नागरी लिपि सुधार समिति
नागरी लिपि सुधार समिति की स्थापना १९३५ में काका कालेलकर की अध्यक्षता में हुई। उन्होने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी, मराठी तथा गुजराती के लिए एक ही लिपि बनाने की दिशा में कुछ सुझाव दिए।[1]
डॉ गोरखप्रसाद ने मात्राओं को व्यंजन के बाद दाहिने तरफ लिखने का प्रस्ताव दिया
उत्तर प्रदेश सरकार ने 31 जुलाई , 1947 में आचार्य नरेंद्र देव की अध्यक्षता में नागरी लिपि सुधार समिति का निर्माण किया ।
डॉ सुनीति कुमार चटर्जी ने कतिपय परिवर्तनों के साथ देवनागरी लिपि के स्थान पर रोमन को स्वीकार करने का सुझाव दिया था ।