द साड़ी शॉप
द साड़ी शॉप अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार रूपा बाजवा द्वारा रचित एक उपन्यास है। ये लेखिका बाजवा का प्रथम उपन्यास जो २००४ मे प्रकाशीत हुआ। इनके लिये उन्हें सन् २००६ में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[1]
द साड़ी शॉप | |
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[[चित्र:|]] द साड़ी शॉप | |
लेखक | रूपा बाजवा |
देश | भारत |
भाषा | अंग्रेज़ी भाषा |
प्रकाशन तिथि | २००४ |
कथानक
संपादित करेंरामचंद एक गरीब अशिक्षित है जो अमृतसर, पंजाब के सेवक साड़ी सदन में सहायक के रूप में काम करता है। अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद, उसे अपने गरीब चाचा ने संभाला और परिवार की चुनौतीपूर्ण आर्थिक स्थिति के कारण उसे स्कूल छोड़ना पड़ता है। वह साड़ी की दुकान में नौकरी करता है और उनकी जिंदगी अकेलेपन से भरी होती है। वह नियमित आधार पर अमीर ग्राहकों का सामना करता हैं, जो अपनी संपत्ति और अंग्रेजी में बोलकर अपनी शिक्षा को दिखाते हैं। अपनी कड़ी मेहनत से प्रभावित, उसे ग्राहकों के घरों मे विविध प्रकार की साड़ियों की बिक्री का काम भी दिया जाता है। इस तरह के एक अवसर पर वह कपूरों के भव्य घर तक पहुंचते हैं, जहां उनकी बेटी रीना शादी करने वाली है। अंग्रेजी के लिए रामचंद का जुनून जाग उठता है और वह एक पुरानी व्याकरण की किताब, ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी, एक जोड़ी मोज़े और लाइफबॉय साबुन खरीदता है। ये वो चार चीजें होती हैं जो बचपन से किसी तरह उसे लगती कि उसका जीवन बदल देगी। रामचंद रीना की शादी में घुस जाता है, जहां उसे नीच दिखाते उसकी अंग्रेजी सीखने की इच्छा को तुच्छ कहते है।
एक मौके पर, रामचंद अपने सहयोगी के घर पहुंता है जहां उसकी पत्नी कमला नशे में होती है। वो पड़ोसियों से कमला की जिंदगी की कहानी जान लेता है। अपने परिवार को खोने के बाद वह अकेले अपने पति के साथ अकेली रहती है, जो कि एक दुर्व्यवहारी और शराबी है। निराशा में एक दिन वह अपने पति के शराब का आसरा लेती है और खुद शराबी हो जाती है। कमला नियमित रूप से नशे में इलाके में परेशानी पैदा करती है और इसलिए पुलिस उसे गिरफ्तार करते है जहां दो पुलिसकर्मि उस पर बलात्कार करते है। घटना से प्रभावित, रामचंद दुकान में कहर पैदा करते हुए अमीर ग्राहकों को अपमानित करते हैं और इसलिए नौकरी से निकाल दिया जाता है। वह कमला की मदद करते हुए अमीर, शक्तिशाली और भ्रष्टों के खिलाफ विद्रोह का फैसला करता है। उसे फिर पता चलता है कि एक अमीर परिवार के आदेश पर एक रात कमला की हत्या कर दी गई थी। रामचंद खुद को अपने जीवन की स्थितियों को बदलने और चुनौती देने में असमर्थ होने के लिए असहाय और निराश्रित पाता है। वह साड़ी की दुकान पर लौट जाता है और अपनी नौकरी की मांग करता है और अपने नियमित उबाऊ जीवन के साथ जारी रहता है।[2][3]
प्रकाशन और समीक्षा
संपादित करेंलेखिका रूपा बाजवा ने पहले इस कथानक पर एक छोटी कहानी लिखी थी और बाद में इसे एक पूर्ण उपन्यास में विकसित किया। उपन्यास पर काम करने के लिए शांतिपूर्ण स्थान तलाशने के लिए बाजवा ने अक्सर विभिन्न शहरों में कमरे किराए पर लिए थे। वह उपन्यास टाइप करने के लिए कंप्यूटर किराए पर लेती और काम करती थी।[4]
हालांकि पुस्तक वंचित वर्ग के बारे में है, समीक्षकों ने उल्लेख किया है कि बाजवा ने उनकी दुखी स्थितियों, उनकी आर्थिक कठिनाइयों और अमीरों द्वारा उनके उत्पीड़न पर ध्यान केंद्रित नहीं किया है।[5] बाजवा को इस उपन्यास के लिए २००६ में अंग्रेज़ी भाषा का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।[1]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ "अकादेमी पुरस्कार (1955-2016)". साहित्य अकादमी. १ अगस्त २०१७. मूल से 15 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १८ सितम्बर २०१७.
- ↑ "Song of a salesman". इंडिया टुडे. ३ मई २००४. मूल से 16 अक्तूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १९ सितंबर २०१७.
- ↑ "Fiction Book Review: The Sari Shop". पब्लिशर्स वीकली. २४ मई २००४. अभिगमन तिथि १९ सितंबर २०१७.
- ↑ संजय (२००४). "Rupa Bajwa's 'The Sari Shop'". द् साउथ एशियन. मूल से 10 मई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १९ सितंबर २०१७.
- ↑ आमेर हुसेन (८ अप्रेल २००४). "The Sari Shop by Rupa Bajwa; The Last Song of Dusk by Siddharth Dhanvant Shanghvi". इंडिपेंडेंट. अभिगमन तिथि 19 सितंबर 2017.
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