परमानन्द सेन
परमानंद सेन (कर्णपूर कवि) बंगला कवि तथा वैष्णव सन्त थे।
इनका जन्म 1581 में नदिया के काँचनपाड़ा में हुआ। पिता का नाम शिवानंद। श्री गौरांग ने इनका नाम 'कर्णपूर' रखा। इनके गुरु का नाम श्रीनाथ था। इनके पुत्र श्रीचंद्र भी सुकवि थे। इन्होंने 18 वर्ष की अवस्था में "श्री चैतन्यचरित महाकाव्य" 20 सर्गो में प्रस्तुत किया। इसकी भाषा प्रांजल, प्रसादगुणपूर्व तथा अलंकृत है। अन्य रचनाएँ आर्याशतक, श्री चैतन्य चंद्रोदय नाटक (सं. 1629), श्री गौरगणीद्देशदीपिका (सं. 1633), अलंकारकौस्तुभ तथा टीका बृहत् गणोद्देशदीपिका या कृष्णलीलोपदेश दीपिका, आनंदवृंदावन चंपू (22 स्तवकों में कृष्णलीला वर्णित) वर्णप्रकाश कोष तथा चमत्कार चंद्रिका हैं। चंपू भक्ति तथा वात्सल्य रसों से भरा है और इनके पांडित्य तथा प्रसिद्धि की आधारशिला है।