धातुकर्म

धातूओंके भौतिक और रासायनिक गुणधर्मोंका अभ्यास करनेवाली पदार्थविज्ञानकी शाखा

धातुकर्म पदार्थ विज्ञान और पदार्थ अभियांत्रिकी का एक क्षेत्र है, जिसके अंतर्गत धातुओं, उनसे बनी मिश्रधातुओं और अंतर्धात्विक यौगिकों के भौतिक और रासायनिक गुणों का अध्ययन किया जाता है।

धातुनिर्माता कारखाने में इस्पात का निर्माण
दिल्ली का लौह-स्तम्भ भारतीय धातुकर्म के गौरव का साक्षी है।

मनुष्य द्वारा प्राचीनतम ज्ञात धातु सोना है। तांबे की खोज के बाद सभ्यता में व्यापक परिवर्तन हुआ। ताम्र युग की सभ्यतायें अपने पहले की पाषाणकालीन सभ्यताओं से काफी उन्नत थीं। वृहद रूप से प्रयुक्त होने वाली पहली धातु तांबा थी, तत्पश्चात कांसे और लोहालोहे की खोज हुई।

निष्कर्षण धातुकर्म

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जिन खनिजोँ से किसी धातु को प्रचुर यानी अत्यधिक मात्रा में कम खर्चे पर प्राप्त किया जाता है उस खनिज को उस धातु का अयस्क कहते हैं, जैसे- काँपर को काँपर पायराइट से, ऐल्युमिनियम को बाँक्साइट से, तथा लेड को गैलेना से प्राप्त किया जाता है। निष्कर्षण धातुकर्म धातुओं के परिशोधन से संबन्धित है। धातुओं को अयस्कों से परिशोधित किया जाता है। अयस्क सामान्यतः आक्साइड या सल्फाइड के रूप में पाये जाते हैं। अयस्कों को रासायनिक या वैद्युत विधि से अपचयित किया जाता है।

धातुकर्म : लोहस तथा अलोह

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आधुनिक युग में धातुओं का महत्व किसी से छिपा नहीं है। विचार करके देखा जाए तो सहज ही ज्ञात हो जाएगा कि दैनिक कार्य में आनेवाली छोटी से छोटी सिलाई की सुइयों से लेकर रेल के विशालकाय इंजन, विमान, मोटर गाड़ियाँ, साइकिलें, जहाज, भोजन के बरतन, विभिन्न प्रकार के औजार इत्यादि सभी किसी न किसी धातु अथवा मिश्रधातु से बने हैं (देखें फलक)। इतना ही नहीं, ये वस्तुएँ जिन कारखानों में बनाई जाती हैं, उनकी मशीनें तथा यंत्र भी किसी न किसी वस्तु धातु के ही बने होते हैं। इस प्रकार धातुओं की महत्ता को भली प्रकार समझा जा सकता है परंतु इसके साथ ही यह जान लेना भी आवश्यक है कि ये धातुएँ प्रकृति में अपने वास्तविक रूप में नहीं पाई जातीं। अधिकतर धातुएँ ऑक्साइड, सल्फाइड अथवा कार्बोनेट के रूप में पाई जाती हैं, जो न्यूनाधिक मात्रा में विजातीय पदार्थों (g जैसे चूना, सिलिका, मैग्नीशिया इत्यादि, से मिली हुई होती हैं। प्रकृति में पाई जानेवाली धातुओं के इस रूप को अयस्क (ore) कहते हैं। विभिन्न अयस्कों से धातुओं को उनके वास्तविक रूप में प्राप्त करने तथा उनका परिष्कार करने, या उन्हें आकार देने, की विधियों को धातुकर्म कहते हैं। आज के विश्व में धातुकर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो गया है और इसे मुख्यत: दो बृहत्‌ वर्गों में विभाजित कर दिया गया है :

  • (1) उत्पादन धातुकर्म तथा
  • (2) भौतिक धातुकर्म (Physical metallurgy)

उत्पादन धातुकर्म को भी दो बृहत्‌ भागों में बाँट दिया गया है :

  • (1) लोहस (ferrous) तथा
  • (2) अलोह (non-ferrous)।

लोहस धातुकर्म में लोह तथा इस्पात के उत्पादन और उनको आकार देने की विभिन्न विधियों का समावेश होता है। प्रमुख धातुओं में लोहे तथा इस्पात का स्थान सर्वोपरि है। इस्पात में जितने भौतिक और यांत्रिक गुण विद्यमान हैं उतने अन्य किसी धातु अथवा उसकी मिश्रधातु में नहीं। इसके साथ ही यह अधिकांश धातुओं से सस्ता पड़ता है। अलोह धातुकर्म में उन सभी धातुओं का परिष्कार करना तथा आकार देना सम्मिलित है जो लोहस धातुकर्म के क्षेत्र में नहीं आतीं, जैसे ताम्र, जस्ता, वंग, सीस, स्वर्ण, रजत, ऐल्यूमीनियम, मैगैनीज़ इत्यादि।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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