बीकानेर से ८ मील पश्चिम में इसी नाम के रेलवे स्टेशन के निकट यह गांव है। इसके चारो ओर झाड़ियों और वृक्षों से अच्छादित सात-आठ छोटे-छोटे तालाब हैं। इसमें से एक तालाब के किनारे, जिसे केशोलय कहते हैं, एक लाल पत्थर का कीर्तिस्तंभ लगा है। यह १७वीं शताब्दी का ज्ञात होता है। इसके लेख से यह ज्ञात होता है कि इसका निर्माण प्रतिहार केशव ने बनवाया था। दूसरा उल्लेखनीय लेख यहां के बाघोड़ा जागीरदार के निवास स्थान के द्वार पर लगा हुआ है ज़ो ६ मई १७०५ ई० रविवार का है। इसमें उक्त वंश के इन्द्रभाण की मृत्यु तथा उसकी स्री अमृतदे के सती होने का पता चलता है।

नाल से दो मील दक्षिण में एक स्थान है, जिसे नाल का कुआं कहते हैं। यहां सात लेख हैं जिनमें ६ तो १६वीं शताब्दी तथा एक १७वीं शताब्दी का हैं। उल्लेखनीय स्थलों में यहां के मंदिरों, दो कुओं और एक तालाब का नाम लिया जाता है। मंदिर सब एक ही स्थान में एक दीवार से घिरे हैं, जिनमें पार्श्वनाथ और दादूजी के मंदिर उल्लेखनीय है। दोनों लाल पत्थर के बने हुए है। पार्श्वनाथ की मूर्ति संगमरमर की है तथा नीचे एक लेख खुदा है। ये मंदिर १७वीं शताब्दी के बने है। इनके सामने जैसलमेर के पीले पत्थर की बनी हुई दो देवलियां है, जिनमें से एक पर अश्वारुढ़ व्यक्ति और सती की आकृतियां बनी हैं। इससे कुछ दूर चारदीवारी के पास एक सादे लाल पत्थर का कीर्तिस्तंभ लगा हुआ है।