न्यायवाक्य या 'सिल्लोगिज्म' (syllogism) (यूनानी: συλλογισμός – "conclusion," "inference") एक विशेष प्रकार का तर्क करने का तरीका है जिसमें दो अन्य कथनों (premises) के आधार पर तीसरा कथन (अनुमान या निष्कर्ष /proposition) निकाला जाता है।

अरस्तू ने सिल्लोजिज्म को इस प्रकार परिभाषित किया है - "वह शास्त्रार्थ (discourse) जिसमें कुछ चीजें (सत्य) मान लेने के बाद इनसे कुछ नया और भिन्न चीज व्युत्पन्न होती है, क्योंकि चींजे ही ऐसी हैं।"

(In Aristotle's Prior Analytics, he defines syllogism as "a in which, certain things having been supposed, something different from the things' supposed results of necessity because these things are so." (24b18–20))

परम्परागत रूप से सिल्लोगिज्म ही निगमनात्मक अनुमान का आधार रहा है। (आगमनात्मक अनुमान के लिये नहीं, जिसमें बार-बार के प्रेक्षणों के आधार पर नया निष्कर्ष निकाला जाता है)। फ्रेग (Frege) के कृतियों के कारण सिल्लोजिज्म का क्व् बजाय 'प्रेडिकेट लॉजिक' का प्रयोग किया जाने लगा।

1  
Barbara
 
Barbari
 
Darii
 
Ferio
 
Celaront
 
Celarent
2  
Festino
 
Cesaro
 
Cesare
 
Camestres
 
Camestros
 
Baroco
3  
Darapti
 
Datisi
 
Disamis
 
Felapton
 
Ferison
 
Bocardo
4  
Bamalip
 
Dimatis
 
Fesapo
 
Fresison
 
Calemes
 
Calemos

भारतीय न्यायवाक्य

संपादित करें

न्यायशास्त्र में अनुमान वाक्य के पाँच अवयव माने गए हैं - प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और गिमन। ध्यातव्य है कि ग्रीक न्यायवाक्य (या अरस्तू के न्यायवाक्य) के केवल तीन तत्व होते हैं।

इन्हें भी देखें

संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें