दैहिक मनोविज्ञान

(दैहिक से अनुप्रेषित)

दैहिक मनोविज्ञान (Physiological psychology) व्यवहारात्मक स्नायुविज्ञान (behavioral neuroscience) की शाखा है जिसमें प्रत्यक्षण (perception) और व्यवहार के लिए उत्तरदायी तंत्रिकीय क्रियाविधियों (न्यूरल मेकेनिज्म्स) का अध्ययन किया जाता है। इसके लिए गैर-मानवी प्राणियों पर नियंत्रित प्रयोग किए जाते हैं जिनमें उनके मस्तिष्कों को सीधे जोड़-तोड़ (मैनिपुलेट) किया जाता है। इसे कभी-कभी मनोदैहिकी (psychophysiology) भी कहते हैं। हाल के दिनों में इसे संज्ञानात्मक तंत्रिकाविज्ञान (cognitive neuroscience) भी कहा गया है।

उदाहरण के लिए, सीखने एवं याद करने में हिप्पोकैम्पस की क्या भूमिका है- इसमें दैहिक मनोविज्ञानिक अनुसंधान किया जा सकता है। इसके लिए शल्यक्रिया करके चूहे के मस्तिष्क से हिप्पोकैम्पस को निकाल दिया जाता है और उसके बाद उस चूहे द्वारा किए जाने वाले स्मृतीय कार्यों (memory tasks) का निरीक्षन और अध्ययन किया जाता है।

दैहिक मनोविज्ञान में मनोविज्ञानियों का कार्य प्राणी के व्यवहारों के दैहिक निर्धारकों (Physiological determinants) तथा उनके प्रभावों का अध्ययन करना है। इस तरह दैहिक मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की एक ऐसी शाखा है जो जैविक विज्ञान (biological science) से काफी जुड़ा हुआ है। इसे मनोजीवविज्ञान (Psychobiology) भी कहा जाता है। आजकल मस्तिष्कीय कार्य (brain functioning) तथा व्यवहार के संबंधों के अध्ययन में मनोवैज्ञानिकों की रुचि अधिक हो गयी है। इससे एक नयी अन्तरविषयक विशिष्टता (interdisplinary specialty) का जन्म हुआ है जिसे ‘न्यूरोविज्ञान’ (neuroscience) कहा जाता है। इसी तरह दैहिक मनोविज्ञानी हारमोन्स (hormones) का व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभावों के अध्ययन में भी अभिरुचि रखते हैं। आजकल विभिन्न तरह के औषध (drug) तथा उनका व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन दैहिक मनोविज्ञान में किया जा रहा है। इससे भी एक नयी विशिष्टता (new specialty) का जन्म हुआ है जिसे मनोफर्माकोलॉजी (Psychopharmacology) कहा जाता है तथा जिसमें विभिन्न औषधों के व्यवहारात्मक प्रभाव (behavioural effects) से लेकर तंत्रीय तथा चयापचय (metabolic) प्रक्रियाओं में होने वाले आणविक शोध (molecular research) तक का अध्ययन किया जाता है।

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