नगरघड़ी
छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर में बनी नगरघड़ी छत्तीसगढ़ लोक संस्कृति की पहचान है। इसे 1995 में नगर के मध्य स्थित पं रविशंकर शुक्ला उद्यान में स्थापित किया गया था। कांक्रीट से बने लगभग 50 फुट ऊँचे इसके स्तंभ के चारो ओर छह फुट व्यास की मैकेनिकल घड़ी लगाई गई थी। घड़ी में हर घंटे के बाद इसके बुर्ज में लगा घंटा बजता था। वर्ष 2007 में मैकेनिकल घड़ी में लगातार आ रही तकनीकी खराबी के कारण रायपुर विकास प्राधिकरण ने इसे बदलने का निर्णय लिया। घड़ी को बदल कर जी.पी.एस प्रणाली वाली नई प्रणाली की घड़ी लगाने का फैसला लिया गया। जी.पी.एस. प्रणाली पर आधारित घड़ी सही समय बताती है। यह प्रणाली भारतीय सेना और भारतीय रेल द्वारा उपयोग की जा रही है। रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष श्री श्याम बैस ने छत्तीसगढ़ की लोकधुनों को लोकप्रिय बनाने के लिए नगरघड़ी में हर घंटे के बाद बजने वाले घंटे की आवाज के पहले छत्तीसगढ़ की लोकधुनों को संयोजित करने का निर्णय लिया ताकि इससे आम आदमी भी छत्तीसगढ़ की लोकधुनों से परिचित हो सके। 26 जनवरी 2008 को नई घड़ी लगने के बाद से हर दिन हर घंटे छत्तीसगढ़ी धुनें बजती हैं। इन धुनों का चयन प्रदेश के लोक कलाकारों की विशेषज्ञ समिति के द्वारा किया गया है जिसमें लोक संगीत को पुरोधा माने जाने वाले श्री खुमानलाल साव, लोक गायिका श्रीमती ममता चन्द्राकर, छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्देशक श्री मोहन सुन्दरानी, लोक कला के ज्ञाता श्री शिव कुमार तिवारी और लोक कलाकार श्री राकेश तिवारी शामिल थे। समिति की अनुशंसा के फलस्वरुप श्री राकेश तिवारी ने विशेष रूप से लोकधुनें तैयार की है। सुबह चार बजे से हर घंटे के बाद लगभग 30 सेकेण्ड की यह धुनें नगरघड़ी में बजती हुई छत्तीसगढ़ की लोकधुनों से आम आदमी का परिचय कराती है। रायपुर की नगरघड़ी में चौबीस घंटे चौबीस धुनें बजती है। सुबह 4 बजे से प्रारंभ कर के इन धुनों के नाम इस प्रकार हैं- 4:00 बजे – जसगीत, 5:00 बजे – रामधुनी, 6:00 बजे – भोजली, 7:00 बजे - पंथी नाचा, 8:00 बजे – ददरिया, 9:00 बजे – देवार, 10:00 बजे – करमा, 11:00 बजे – भड़ौनी, दोपहर 12:00 बजे - सुआ गीत, 1:00 बजे – भरथरी, 2:00 बजे - डंडा नृत्य, 3:00 बजे – चंदैनी, 4:00 बजे – पंडवानी, सांयः 5:00 बजे - राऊत नाचा, 6:00 बजे – सरहुल, 7:00 बजे – आल्हा, रात 8:00 बजे - गौरा गीत, 9:00 बजे - गौर नृत्य, 10:00 बजे – धनकुल, 11:00 बजे – नाचा, 12:00 बजे - बांस गीत, 1:00 बजे - कमार गीत, 2:00 बजे - फाग गीत और 3:00 बजे - सोहर गीत की धुनें नगरघड़ी से सुनी जा सकती है। छत्तीसगढ़ की लोकधुन सुनाने की अवधारणा के कारण नगरघड़ी को लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स और इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में शामिल किया गया है।