जो आत्मवाद और अनात्मवाद दोनों से परे है,वही नैरात्मवाद है। अर्थात् जब कोई आत्मा के विषय पर उदासीन हो,उसको आत्मा के होने या न होने में कोई विश्वास ना हो;वो नैरात्मवादी है।उसके अनुसार आत्मा की ना तो कोई भौतिक सत्ता है और ना ही कोई आध्यात्मिक सत्ता है,वह तो सिर्फ प्राकृतिक है।शाब्दिक रूप से भी देखा जाए तो भी यहां "नै" प्रकृतिकता का बोध कराता है। कहीं-कहीं नैरात्मवाद को अनात्मवाद के अर्थ के रूप में प्रयोग किया गया है।क्यूंकि दोनों में बहुत सूक्ष्म अंतर प्रतीत होता है।