नेट्टिपट्टम, केरल की पारंपरिक हस्तकला का एक अनूठा और महत्वपूर्ण प्रतीक है। यह एक प्रकार का सुनहरा अलंकरण है, जो विशेष रूप से मंदिरों के हाथियों को सजाने के लिए उपयोग किया जाता है। हाथी के माथे पर पहने जाने वाले इस अलंकरण को बनाने का उद्देश्य न केवल धार्मिक आस्था को व्यक्त करना है, बल्कि यह केरल की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और शिल्पकला का भी प्रतीक है। यह पारंपरिक कला आज भी अपनी भव्यता और अनूठे डिज़ाइन के कारण बेहद लोकप्रिय है।

इतिहास और परंपरा[2]

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nettipattam

नेट्टिपट्टम की उत्पत्ति केरल की प्राचीन धार्मिक परंपराओं और मंदिर संस्कृतियों से जुड़ी हुई है। यह वस्तु विशेष रूप से उन हाथियों के लिए बनाई जाती है जो विभिन्न मंदिर उत्सवों और समारोहों में भाग लेते हैं। केरल के मंदिरों में देवता की पूजा और उनकी शोभायात्रा में शामिल होने के लिए इन हाथियों को सजाया जाता है, और नेट्टिपट्टम इसके प्रमुख सजावट का हिस्सा होता है। इसे धार्मिक महत्व के रूप में देखा जाता है, क्योंकि यह केवल एक सजावटी वस्तु नहीं, बल्कि श्रद्धा, भक्ति और सम्मान का प्रतीक भी है।

प्रारंभ में, नेट्टिपट्टम का उपयोग मुख्य रूप से त्रिशूर पूरम जैसे महत्वपूर्ण मंदिर उत्सवों में किया जाता था। त्रिशूर पूरम, जो केरल के सबसे बड़े और प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है, में हाथी की सवारी प्रमुख आकर्षण होती है। इन हाथियों को फूलों से सजाया जाता है और उनके सिर पर नेट्टिपट्टम पहनाए जाते हैं।

निर्माण प्रक्रिया

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नेट्टिपट्टम का निर्माण एक जटिल और समयसाध्य प्रक्रिया है, जो कुशल शिल्पकारों द्वारा किया जाता है। इसे बनाने के लिए मुख्य रूप से लकड़ी का उपयोग किया जाता है, जिसे बाद में तांबे या पीतल की परतों से ढका जाता है। इन धातुओं पर सोने की परत चढ़ाई जाती है, ताकि यह सुनहरा और चमकदार दिखाई दे। इस पर परंपरागत डिज़ाइन और छोटे गोलाकार अलंकरण होते हैं, जिन्हें हाथ से सटीकता से तराशा जाता है।

निर्माण प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रत्येक नेट्टिपट्टम को कस्टमाइज किया जाता है, यानी यह हर हाथी के आकार और डिज़ाइन के अनुरूप तैयार किया जाता है। शिल्पकार इस प्रक्रिया में महीनों का समय लगा सकते हैं, क्योंकि उन्हें सोने की परतों को सही तरीके से लागू करने और डिटेलिंग पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होती है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व[3]

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significance

नेट्टिपट्टम का प्रमुख उपयोग केरल के मंदिर उत्सवों और विशेष रूप से उन अवसरों पर होता है जब भगवान की शोभायात्रा की जाती है। इन उत्सवों में, हाथी भगवान के प्रतीक होते हैं, और इन्हें सम्मान देने के लिए नेट्टिपट्टम पहनाया जाता है। इसे शुभता और पुण्य का प्रतीक माना जाता है, और यह धार्मिक विश्वास के साथ-साथ सांस्कृतिक समृद्धि का भी प्रतीक है।

केरल के प्रमुख मंदिरों में नेट्टिपट्टम का उपयोग भगवान अय्यप्पा, भगवान शिव, और देवी भगवती की पूजा में होता है। त्रिशूर पूरम और अय्यप्पा मंदिर के उत्सवों में यह विशेष रूप से लोकप्रिय है, जहां परंपरागत रूप से हाथियों को सजाया जाता है और उन्हें नेट्टिपट्टम पहनाया जाता है।

आधुनिक उपयोग और प्रासंगिकता[4]

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आजकल, नेट्टिपट्टम का उपयोग केवल धार्मिक उत्सवों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह केरल की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी महत्व रखता है। इसे अब घरों, होटलों, और विभिन्न सांस्कृतिक आयोजनों में सजावट के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके डिज़ाइन की सुंदरता और भव्यता के कारण यह पर्यटकों के बीच भी काफी लोकप्रिय हो गया है।

इसके अलावा, केरल के शिल्पकारों ने इसे एक व्यापार के रूप में अपनाया है, और अब वे इसे प्रदर्शनी, फेस्टिवल और इंटीरियर्स के लिए भी तैयार करते हैं। आजकल के शिल्पकार पारंपरिक तरीके से बने नेट्टिपट्टम के डिज़ाइन में कुछ आधुनिक तत्वों को भी शामिल कर रहे हैं, जिससे इसकी लोकप्रियता और बढ़ रही है।

पर्यावरणीय प्रभाव और चुनौतियाँ

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नेट्टिपट्टम के निर्माण में लकड़ी, धातु और सोने का उपयोग होने के कारण पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर कुछ चिंताएं हैं। पारंपरिक निर्माण सामग्री जैसे लकड़ी और धातु के उपयोग से प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव पड़ता है। इसके बावजूद, आजकल के शिल्पकार पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हो गए हैं और इस कला को संरक्षित करने के लिए स्थायी और पर्यावरण अनुकूल सामग्री का उपयोग करने लगे हैं।

इसके अलावा, शिल्पकला के उत्थान के लिए शिल्पकारों को प्रशिक्षण देने और इस कला को नई पीढ़ी के बीच लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता है, ताकि यह कला परंपराएं जीवित रह सकें।

निष्कर्ष

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elephants being used in a festival

नेट्टिपट्टम न केवल एक सजावटी वस्तु है, बल्कि यह केरल की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं का अभिन्न हिस्सा है। इसका निर्माण एक शिल्पकला का उदाहरण है, जो समय और परंपरा की कसौटी पर खरा उतरता है। यह केरल की धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक धरोहर और शिल्पकला के समृद्ध इतिहास को दर्शाता है। इस कला को संरक्षित करना और इसके महत्व को समझना न केवल केरल, बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

  1. "केरल का पारंपरिक शिल्प और कला", केरल टूरिज़्म, Lonely Planet.
  2. "केरल की सांस्कृतिक धरोहर", दी इंडियन एक्सप्रेस.
  3. "नेट्टिपट्टम: शिल्प और कला", हफिंगटन पोस्ट.
  4. https://englisharchives.mathrubhumi.com/news/offbeat/the-gold-standard-in-nettippattam-making-for-4-generations-and-counting-1.3765113
  5. https://en.wikipedia.org/wiki/Nettipattom
  6. https://www.traditionalartandcrafts.com/latest-update/nettipattam-a-hanging-of-tradition-woven-with-cre/216#:~:text=Nettipattam%2C%20in%20a%20real%20sense,%2C%20power%2C%20and%20heavenly%20blessings.
  7. https://keralaheritage.org/
  8. https://www.sahapedia.org/aanachamayam-the-fineries-used-elephant-pageants-kerala
  9. https://www.hindu-blog.com/2018/09/nettipattam-or-caparison-wall-hangings.html
  1. Pandey, Rameshwar (2022-05-26). "मौर्य और शुंग काल के दौरान विदेशी आदान-प्रदान के प्रकाश में भारतीय कला और संस्कृति". Anusanadhan: A Multidisciplinary International Journal (in Hindi). 7 (1&2): 5–7. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2456-0510. डीओआइ:10.24321/2456.0510.202203.
  2. "Nettipattom", Wikipedia (अंग्रेज़ी में), 2024-11-28, अभिगमन तिथि 2024-12-16
  3. link, Get; Facebook; X; Pinterest; Email; Apps, Other. "Nettipattam or Caparison Wall Hangings - History of Nettipattam in Hindu Religion". अभिगमन तिथि 2024-12-16.
  4. "Aanachamayam: Fineries used in Elephant Pageants in Kerala". Sahapedia (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-12-16.