द्वंद्वात्मक भौतिकवाद
मार्क्स के दर्शन को द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical materialism) कहा जाता है। मार्क्स के लिए वास्तविकता विचार मात्र नहीं भौतिक सत्य है; विचार स्वयं पदार्थ का विकसित रूप है। उसका भौतिकवाद, विकासवान् है परंतु यह विकास द्वंद्वात्मक प्रकार से होता है। इस प्रकार मार्क्स, हेगेल के विचारवाद का विरोधी है परंतु उसकी द्वंद्वात्मक प्रणाली को स्वीकार करता है।मार्क्स और हेगेल का मत था कि विरोधी तत्वों के संघर्ष द्वारा ही सत्य की प्रतिष्ठा होती है।
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द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का अर्थ होता है कि दो विचारों का आपस मे टकराव के बाद मे जो एक नया विचार उत्पन्न होता है और पुनः इस विचार को अन्य पुष्टि विचारो के साथ मिलने पर जो अंततः विचार निकल के आयेगा वह ही परम सत्य होगा और इससे ही सत्य की प्रतिष्ठा होती है।