नन्दी नाड़ी ज्योतिष मूल रूप से दक्षिण भारत में अधिक लोकप्रिय और प्रचलित है। ज्योतिष की यह एक अनूठी शैली है जिसमें ताल पत्र पर लिखे भविष्य के द्वारा ज्योतिषशास्त्री फल कथन करते हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान शंकर के गण नन्दी द्वारा जिस ज्योतिष विधा को जन्म दिया गया उसे नंदी नाड़ी ज्योतिष के नाम से जाना जाता है।

नाड़ी ज्योतिष की विधि

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नाड़ी ज्योतिष विधि से जब कोई अपना भविष्य जानने के लिए के लिए ज्योतिषशास्त्री के पास जाते हैं। तब सबसे पहले पुरूष से उनके दायें हाथ के अंगूठे का निशान और महिलाओं से बाएं हाथ के अंगूठे का निशान लेते हैं। इसके बाद कुछ ताड़पत्र प्रशनकर्ता के सामने रखा जाता है और प्रशनकर्ता से नाम का पहला और अंतिम शब्द पूछा जाता है। प्रशनकर्ता के नाम से जिस जिस ताड़पत्र का मिलाप होता है उससे कुछ अन्य प्रश्न और माता पिता अथवा पत्नी के नाम का मिलाप किया जाता है। जिस भी ताड़पत्र से प्रशनकर्ता के जीवन का मिलाप होता है उसे ज्योतिषशास्त्री पढ़कर प्रशनकर्ता भविष्य कथन करते हैं।

नाड़ी ज्योतिष की विशेषता

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नाड़ी ज्योतिष की प्रमुख विशेषता यह है कि अगर प्रशनकर्ता को अपनी जन्मतिथि, जन्म नक्षत्र, वार, लग्न का पता होता है तो वह आसानी से ताड़पत्री तलाश कर पाते हैं। यह विधि उनके लिए भी उत्तम है जिन्हें अपनी जन्मतिथि एवं जन्मसमय की जानकारी नहीं होती है। अगर प्रशनकर्ता को भी अपनी जन्म तिथि एवं जन्म समय की जानकारी है तो भी इस विधि से वह अपना भविष्यफल जान सकते हैं। इस विधि से प्रशनकर्ता यह भी जान सकता हैं कि उसकी जन्मतिथि एवं समय क्या है। अन्य ज्योतिष विधि से अलग इसकी एक और मुख्य विशेषता यह है कि अन्य ज्योतिष विधि में बारह भाव होते हैं जिनसे फलादेश किया जाता है जबकि नंदी नाड़ी ज्योतिष विधि में सोलह भाव होते हैं। नंदी नाड़ी ज्योतिष में दिन और निश्चित समय में होने वाली घटनाओं का जिक्र भी किया गया है। निश्चित समय में होने वाली घटनाओं को आधार मानकर इससे पंचाग की सत्यता की भी जांच की जा सकती है। अगर अन्य ज्योतिष विधि से प्राप्त फलादेश का नंदी नाड़ी ज्योतिष विधि से मिलान करें तो भविष्य में आपके साथ होने वाली घटनाओं के विषय में निश्चित जानकारी प्राप्त की जा सकती हैं। नाड़ी ज्योतिष में विश्वास को सबसे अधिक महत्व दिया गया है। अगर प्रशनकर्ता को नाड़ी ज्योतिष पर पूर्ण विश्वास है तभी उसको इस विधि से भविष्य फल जानना चाहिए। अगर ग्रहों की पीड़ा निदान भी प्रशनकर्ता को इस विधि से पता हैं तो उसे प्रशनकर्ता को सत्य मानकर जो उपाय बताए गये हैं उसका पालन करना होता है। मान्यताओं के अनुसार अगर बताये गये उपाय पर अविश्वास कर उसका पालन नहीं करते हैं तो ग्रहों की पीड़ा बढ़ सकती है।

नाड़ी ज्योतिष में प्रत्येक भाव का फल

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प्रथम भाव यानी लग्न भाव से शरीर, स्वास्थ्य और १२ भावों का संक्षिप्त वर्णन होता है। द्वितीय भाव से धन की स्थिति, पारिवारिक स्थिति व शिक्षा एवं नेत्र सम्बन्धी विषयों का वर्णन किया जाता है। तृतीय भाव से पराक्रम और भाई बहन के विषय में जानकारी मिलती है। चतुर्थ भाव से सुख, ज़मीन जायदाद, मकान एवं वाहन सहित मातृ सुख का भी फलादेश किया जाता है। पंचम भाव संतान का घर होता है जो संतान सम्बन्धी जानकारी देता है। षष्टम भाव से रोग एवं शत्रुओं के विषय में जाना जाता है।