नाट्यदर्पण, नाट्यशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसकी रचना आचार्य रामचन्द्र और आचार्य गुणचन्द्र ने सम्मिलित रूप से की थी। ये दोनो आचार्य हेमचन्द्र के शिष्य हैं। इनका कार्यकाल गुजरात के सिद्धराज, कुमारपाल और अजयपाल तीनों राजाओं के शासनकाल में रहा है। कहा जाता है कि अन्तिम राजा अजयपाल ने किसी कारण से क्रोधित होकर इन्हें प्राणदण्ड दे दिया था।

आचार्य गुणचन्द्र का “नाट्यदर्पण” के अलावा और कोई दूसरा ग्रंथ नहीं मिलता है। लेकिन कहा जाता है कि आचार्य रामचन्द्र ने कुल लगभग 190 ग्रंथों की रचना की थी। इनके द्वारा विरचित 11 नाटकों के उद्धरण “नाट्यदर्पण” में देखने को मिलते हैं। इसके अतिरिक्त “नाट्यशास्त्र” के इस ग्रंथ में अनेक दुर्लभ नाटकों के भी उद्धरण आए हैं, यथा विशाखदत्त द्वारा विरचित “देवीचन्द्र गुप्त”।

“नाट्यदर्पण” की रचना कारिका शैली में की गयी है। इसकी वृत्ति भी इन्हीं दोनों आचार्यों ने लिखी है। यह ग्रंथ चार “विवेकों” में विभक्त है। इसमें नाटक, प्रकरण आदि रूपक, रस, अभिनव एवं रूपक से सम्बन्धित अन्य विषयों का भी निरूपण किया गया है।

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