पंच पल्लव

पांच अलग-अलग पत्तों का एक अनुष्ठान वर्गीकरण है।

पंच पल्लव (शाब्दिक रूप से "पांच पत्ते") भारत में मराठा संस्कृति द्वारा देवक (कुलदेवता) के रूप में उपयोग किए जाने वाले पांच अलग-अलग पत्तों का एक अनुष्ठान वर्गीकरण है।

पंच पल्लव को देवक के रूप में धारण करने वाले कुलों में, इसका उपयोग विवाह, अंतिम संस्कार और अन्य महत्वपूर्ण संस्कारों के लिए किया जाता है।

इस्तेमाल की जाने वाली ये पांच पत्तियां आम तौर पर हिंदू मान्यता में सम्मानित पेड़ों से होती हैं, जैसे कलंब, रुई, अगड़ा और ऊम्बर। विशिष्ट वर्गीकरण इलाके और उपलब्धता से भिन्न होता है।



पंचपल्लव - पंचगव्य - पंचामृत

पंचपल्लव - हेमाद्रो ब्रह्मांडपुराणे - अश्वत्थोदुम्बरप्लक्षचूतन्यग्रोधपल्लवा: । पंचभंगा इति ख्याता: सर्वकर्मसु शोभना: । पंचभंगा पंचपल्लवा: । -- हेमाद्रि में ब्रह्माण्ड पुराण से कहा है कि , पीपर, गूलर, प्लक्ष, आम और बर की डारें पंचपल्लव कहलाती हैं। इस श्लोक में पंचभंगा ऐसा पाठ आया है। जिसका पंचपल्लव अर्थ है, ये सब कामों में उपयुक्त हैं।

पंचगव्य - तत्रैव स्कांदे - गोमुत्रं, गोमयं, क्षीरं, दधि, सर्पिर्यथाक्रमम। -- हेमाद्रि में स्कन्दपुराण से कहा है कि गोमूत्र, गोबर, दूध, दही और गऊ का ही सर्पि ये पंचगव्य कहलाते हैं। विष्णुधर्म में कहा है कि , जितना पंचगव्य बनाना हो उसका आधा अंश तो गोमूत्र लेना चाहिए, तीन-तीन भाग गोबर और दूध का होना चाहिए, दो भाग दही और एक भाग घृत तथा शेष कुशजल होना चाहिए। विष्णुधर्म में लिखा हुआ है कि , गायत्री मंत्र बोलकर गोमूत्र तथा 'गंधद्वारां' इस मंत्र को बोलकर गोबर एवम 'आप्यायस्व' इस मंत्र से दूध तथा 'दधिक्रवनो' इस मंत्र से दही और 'शुक्रमसि' से घी और 'देवस्व त्वा' से कुश का पानी मिलाना चाहिए। ऊपर कही हुई पांचों चीजों से पंचगव्य बनता है।

पंचामृत - हेमाद्रौ शिवधर्मे पंचामृतम दधि, क्षीरम, सिता, मधु, घृतं समृतम। -- हेमाद्रि में शिवधर्म से बतलाया है कि दही, दूध, खांड, शहद और घी ये पांचों मिलकर पंचामृत कहाते हैं।

मधुरत्रय - मदनरत्न ग्रंथ में कात्यायन का वचन है कि घी, दूध और शहद इन तीनों को मधुरत्रय कहते हैं।

षडरस - मदनरत्न ग्रंथ में ही भविष्य का वचन रखा है कि मधुर, अम्ल, लवण, कषाय, तिक्त, कटुक ये छ: रस कहे गए हैं।

सन्दर्भ संपादित करें

  • Maráthas and Dekhani Musalmáns: Handbooks for the Indian Army. By R. M. Betham. Published by Asian Educational Services, 1996. ISBN 81-206-1204-3, ISBN 978-81-206-1204-4. Page 153
  • Census of India, 1901. India. Census Commissioner. Printed at the Rajputana Mission Press, 1903. V. 1 pg. 99. [1]