अपनी नदियों, जंगल, पहाड़ों के लिए मशहूर छत्तीसगढ़ अपनी लोक कलाओं के लिए भी जाना जाता है। उसी में से एक नृत्य, पंथी नृत्य है।[1] यह सतनाम पंथ का नृत्य है। पंथी नृत्य के लिए हर साल 18 दिसम्बर का दिन खास है, क्योंकि ये गुरु घासीदास जी का जन्मदिवस होता है। इस दिन सफेद धोती, कमरबंद, घुंघरू पहने नर्तक मृदंग और झांझ की लय पर नृत्य करते हैं। इस प्रकार गुरु की जयंती मनाई जाती है।

पंथी गीतों में गुरू घासीदास ghasidas

का चरित्र गायन किया जाता है। इसमें रैदास, कबीर और दादू के आध्यात्मिक संदेश भी पाए जाते हैं। माघी पूर्णिमा या किसी त्यौहार पर 'जैतखम्ब' की स्थापना करते हैं और परम्परागत ढंग से नाचते-गाते हैं।[2] इनका मुख्य वाद्य यन्त्र मंदार व झाँझ हैं। इस नृत्य में एक मुख्य नर्तक होता है जो गीत की पहली कड़ी उठाता है, जिसे समूह के अन्य नर्तक दौहराते हैं एवं नाचते हैं। इस नृत्य की शुरूआत धीमी गति के साथ होती है जो मृदंग की गति के साथ बढ़ती जाती है। हकीकत में यह एक द्रुत गति का नृत्य है।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Pioneer, The. "Chhattisgarhi folk dance 'Panthi' performed". The Pioneer (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2021-08-09.
  2. "छत्तीसगढ़ ज्ञान : पंथी नृत्य - Panthi dance". छत्तीसगढ़ ज्ञान. अभिगमन तिथि 2021-08-09.