द्वारिका प्रसाद सक्सेना

डॉ द्वारिका प्रसाद सकेसा ( 18 फरवरी 1922 - 22 जुलाई 2007 ) हिन्दी साहित्यकार तथा समालोचक थे। वे प्रसाद साहित्य के गभीर अध्येता थे और उन्होंने प्रसाद साहित्य का विस्तृत अध्ययन-विवेचन किया है। 'कामायनी में काव्य, संस्कृति और दर्शन' नामक शोधप्रबन्ध पर उनको पीएचडी मिली तथा 'प्रसाद दर्शन' नामक शोधप्रबन्ध पर डी-लिट् प्रदान किया गया। द्वारिका प्रसाद सक्सेना उन आलोचकों व समीक्षकों में से हैं जो प्रसाद को पक्के यथार्थवादी के रूप में देखता/पहचानता है। उन्होने माना/बताया है कि प्रसाद निरंतर दृष्टा तथा प्रखर मनोविश्लेषक थे।

जीवन परिचय

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डॉ सक्सेना का जन्म मथुरा में हुआ था। जब वे केवल ढाई वर्ष के थे तभी उनके पिता श्री रामस्वरूप सक्सेना का देहान्त हो गया। उनकी माँ कलावती सक्सेना ने गाँव के अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में उन्हें पाला पोषा और बड़ा किया।

उन्होने लगभग २८ विशाल ग्रन्थों की रचना की है।

उनका जो काम अभी तक प्रकाशित हो सका है, उसमें 'प्रसाद दर्शन', 'आँसू-भाष्य', 'कामायनी भाष्य', 'प्रसाद का मुक्तक-काव्य', 'कामायनी में काव्य संस्कृति और दर्शन', 'प्रसाद के नाटकों में इतिहास, संस्कृति, धर्म, दर्शन और कला', हिन्दी के प्राचीन प्रतिनिधि कवि आदि प्रमुख इनकी रचनाएं हैं।

। दूसरे लोग जब प्रसाद से 'बच' रहे थे, तब उन्होंने प्रसाद की रचनाओं से जूझने का काम किया।

उनकी कुछ रचनाएँ भाषाविज्ञान, दर्शन एवं काव्यशास्त्र से सम्बन्धित हैं।

बाहरी कडियाँ

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