपिता ब्रह्मा के अनुसार विवाह आठ प्रकार के होते हैं । यज्ञ में  सम्यक प्रकार से कर्म करते हुए रित्विज को अलंकृत कर कन्या देने को "दैव विवाह" कहते हैं। दैव विवाह से उत्पन्न पुत्र सात पीढ़ी आगे तथा सात पीढ़ी पीछे इस प्रकार १४ पीढ़ियों का उद्धार करने वाला होता है।