पन्ना (पन्नाधाय) को सर्वोत्कृष्ट बलिदान के लिए जाना जाता है जिन्होंने अपने एकमात्र पुत्र का बलिदान देकर मेवाड़ राज्य के कुलदीपक उदयसिंह की रक्षा की थी।

परिचय

पन्ना धाय, राणा सांगा के पुत्र राणा उदयसिंह की धाय माँ थी। वह एक खींची चौहान राजपूत थी [1][2][3][4], इसी कारण उसे पन्ना खींचन के नाम से भी जाना गया है ।[5] राणा साँगा के पुत्र उदयसिंह को माँ के स्थान पर दूध पिलाने के कारण पन्ना 'धाय माँ' कहलाई थी। रानी कर्णावती ने बहादुरशाह द्वारा चित्तौड़ पर हमले में हुए जौहर में अपना बलिदान दे दिया था और उदयसिंह के लालन पालन का भार पन्ना को सौंप दिया था।

पन्ना का बलिदान

दासी पुत्र बनवीर चित्तौड़ का शासक बनना चाहता था। बनवीर एक रात महाराणा विक्रमादित्य की हत्या करके उदयसिंह को मारने के लिए उसके महल की ओर चल पड़ा। एक बारी (पत्तल आदि बनाने वाले) ने पन्ना खींची को इसकी सूचना दी। [1] पन्ना राजवंश और अपने कर्तव्यों के प्रति सजग थी व उस पर उदयसिंह की रक्षा का भार था । उसने उदयसिंह को एक बांस की टोकरी में सुलाकर उसे पत्तलों से ढककर एक बारी जाती की महिला साथ चित्तौड़ से बाहर भेज दिया। बनवीर को धोखा देने के उद्देश्य से अपने पुत्र को जो कि उदयसिंह की ही आयु का था, उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया। बनवीर रक्तरंजित तलवार लिए उदयसिंह के कक्ष में आया और उसके बारे में पूछा। पन्ना ने उदयसिंह के पलंग की ओर संकेत किया जिस पर उसका पुत्र सोया था। बनवीर ने पन्ना के पुत्र को उदयसिंह समझकर मार डाला।[1] पन्ना अपनी आँखों के सामने अपने पुत्र के वध को अविचलित रूप से देखती रही। बनवीर को पता न लगे इसलिए वह आंसू भी नहीं बहा पाई। बनवीर के जाने के बाद अपने मृत पुत्र की लाश को चूमकर राजकुमार उदयसिंह को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए निकल पड़ी।

पन्ना और उसके विश्वासपात्र सेवक उदयसिंह को लेकर मुश्किलों का सामना करते हुए कुम्भलगढ़ पहुँचे। कुम्भलगढ़ का क़िलेदार, आशा देपुरा था, जो राणा सांगा के समय से ही इस क़िले का क़िलेदार था। आशा की माता ने आशा को प्रेरित किया और आशा ने उदयसिंह को अपने साथ रखा। उस समय उदयसिंह की आयु 15 वर्ष की थी। मेवाड़ी उमरावों ने उदयसिंह को 1536 में महाराणा घोषित कर दिया और उदयसिंह के नाम से पट्टे-परवाने निकलने आरंभ हो गए थे । उदयसिंह ने 1540 में चित्तौड़ पर अधिकार किया।[6][7]

मेवाड़ के इतिहास में जिस गौरव के साथ प्रात: स्मरणीय महाराणा प्रताप को याद किया जाता है, उसी गौरव के साथ पन्ना धाय का नाम भी लिया जाता है, जिसने स्वामिभक्ति को सर्वोपरि मानते हुए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान दे दिया था। इतिहास में पन्ना धाय का नाम स्वामिभक्ति के लिये प्रसिद्ध है। विश्व इतिहास में पन्ना के त्याग जैसा दूसरा दृष्टांत अनुपलब्ध है।

पन्ना धाय पर आधारित रचनाएँ

अविस्मरणीय बलिदान, त्याग, साहस, स्वाभिमान एवं स्वामिभक्ति के लिए पन्नाधाय का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। कई जाने माने लेखकों ने पन्ना पर आधारित कविताएँ और नाटक लिखे है।

साहित्यिक रचनाएँ

भारत रत्न गोविंद वल्लभ पंत द्वारा लिखित नाटक राजमुकुट में पन्ना के बलिदान का बहुत अच्छा चित्रण किया गया। डाक्टर राजकुमार वर्मा ने पन्ना पर आधारित एकांकी दीपदान लिखी है, जो कि कई पाठ्यक्रमों में सम्मिलित है ।

फ़िल्म

  • वीरांगना पन्ना, 1934 में हर्षदराय सकेरलाल मेहता द्वारा बनाई गई एक मूक फ़िल्म।
  • पन्ना दाई 1945 में बनी फ़िल्म ।[8][9]इस फ़िल्म के मुख्य पात्र दुर्गा खोटे, चंद्र मोहन, मीनाक्षी थे।

संदर्भ

  1. Ojhā 2008, पृ॰प॰ 86-87.
  2. Hooja 2008, पृ॰प॰ 461.
  3. Vīravinoda: Mevāṛa kā itihāsa : Mahārāṇāoṃ kā ādi se lekara San 1884 taka kā vistr̥ta vr̥ttānta, ānushaṅgika sāmagrī sahita 1986, पृ॰ 61.
  4. http://www.jstor.org/stable/42931212
  5. मेवाड़ रावल राणाजी री बात, प्रताप शोध संस्थान, उदयपुर,p.56-57
  6. Ojhā 2008, पृ॰प॰ 88.
  7. Somānī 1976, पृ॰ 193-194.
  8. https://www.imdb.com/title/tt0158843
  9. https://www.cinemaazi.com/film/pannadai