निर्मोही अखाड़ा
यह एक बैरागी अखाड़ा है, जो श्रीरामानन्दी वैष्णव संप्रदाय से संबंधित है और इसके सरपंच महंत भास्कर दास है। ये अखाड़ा विशेषकर अयोध्या प्रकरण में 1959 में चर्चा में आया, जब इन्होनें अदालत में विवादित ढांचे के संदर्भ में वाद प्रारम्भ किया। उसने विवादित भूमि पर स्वामित्व का दावा करते हुए कहा कि अदालत द्वारा नियुक्त रिसीवर हटाया जाए। उसने खुद को उस स्थल का संरक्षक बताया जहां माना जाता है कि भगवान राम का जन्म हुआ था।
अयोध्या मामले में सबसे पहली कानूनी प्रक्रिया 1885 में इसी अखाड़े के महंत रघुवीर दास ने प्रारम्भ करी। उन्होने एक याचिका दायर कर राम चबूतरे पर छतरी बनवाने की अनुमति मांगी, लेकिन एक साल बाद फैजाबाद की जिला अदालत ने अनुरोध खारिज कर दिया।
30/09/2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आया। विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांटा गया। जिसमे से एक हिस्सा एक तिहाई जमीन निर्मोही अखाड़ा को, दूसरा जहां रामलला विराजमान हैं और आसपास की जमीन राम मंदिर को। एक तिहाई सुन्नी वक्फ बोर्ड को।
वर्तमान समय में निर्मोही अखाड़े को श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास में एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है और निर्मोही अखाड़े की ओर से महंत दिनेंद्र दास न्यास के सदस्य है।