नवीनचन्द्र राय (१८३७ - १८९०) आदि ब्राह्म समाज के अनुयायी, लाहौर में आदि ब्राह्म समाज के संस्थापक, शिक्षाविद तथा महान हिन्दीसेवी थे। वे महा आचार्य द्वारा पंजाब में ब्राह्म धर्म के प्रचार के लिये नियुक्त किये गये थे। उन्होने सन् १८६१ में लाहौर में ब्रह्म समाज की स्थापना की। उनकी मातृभाषा बंगला थी किन्तु हिन्दी के प्रचारक थे। सन् १८८० के आसपास उन्होने पंजाब में हिन्दी का प्रचार किया। वे उर्दू के विरोधी और देवनागरी के समर्थक थे।[1]

जिस प्रकार इधर संयुक्त प्रांत में राजा शिवप्रसाद शिक्षाविभाग में रहकर हिन्दी की किसी न किसी रूप में रक्षा कर रहे थे उसी प्रकार पंजाब में बाबू नवीनचंद्र राय महाशय कर रहे थे। संवत् 1920 और 1937 के बीच नवीन बाबू ने भिन्न-भिन्न विषयों की बहुत सी हिन्दी पुस्तकें तैयार कीं और दूसरों से तैयार कराईं। ये पुस्तकें बहुत दिनों तक वहाँ कोर्स में रहीं। पंजाब में स्त्री शिक्षा का प्रचार करनेवालों में ये मुख्य थे। शिक्षा प्रचार के साथ साथ समाज सुधार आदि के उद्योग में भी बराबर रहा करते थे।

नवीनचंद्र ने ब्रह्मसमाज के सिद्धान्तों के प्रचार के उद्देश्य से समय-समय पर कई पत्रिकाएँ भी निकालीं। संवत् 1924 (मार्च, सन् 1867) में उनकी 'ज्ञानप्रदायिनी पत्रिका' निकली जिसमें शिक्षासंबंधी तथा साधारण ज्ञान विज्ञानपूर्ण लेख भी रहा करते थे। यहाँ पर यह कह देना आवश्यक है कि शिक्षा विभाग द्वारा जिस हिन्दी गद्य के प्रचार में ये सहायक हुए वह शुद्ध हिन्दी गद्य था।

हिन्दी को उर्दू के झमेले में पड़ने से ये सदा बचाते रहे। हिन्दी की रक्षा के लिए उन्हें उर्दू के पक्षपातियों से उसी प्रकार लड़ना पड़ता था जिस प्रकार यहाँ राजा शिवप्रसाद को। विद्या की उन्नति के लिए लाहौर में 'अंजुमन लाहौर' नाम की एक सभा स्थापित थी। संवत् 1923 के उसके एक अधिवेशन में किसी सैयद हादी हुसैन खाँ ने एक व्याख्यान देकर उर्दू को ही देश में प्रचलित होने के योग्य कहा, उस सभा की दूसरी बैठक में नवीनबाबू ने खाँ साहब के व्याख्यान का पूरा खण्डन करते हुए कहा,

उर्दू के प्रचलित होने से देशवासियों को कोई लाभ न होगा क्योंकि वह भाषा खास मुसलमानों की है। उसमें मुसलमानों ने व्यर्थ बहुत से अरबी फारसी के शब्द भर दिए हैं। पद्य या छंदोबद्ध रचना के भी उर्दू उपयुक्त नहीं। हिन्दुओं का यह कर्तव्य है कि ये अपनी परम्परागत भाषा की उन्नति करते चलें। उर्दू में आशिकी कविता के अतिरिक्त किसी गम्भीर विषय को व्यक्त करने की शक्ति ही नहीं है।

शिक्षा का प्रचार-प्रसार संपादित करें

उन्होने अनेक विद्यालय खोले-

  • लाहौर के ओरिएण्टल कॉलेज के संस्थापक
  • पंजाब विश्वविद्यालय के प्रथम सहायक रजिस्ट्रार
  • स्त्री शिक्षा सभा के सचिव
  • अञ्जुमन-ए पंजाब के सदस्य (बाद में वे इसके सचिव बने और इसका नाम बदलकर 'ज्ञान विस्तारिणी सभा' कर दिया)
  • दलितों के लिए उन्होने रात्रिकालीन विद्यालय चलाए और 'चमार सभा' की स्थापना की।

सन्दर्भ संपादित करें

इन्हें भी देखें संपादित करें