नंदिकेश्वरप्राचीन भारत के महान नाट्य-सिद्धान्तकार थे। उन्होने अभिनयदर्पण की रचना की।

अभिनयदर्पण के श्लोक संख्या ३७ में नन्दिकेश्वर कहते हैं-

यतो हस्ताः ततो दृष्टिः
यतो दृष्टिः ततो मनः
यतो मनः ततो भावो
यतो भावो ततो रसः॥
( जहाँ हाथ होते हैं वहाँ दृष्टि होती है, जहाँ दृष्टि होती है वहाँ मन होता है, जहाँ मन होता है वहाँ भाव होता है, जहाँ भाव होता है वहँ रस होता है।)

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