नागेश भट्ट या नागोजि भट्ट (1730–1810) संस्कृत के नव्य वैयाकरणों में सर्वश्रेष्ठ है। इनकी रचनाएँ आज भी भारत के कोने-कोने में पढ़ाई जाती हैं। ये महाराष्ट्र के ब्राह्मण थे। ये भट्टोजि दीक्षित के पौत्र हरिदीक्षित के शिष्य थे। इनके पिता का नाम शिव भट्ट और माता का नाम सतीदेवी था। पाणिनीय परम्‍परा में वरदराज के बाद इन्‍हीं का नाम लिया जाता है। इन्‍होंने व्‍याकरण पर ही प्रायः 10 से अधिक ग्रन्‍थ लिखे। व्‍याकरण के साथ ही साहित्य, धर्मशास्त्र, दर्शन, योग तथा ज्योतिष विषयों में भी इनकी अबाध गति थी।

प्रयाग के पास शृंगवेरपुर के राजा रामसिंह इनके आश्रयदाता थे। एक जनप्रवाद है कि नागेश भट्ट को सं. 1772 वि. में जयपुर राज में अश्वमेघ यज्ञ के अवसर पर आमंत्रित किया गया था। उस समय नागेश भट्ट संन्यास ले चुके थे। अतएव उन्होंने अश्वमेघ का निमंत्रण स्वीकार नहीं किया। नागेश के जीवन की क्रमबद्ध सामग्री नहीं मिलती।

बालशर्मा, नागेश भट्ट के प्रौढ़ शिष्यों में थे। उन्होंने मन्नुदेव और हेनरी कोलब्रुक की प्रेरणा से "धर्मशास्त्र संग्रह" नामक ग्रंथ लिखा था। इनकी प्रामाणिक शिष्यपरम्परा का अनुमान लगाना कठिन है।

रचनाएँ संपादित करें

नागेश दार्शनिक वैयाकरण हैं। मौलिक रचनाओं के साथ-साथ इनकी प्रौढ़ टीका रचनाएँ भी पाई जाती हैं। इनके सभी ग्रन्थ छप गए हैं और व्यापक रूप से पढ़े-पढ़ाए जाते हैं। ग्रंथों में नई-नई उद्भावनाएँ की गई हैं। नवीन तर्क एवं उक्तियों का प्रयोग है, परन्तु महाभाष्यकार की सीमा में सब समाहित हो गया है।

नागेश के नाम पर रसमञ्जरी टीका, लघुशब्देन्दुशेखर, बृहच्छब्देन्दुशेखर, परिभाषेन्दुशेखर, मञ्जूषा, लघुमञ्जूषा, परमलघुमञ्जूषा, स्फोटवाद, महाभाष्य-प्रत्याख्यान-संग्रह और पतंजलिकृत महाभाष्य पर उद्योत नामक टीकाग्रंथ पाए जाते हैं। इन ग्रंथों की छाया में प्रचुरग्रंथों की सृष्टि हुई है। टीका और टिप्पणियों की भरमार है।

वैयाकरण-सिद्धांत-मंजूषा नागेश का व्याकरणदर्शनग्रन्थ है। इसका निर्माण उद्योत और परिभाषेन्दुशेखर से पूर्व हुआ है। मञ्जूषा, लघुमञ्जूषा, परमलघुमञ्जूषा ये तीनों ही व्‍याकरण के दार्शनिक ग्रन्‍थ हैं।

परिभाषेन्‍दुशेखर, पाणिनीयव्‍याकरण का व्‍याख्‍याग्रन्‍थ है। इसका अध्ययन व्यापार बहुत बड़ा है। अतएव इस यशस्वी ग्रन्थ पर अनेक टीकाएँ उपलब्ध हैं। लघुशब्देन्दुशेखर और बृहच्छब्देन्दुशेखर भट्टोजि दीक्षित कृत प्रौढमनोरमा की क्रमशः व्‍याख्‍या एवं विस्‍तृत व्‍याख्‍या हैं।

स्‍फोटवाद, स्‍फोटवाद का विवेचनग्रन्‍थ है।

नागेश ने भानुदत्त की 'रसमंजरी' पर टीका की है। उस टीका की पाण्डुलिपि 'इंडिया ऑफिस', लन्दन की लाइब्रेरी में है। उसका लेखनकाल संवत् 1769 विक्रमी है।

सन्दर्भ संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें