निःयुद्ध
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नियुद्ध एक प्राचीन भारतीय युद्ध कला (मार्शल आर्ट) है। नियुद्ध का शाब्दिक अर्थ है 'बिना हथियार के युद्ध' अर्थात् स्वयं निःशस्त्र रहते हुये आक्रमण तथा संरक्षण करने की कला। यह एक निःशस्त्र युद्ध कला है जिसमें हाथ और पाँव के प्रहार शामिल हैं। इसका मुख्य उद्देश्य आत्मरक्षा है। महाभारत आदि प्राचीन ग्रन्थों में नियुद्ध का उल्लेख मिलता है। वर्तमान में नियुद्ध का अभ्यास मुख्यतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं इसके आनुषंगिक संगठनों द्वारा अपने प्रशिक्षण शिविरों तथा शाखाओं में किया जाता है।
फोकस | आघात |
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Hardness | फुल काँटैक्ट, सेमी काँटैक्ट, लाइट काँटैक्ट |
मूल देश | भारत |
Parenthood | ऐतिहासिक |
ओलम्पिक खेल | नहीं |
साधारणतः व्यक्ति निहत्था ही घूमता है, ऐसी स्थिति में होने वाले आक्रमण से अपने शरीर को ही हथियार मानकर अपना संरक्षण करना इसमें सिखाया जाता है। इसके माध्यम से सहज ही अपने अन्दर की सोई हुयी ८० प्रतिशत से १०० प्रतिशत शक्ति का जागरण करना सीख सकते हैं। सामान्यतः साधारण मनुष्य अपनी २० प्रतिशत शक्तियों का ही उपयोग करता है।
इतिहास संपादित करें
निःयुद्ध एक प्राचीन भारतीय कला है। इसके आदिदेव भगवान शिव माने जाते हैं। महर्षि वशिष्ठ के काल में इसे निःयुद्ध कहते थे। विविध कालखण्ड में बाहुयुद्ध, मल्लयुद्ध, प्राणयुद्ध आदि इसके विभिन्न अंग थे। दक्षिण भारतीय कलरीपायट्टु में भी इस कला के अवयव हैं। यह भारतीय विद्या बौद्ध भिक्षुओं तथा प्रवासी भारतीयों द्वारा अनेक देशों में गयी तथा इससे अनेक युद्ध कलाओं का प्रादुर्भाव हुआ। पश्चिम में इसका उपयोग सामरिक दृष्टि से किया गया और यही इसका एकमात्र उद्देश्य बनकर रह गया जबकि भारतीय दृष्टिकोण शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक दृष्टि से मनुष्य का पूर्ण विकास करना रहा है। इस कला के वर्तमान स्वरूप का विकास इंडियन नियुद्ध मार्शल आर्ट्स फेडरेशन के रूप में सन १९८५ में ग्रांड मास्टर श्री अर्जुन सिंह घले द्वारा किया गया ! जिन्होंने निःयुद्ध के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित किया है ! आज हम लोग भी नियुद्ध के उत्थान के लिए कार्य कर रहे है आधुनिक युग में निःयुद्ध से ही अन्य कलाओं का जन्म हुआ है जिन्हे हम आज बिभिन्न नामों से जानते है जैसे कि बुशू , कराते, तायक्यान्डो , कुंग-फु , शोतोकान आदि !
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