नज़ीर अद देहलवी (१८३१-१९१२), जिन्हें औमतौर पर डिप्टी नज़ीर अहमद (उर्दू: ڈپٹی نذیر احمد) बुलाया जाता था, १९वीं सदी के एक विख्यात भारतीय उर्दू-लेखक, विद्वान और सामाजिक व धार्मिक सुधारक थे। उनकी लिखी कुछ उपन्यास-शैली की किताबें, जैसे कि 'मिरात-उल-उरूस' और 'बिनात-उल-नाश' और बच्चों के लिए लिखी पुस्तकें, जैसे कि 'क़िस्से-कहानियाँ' और 'ज़ालिम भेड़िया', आज तक उत्तर भारतपाकिस्तान में पढ़ी जाती हैं।

डिप्टी अहमद का जन्म 1831 में हुआ। वे एक मौलवियों के परिवार से थे और उनके पिता उत्तर प्रदेश के ज़िले बिजनौर में अरबी तथा फ़ारसी पढ़ाया करते थे। १८४२ में उनके पिता उन्हें दिल्ली के औरंगाबादी मस्जिद में कार्यरत अब्द उल-ख़ालिक़​ नामक मौलवी के पास पढ़ाने के लिए ले आये। १८४७ में डिप्टी अहमद ने दिल्ली कॉलेज में दाख़िला लिया और वहाँ १८५४ तक पढ़े। उन्होंने उर्दू को अपना अध्ययन-विषय चुना और बाद में अपने चुनाव का कारण समझाते हुए उन्होंने कहा कि 'मेरे पिता को मेरा भिखारी बनकर मर जाना मंज़ूर था लेकिन मेरा अंग्रेज़ी पढ़ना नहीं'। इस दौरान उन्होंने चेष्टा करके अपने पुराने गुरु अब्द उल-ख़ालिक़ की पोती से अपना विवाह भी करवा लिया।[1]

कॉलेज से उत्तीर्ण होने के बाद उन्होंने अरबी भाषा पढ़ाना शुरू किया। १८५४ में उन्होंने ब्रिटिश-संचालित भारत सरकार में नौकरी ले ली और १८५६ में कानपुर के जन-शिक्षा विभाग में स्कूलों के डिप्टी-इन्स्पेक्टर बन गए। १८५७ के अंत में उन्हें इलाहबाद में भी इसी डिप्टी-इन्स्पेक्टर का पद मिला। उन्होंने भारतीय दण्ड संहिता का उर्दू में इतना बढ़िया अनुवाद किया कि उन्हें कर विभाग में डिप्टी कलेक्टर की हैसियत पर ले लिया गया। वे उस समय 'पश्चिमोत्तर प्रान्त' के नाम से बुलाये जाने वाले राज्य में तैनात हुए, जिसे बाद में 'उत्तर प्रदेश' का नाम दिया गया। यहीं उनका नाम 'डिप्टी नज़ीर अहमद' पड़ गया।[2]

१८७७ में उन्होंने हैदराबाद के निजाम की सरकार में एक प्रशासनिक पद ले लिया जहाँ वे १८८४ तक रहे। १८८४ में निजाम के दरबारियों की आपसी राजनीति में वह फँस गए और उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा। वे दिल्ली वापस आ गए और १९१२ में दिल के दौरे से देहांत होने तक वहीं रहे।

मुख्य कृतियाँ

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  • मिरात उल-उरूस (अर्थ: 'दुल्हन का आइना') - १८६८ से १८६९ तक लिखी गई यह कहानी उर्दू भाषा का पहला उपन्यास समझी जाती है और यह स्त्री शिक्षा व चरित्र के विषयों पर आधारित थी। छपने के बीस साल के अन्दर-अन्दर इसकी एक लाख प्रतियाँ बिकी और इसका अनुवाद बंगाली, ब्रजभाषा, कश्मीरी, पंजाबी और गुजराती में किया गया। १९०३ में जी. ई. वार्ड ने इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद किया। इस उपन्यास का भारत में स्त्री-शिक्षा पर जनमत और सरकारी नीति पर भी असर पड़ा।[3]
  • बिनत उल-नाश (अर्थ: 'अर्थी की बेटियाँ', जो अरबी में सप्तर्षि तारामंडल का नाम है) - यह 'मिरत-उल-उरूस' में शुरू की गई कहानी को आगे बढ़ाती है।
  • तौबत उल-नसूह (अर्थ: 'हार्दिक पश्चाताप') - १८७३-७४ में लिखी गई।
  • फ़साना-ए-मुब्तला (अर्थ: 'उलझा फ़साना') - १८८५ में प्रकाशित यह उपन्यास भी युवाओं के नैतिक विकास पर केन्द्रित था।
  • इब्न-उल वक़्त (अर्थ: 'वक़्त का पुत्र') - १८८८ में छपे इस उपन्यास के बारे में मन जाता है कि यह सय्यद अहमद ख़ान पर आधारित है, हालाँकि डिप्टी अहमद इस बात से इनकार करते थे।
  • क़िस्से-कहानियाँ - बच्चों की किताब।
  • ज़ालिम भेड़िया - बच्चों की किताब।

इन्हें भी देखें

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  1. A history of Urdu literature, Mohammed Sadiq, Oxford University Press, 1964, ... Years after, when he emerged from the slough of poverty, he was to become the latter's husband. Nazir Ahmad's release from this drudgery, and his admission to the Delhi College, was providential. He had been attracted, we are told, to the Delhi College to watch the annual prize distribution; and as the crowd poured out of the building he fell down ... rescued from the crush, impress the kindly Principal with his ready wit, that he decided to admit him to the College with a stipend. He was advised to join the English class, but his father strongly opposed it, saying: 'I would rather that my son were to die or become a beggar than that he should study English.' He was at the College for eight years (1847-54) ...
  2. Urdu/Hindi: An Artificial Divide, Abdul Jamil Khan, pp. 208, Algora Publishing, 2006, ISBN 978-0-87586-438-9, ... Deputy Nazir Ahmad (1831-1912) a highly academic man, is famous by the name deputy, since he retired as a Deputy Collector or a revenue officer (in Urdu, dipti). Nazir Ahmad is considered a pioneer of novels in Urdu literature ...
  3. Early Novels In India Archived 2014-06-27 at the वेबैक मशीन, Meenakshi Mukherjee, pp. 131, Sahitya Akademi, 2002, ISBN 978-81-260-1342-5, ... Whatever be the veracity of the genesis of Mirat-ul uroos, its impact on the society, particularly in the field of female education, was considerable ...