धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरणों में जन्मा जातक गू, गे नाम से जाना जा सकता है। मंगल इस नक्षत्र का स्वामी है, वहीं राशि स्वामी शनि है। मंगल का नक्षत्र होने से ऐसे जातक ऊर्जावान, तेजस्वी, पराक्रमी, परिश्रम के द्वारा सफलता पाने वाला होता है। कुंम राशि में जन्मा होने से ऐसे जातक स्थिर स्वभाव के होते हैं।

मेष लग्न में सशस्त्र स्वामी मंगल लग्न में गुरु भाग्येश की युति में हो तो ऐसे जातक स्वप्रयत्नों से सफलता पाते हैं। मंगल भाव में हो तो ऐसे जातक का भाग्य साथ देने वाला होता है। मंगल पंचम में भी शुभ फलदायी रहता है।

वृषभ लग्न में मंगल नवम भाव में हो तो ऐसे जातक ऊर्जावान, शक्तिशाली, बाहर से लाभ पाने वाला सुखी संपन्न होता है। नक्षत्र स्वामी मंगल का सूर्य या गुरु के साथ हो तो ऐसे जातक धन संपन्न होते हैं।

मिथुन लग्न में नक्षत्र स्वामी मंगल दशम में हो तो कर्मानुसार आय का लाभ मिलता है। सप्तम में हो तो पत्नी, तृतीय हो तो साझेदारी, भाई, मित्र से लाभ मिलता है।

धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरणों में जन्मा जातक गू, गे नाम से जाना जा सकता है। मंगल इस नक्षत्र का स्वामी है, वहीं राशि स्वामी शनि है। मंगल का नक्षत्र होने से ऐसे जातक ऊर्जावान, तेजस्वी, पराक्रमी, परिश्रम के द्वारा सफलता पाने वाला होता है।   

कर्क लग्न में मंगल दशम में हो तो पिता, राज्य, व्यापार से भाग्योदय होता है। माता-भूमि भवन से लाभ, नवम में हो तो भाग्य बलशाली होता है। षष्ठ में हो तो शत्रु न होकर भाग्यशाली, गुस्सैला भी हो सकता है। तृतीय एकादश में भी शुक्र फलदायी होगा।

सिंह लग्न में नक्षत्र स्वामी मंगल भाग्य नवम भाव में हो तो ऐसा जातक भाग्यशाली होता है, वहीं चतुर्थ भाव में हो तो ऐसे जातक को भूमि-भवन, माता एवं जनता से संबंधित कार्यों में लाभ मिलता है। लग्न में हो तो प्रभावशाली होकर भाग्य निरंतर साथ देता है। पंचम में हो तो संतान उत्तम होती है। कन्या लग्न में नक्षत्र स्वामी मंगल चतुर्थ में हो तो भाइयों के सहयोग से लाभ मिलकर भूमि भवन का लाभ भी मिलता है। पंचम में हो तो स्वप्रयत्नों से विद्या लाभ मिलेगा। पत्नी गुस्सैली होगी। द्वादश में हो तो पराक्रम द्वारा विदेश या बाहर से लाभ मिलता है।

तुला लग्न में मंगल तृतीय में चतुर्थ में सप्तम में ठीक फल देगा। शनि की स्थिति उत्तम रही तो शुभ परिणाम में वृद्धि होगी। यदि शनि-मंगल साथ हो या दृष्टि संबंध रखते हो तो अशुभ फल अधिक मिलते हैं।

वृश्चिक लग्न में नक्षत्र स्वामी दशम हो तो व्यापार, प्रशासनिक, सेना, राजनीति से लाभ मिलता है। लग्न में हो तो साहसी, मेहनती, स्वप्रयत्नों से लाभ पाने वाला होता है। पंचम में हो तो विद्या, संतान, उत्तम हो, तृतीय में हो तो भाईयों व मित्रों से लाभ मिलता है।

धनु लग्न में नक्षत्र स्वामी मंगल नवम में भाग्य में संतान, विद्या उत्तम होती है। पंचम में हो तो आयु में कष्ट रहता है। बाहर से लाभ होता है। द्वितिय भाव में हो तो विद्या, कुटुंब, संतान आदि से लाभ पाए। शनि उच्च स्वराशि का हो तो उत्तम लाभ मिलता है।

मकर लग्न में नक्षत्र स्वामी मंगल लग्न में, चतुर्थ में, एकादश में उत्तम लाभ मिलता है। ऐसा जातक राजनीति, पुलिस प्रशासन, खलनायक की भूमिका से भी लाभ पाने वाला होता है।

कुंभ लग्न में सप्तम में हो तो ससुराल एवं पत्नी से लाभ मिलता है। दशम में पिता, द्वादश में बाहर से तृतीय में स्व भुजबल से लाभ मिलेगा।

मीन लग्न में लग्न में हो तो स्वप्रयत्नों से धन, कुटुंब का लाभ मिले, भाग्य साथ देगा। दशम में पिता से, कर्म से लाभ, राजनीति में सफलता नवम में हो तो भाग्यशाली होगा। किसी भी लग्न में मंगल शनि से दृष्टि संबंध न रखने पर ही उत्तम फल मिलते हैं।

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