नारायण गणेश चंदावरकर (2 दिसम्बर 1855 — 4 मई 1923), प्रार्थना समाज के संस्थापकों में थे और भक्तिसंप्रदाय पर उनका बड़ा विश्वास था। वे भारत के पर्मुख समाज सुधारक थे।

नारायण गणेश चंदावरकर

इनका जन्म गौड़ सारस्वतों में हुआ। बचपन में पढ़ने के लिये बंबई भेजे गए ओर वहीं के निवासी बन गए। सन् 1879 में एल-एल.बी. हुए। उसके बाद उन्होंने बंबई में सफलतापूर्वक वकालत करना आरंभ किया और बंबई हाईकोर्ट के न्यायाधीश बने। वे विश्वविद्यालय के प्रथम भारतीय चांसलर थे। इस सेवानिवृत्ति के बाद राष्ट्रीय सभा के अध्यक्ष इंदौर के प्रधानमंत्री और अंत में, बंबई व्यवस्थापिका सभा के अध्यक्ष नियुक्त हुए। अंग्रेज सरकार का इनपर पूर्ण विश्वास था और सरकारी क्षेत्र में इनका बड़ा वजन भी था। रोलेट कमेटी के बाद जो कमेटियाँ हुईं उनमें भी सरकार ने इनसे काफी लाभ उठाया। बचपन से ही इन्हें समाचारपत्रों में लेख लिखने का चाव था। सन् 1899 तक इन्होंने फिरोजशाह मेहता के सहकारी की स्थिति से राजनीति में हाथ बँटाया। किंतु न्यायाधीश होने पर राजनीति से विमुख ही रहे। सामाजिक सुधार के लिये ये पाश्चात्य मतों को ही प्रधानता देते थे किंतु उनको व्यवहार में नहीं लाते थे।