नोह राजस्थान के भरतपुर ज़िले से 6 किलोमीटर दूर भरतपुर-आगरा मार्ग पर स्थित है। आर.सी. अग्रवाल के निर्देशन में नोह में राज्य सरकार के पुरातत्त्व एवं संग्रहालय विभाग द्वारा उत्खनन करवाया गया। यहाँ से चित्रित धूसर मृद्भाण्ड संस्कृति के अवशेष मिले हैं। यहाँ से प्राप्त सामग्री में अलिखित ताँबे ढले सिक्के, मिट्टी की मूर्तियाँ, पत्थर व मिट्टी के मनके, ताँबे की चूड़ियाँ व वलय तथा चक्की व चूल्हे भी मिले हैं। यहाँ के मृद्भाण्ड काफ़ी चमकीले हैं तथा धातु की तरह खनकते हैं। इस संस्कृति के लोगों को लोहे का ज्ञान था। ताँबे की विभिन्न वस्तुएँ भी यहाँ से प्राप्त हुई हैं। यहाँ से मौर्यकालीन मृण्मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। इस काल में यहाँ के निवासी पक्की ईंटों के बने मकानों में रहते थे। नोह से मौर्य युगीन भवनों एवं नगर व्यवस्था का पर्याप्त ज्ञान होता है। सफाई व्यवस्था के लिए मौर्यकालीन नगरों के सदृश चक्रकूपों के प्रमाण मिले हैं। यहाँ से लोहे के कृषि सम्बन्धी उपकरण भी प्राप्त हुए हैं। नोह का पंचम काल शुंग-कुषाण युग की कला का प्रतिनिधित्व करता है। इस काल की मृण्मूर्तियों में ख़ाली जगह नहीं रहने दी गयी है बल्कि फल-फूल उकेरकर भर दी गयी है। यहाँ से प्राप्त मूर्तियों से यहाँ के निवासियों के पहनावे का ज्ञान होता है। वे सामने दो गाँठों वाली पगड़ी एवं धोती पहनते थे और उनके पैरों के बीच धोती का तिकोना छोर ज़मीन को छूता था। यहाँ से शुंग युग की अनेक यक्ष-यक्षणियों की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। यहाँ से कुषाण नरेश हुविष्क एवं वासुदेव के सिक्के मिले हैं।