गाइड (उपन्यास)

आर. के. नारायण का उपन्यास
(द गाइड से अनुप्रेषित)

गाइड अंग्रेजी भाषा के महान भारतीय उपन्यासकार आर के नारायण का उपन्यास है। यह आर के नारायण का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। इसे देश और विदेशों में जबरदस्त सराहना मिली है। उनकी अधिकतर रचनाओं की तरह गाइड भी मालगुडी पर आधारित है। मालगुडी एक काल्पनिक स्थान है। प्रायः इसे दक्षिण भारत का एक काल्पनिक कस्बा माना जाता है; परंतु स्वयं लेखक के कथनानुसार "अगर मैं कहूँ कि मालगुडी दक्षिण भारत में एक कस्बा है तो यह भी अधूरी सच्चाई होगी, क्योंकि मालगुडी के लक्षण दुनिया में हर जगह मिल जाएँगे।"[1] इस उपन्यास में राजू नामक एक सामान्य पथप्रदर्शक (टूर गाइड) के आध्यात्मिक गुरू बनने की कहानी है।

गाइड
लेखकआर के नारायण
मूल शीर्षकद गाइड
अनुवादकशिवदान सिंह चौहान एवं विजय चौहान
भाषाअंग्रेजी (मूल); हिन्दी (अनुवाद)।
शैलीउपन्यास
प्रकाशकViking Press (US)
Methuen Publishing (UK); राजपाल एंड सन्ज़, दिल्ली (अनुवाद)।
प्रकाशन तिथि1958 (मूल)
प्रकाशन स्थानभारत
मीडिया प्रकारमुद्रित
पृष्ठ220 (मूल); 160 (अनुवाद)।
आई.एस.बी.एन0-670-35668-9 (मूल); 9788170287506 (अनुवाद) Parameter error in {{isbn}}: Invalid ISBN. (First American edition)
ओ.सी.एल.सी65644730
इससे पहलेमहात्मा का इंतजार 
इसके बादमालगुडी का आदमखोर 

राजू एक रेलवे गाइड है जो रोजी का दीवाना हो जाता है। रोजी, मार्को नामक एक मानवशास्त्री की उपेक्षित पत्नी है। रोजी को नृत्य से बेहद लगाव था, लेकिन मार्को उसे इसकी अनुमति नहीं देता है। राजू की बात मानकर रोजी ने एकबार फिर अपने सपनों को पूरा करने और मार्को को छोड़ देने का मन बनाया। राजू, रोजी का स्टेज प्रबंधक बन गया और राजू के प्रबंधन कौशल के कारण वह जल्द ही सफल नर्तकी बन गई। लेकिन राजू के मन में अहम आ गया और उसने रोजी पर नियंत्रण की कोशिश की। धीरे-धीरे राजू और रोजी के बीच के रिश्ते कड़वे होते गए। मार्को एकबार फिर सामने आता है। उधर राजू जालसाजी के एक मामले में फंस जाता है और उसे दो साल की कैद हो जाती है। सजा पूरा कर जब राजू जेल से बाहर आता है तो एक गांव के लोग उसे साधु मान मान लेते हैं। तब तक उसके मन में मालगुड़ी और रोजी के प्रति विरक्ति हो जाती है और उसी गांव के एक परित्यक्त मंदिर में शरण ले लेता है। वह छोटी-मोटी समस्याओं में गांव वालों की मदद करता है और इस तरह वह नामी साधु हो जाता है। एकबार उस गांव में अकाल पड़ता है। तब गांव वाले उसे वर्षा के लिए उपवास करने को कहते हैं। लोगों की बात मानकर राजू उपवास पर बैठ जाता है। मीडिया द्वारा प्रचारित करने पर उसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। उपवास की दशा में कई दिन बीत गए। एक दिन वह जब नदी के किनारे पूजा अर्चना के लिए पहुंचता है तो उसे लगता है कि पहाड़ से पानी गिर रहा है। उपन्यास के अंत में भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाता है कि क्या राजू भूख से मर जाता है या अकाल समाप्त हो जाता है।

रोजी का चरित्र

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रोजी गाइड के सबसे प्रमुख पात्रों में से एक है। उपन्यास में उसे एक सुंदर नर्तकी के रूप मे प्रस्तुत किया गया है, जिसकी मार्को नामक मानवशास्त्री से शादी हो जाती है। शादी रोजी के लिए अभिशाप साबित होता है क्योंकि मार्को अपने काम के सिवा कुछ नहीं देखता है। रोजी की भावना को समझने की कोशिश भी नहीं करता है। रोजी नृत्य के प्रति दीवानी है। लेकिन मार्को उसे नाचने की अनुमति नहीं देता है। वह हर तरह से कोशिश करती है लेकिन उसे सफलता नहीं मिलती है। जब मार्को उसे मालगुड़ी में छोड़ देता है तो वह राजू के साथ रहने लगती है और अपना पूरा समय नृत्य को देने लगती है। रोजी धार्मिक प्रवृति की है और वह देवी सरस्वती में विश्वास करती है। उसके ऑफिस में कांसे की नजराज की मूर्ति होती है। वह धन-दौलत को लेकर लोगों के भेदभाव नहीं करती थी। राजू अमीर और प्रभावी लोगों से मिलना पसंद करता है लेकिन रोजी ऐसे लोगों को भाव नहीं देती. कलाकार होने के नाते वह कलाकारों का आदर करती है और उनके बीच में रहना चाहती है। सफलता उसमें अभिमान नहीं भरती है बल्कि वह नृत्य में सफल कैरियर के बावजूद जमीन से जुड़ी रहती है। एकबार राजू इस बात से गुस्सा जाता है कि रोजी उसके साथ समय नहीं बिताकर कलाकारों के साथ समय बिताती है। रोजी परंपरागत भारतीय पत्नी की तरह है। वह अपने पति को भगवान की तरह मानती है। लेकिन उसका पति उसे एक वस्तु समझता है और उसकी कला को बंदर की उछल-कूद. वह उसका अपमान करता है। जब मार्को को रोजी और राजू के नजदीकी रिश्ते के बारे में पता चलता है तो वह क्षुब्ध हो जाता है और उसकी उपेक्षा करता है। रोजी ने मार्को को बदलना चाहा लेकिन वह नहीं बदला. इससे पता चलता है कि रोजी बहुत सहनशील और आशावान प्रवृति की थी। सफल नर्तकी बनने के बाद भी उसके मन में अपने पति के प्रति सम्मान का भाव था।

  1. मालगुडी की कहानियाँ, आर० के० नारायण, राजपाल एंड सन्ज़, दिल्ली, दशम संस्करण-2016, पृष्ठ-6.