पराक्रम्य लिखत

मृत परिवादी के विधिक उतराधिकारी मृतक की जगह शामिल होंगे
(1). परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा-147 के अंतर्गत दण्डनीय प्रत्येक अपराध क्षमनीय है।
 (2)  राजीनामा के लिए न्यायालय कीे अनुमति आवश्यक नहीं है। 
 (3)  धारा 138 का अपराध क्षमनीय है। 
 (4)  धारा-147 में राजीनामा हो जाने पर आरोपी को दोषमुक्त माना जायेगा। 
 (5)  मजिस्ट्रेट गवाही हलफनामे पर धारा-145 के अंतर्गत दी जा सकती है। 
 (6)  यह शपथ पत्र सभी न्यायसंगत अपवादो के अंतर्गत जांच विचारण की कार्यवाही में पढा जायेगा।
 (7)  न्यायालय अभियोजन या अभियुक्त के आवेदन पर शपथकर्ता केा परीक्षा हेतु बुला सकता है   
 (8)  अपराध के पंजीयन के लिए 200 या 202 दं.प्र.स. के अंतर्गत मौखिक परीक्षण       आवष्यक नहीं है। 
 (9)  धारा-146 के अंतर्गत बैंकं पर्ची अनादरण कें तथ्यों की प्रथम दृष्टया साक्ष्य हे। 
 (10)  चैक अनादृत हो गया है बैंक पर्ची पेष की जाने पर न्यायालय चेक अनादृत मानेगा 
 (11)  वे मेमो जिस पर षासकीय चिन्ह लगा हुआ है जिससे यह पता चलता है कि चैक अनादृत हो गया है। न्यायालय चेक का अनादृत मानेगा। 
 (12)  यह कि जब तक ऐसा तथ्य असाबित नहीं हो जाता तब तक न्यायालय बैंक की पर्ची या मेमो पेष किये जाने पर अनादृत मानेगा।  
 (13)  धारा 144 में समन तामीली का तरीका दिया गया है। 
 (14)  अभियुक्त का या गवाह का संमसं जारी करने वाले मजिस्ट्रेट जहां पर वह वास्तव में रहता है भेज सकता है। 
 (15)  जहां पर वह व्यवसाय करता है या व्यक्तिगत रूप से कार्य करता है उसे संमस भेज सकता है। 
 (15)  संमंस स्पीड पोस्ट द्वारा या कोरियर द्वारा भेजा जा सकता है इसके लिए सत्र न्यायालय की अनुमति आवष्यक है। 
 (16)  जहां प्राप्ति पर संमंस लेने से मना कर दिया है कि टीप अंकित हो वहां न्यायालय यह घोषित कर सकता है कि संमंस जरिये तामील हो गया है। 
 (17)  धारा-143 में प्रार्थी का विचारण प्रथम श्रेणी न्यायिक दण्डाधिकरी अथवा महानगर मजिस्ट्ेट संक्षिप्त विचारण कर सकता है। 
 (18)  संक्षिप्त विचारण के दौरान दं.प्र.सं. की धारा-262 से 265 के अनुसार विचारण किया   जा सकता है। 
 (19)  संक्षिप्त विचारण के दौरान एक वर्ष से अधिक की सजा और पांच हजार से अधिक का अर्थ दण्ड नहीं दिया जा सकता है। 
 (20)  विचारणं इस धारा के अंतर्गत शिकायत दर्ज होने के 6 माह के अंदर पूरा किये जाने की कोशिश की जायेगी इस धारा के अंतर्गत मामले का विचारण नतीजे तक दिन प्रति दिन जारी रहेगा। 
 (21)  धारा-142 में अपराध का सज्ञानं लिखित शिकायत पर पाने वाले अथवा चैक धारक के द्वारा करने पर दिया जायेगा। 
 (22)  शिकायत एक महिने केे अंदर की जावेगी जब धारा-138 सी के अंतर्गत चेक देने वाले पर नोटिस प्राप्त होने के बाद 15 दिन के अंदर धनराषि का संदाय नहीं किया जाता है ं।
 (23)  महानगर मजिस्ट्रेट अथवा प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट के द्वारा यह अपराध का विचारण किया जावेगा। 
 (24)  न्यायालय निर्धारित समयअवधि के बाद पर्याप्त कारण विलम्ब का दर्षाये जाने पर भी षिकायत का संज्ञान ले सकता है। 
 (25)  द्वितीय श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्ेट के द्वारा धारा-138 के अपराध का संज्ञान नहीं लिया जा सकता   है। 
 (26)  धारा-141 में भी कम्पनी को दंड दिया जा सकता है। 
 (27)  धारा-141 में कम्पनियों द्वारा किये गये अपराध के लिए कम्पनी को उत्तरदायी धारा-138 में बनाया जा सकता है। 
 (28)  कम्पनी का हर व्यक्ति जो अपराध होने के समय कम्पनी में व्यवसाय व कम्पनी के संचालन का भारसाधक था दण्डित किया जावेगा। 
 (29)  कम्पनी का हर व्यक्ति जो अपराध के लिए उत्तरदायी है अपराध का दोषी माना जायेगा, यदि व्यक्ति यह प्रमाणित कर दे कि अपराध उसकी जानकारी में किया गया है तो वह उत्तरदायी है। यदि यह प्रमाणित करता है कि उसने ऐसे अपराध को रोकने के लिए पूरे समय तत्पर्ता अपनाई थी तो भी वह उत्तरदायी नहीं है।   
  (30)  धारा 141 में कम्पनी का अर्थ निगमित निकाय से है। 
  (31)  इसमें व्यक्तियों की फर्म सम्मिलित है। 
  (32)  इसमें अन्य संघ षामिल है। 
  (33)  निदेषक का अर्थ फर्म के संबंध में फर्म के हिस्सेदार से है। 
  (34)  कम्पनी के भारसाधक का अर्थ व्यवसाय के दिन प्रतिदिन के सम्पूर्ण नियंत्रण से है। 
  (35)  केवल कम्पनी की तरफ से चेक पर हस्ताक्षर करने वाले निदेषक को सूचना पत्र देना पर्याप्त है। 
  (36)  केवल कम्पनी को ही सूचना पत्र देना अनिवार्य है। 
  (37)  कम्पनी के पारिसमापन के बाद भी निदेषक उत्तरदायी नहीं है। 
  (38)  धारा 140 के अनुसार यह उचित अभिकथन नही होगा कि चैक जारी करते समय जारी कर्ता के द्वारा विष्वास करने का कारण ं था कि कथित कारण से चेक अनादृत हो जावेगा। 
  (39)  धारा 139 में धारक के पक्ष में खण्डित उपधारणा दी है। 
  (40)  जिसके अनुसार यह उपधारणा की जाएगी कि चैक धारक ने किसी ऋण या अन्य दायित्व का पूर्ण रूप से निर्वाह करने के दौरान प्राप्त किया। 
  (41)  यह उपधारणा की जावेगी कि आंशिक रूप से निर्वाह करने के लिए चैक प्राप्त किया। 
  (42)  धारा 138 के अंतर्गत 2 वर्ष के कारावास की सजा का प्रावधान है। 
  (43)  धारा-138 के अंतर्गत अर्थ दण्ड चैक की दुगनी रकम तक हो सकेगा। 
  (44)  दोनो दण्ड से भी दण्डित हो सकेगा। 
  (45)  प्रतिकर चेक की रकम के अनुसार दिया जायेगा। 
   धारा 138 के अपराध के लिए निम्नलिखित 
 (46)  चैक लिखी तारीख से 6 महिने की मियाद बैंक में पेष हो। अब मियाद की अवधि 3 महिने हो गई है। लेकिन अधिनियम में परिवर्तन नहीं किया गया है।
 (47)  चैक तिथि मान्य अवधि के लिए पेष हो। 
 (48)  दोनो में जो पहले हो तब पेष हो। 
 (49)  चैक अनादरण कीसूचना के 30 दिन के अंदर लिखित नोटिस देकर धन की मांग की जाना जरूरी है। 
   धारा138 के लिए आवष्यक
 (50)  चैक लिखने वाला व्यक्ति प्राप्ति के बाद 15 दिनो के अंदर धनराषि का भुगतान कर दे। 
 (51)  15 दिन के अंदर भुगतान करें। 
 (52)  केवल कानूनी रूप से वसूली ऋण धन प्राप्त किया जा सकता है। 
 (53)  केवल कानूनी रूप से वसूल योग्य अन्य दायित्व धन की वसूली की जा सकती है।      
   धारा-138 में 
 (54)  बैंक से तात्पर्य उपरवाल बैंक से है अनादृत बैंक से नही है। 
 (55)  चैंक कालसीमा बाधित ऋण के लिए दिये जाने पर प्रावधान धारा-138 के आकर्षितनहीं होते। 
 (56)   यदि अभिस्वीकृति कालसीमा बाधित ऋण की समय समाप्त होने के पूर्व प्राप्त होगी तभी धारा-138 आकर्षित होगी। 
 (57)  चैक उपहार दान धरमार्थ दिये जाने पर भी अनादरण की दषा में धारा-138 लागू नहींहोती है 
 (58)  विक्रय के प्रतिफल स्वरूप जारी चैक अनादरण पर धारा-138 लागू होती है।
 (59)  खाता बदं होने पर भी लागू होगी। 
 (60)  स्टाप पेमेंट पर लागू होगी। 
 (61)  पिता के ऋण के बदले पुत्र चैक दे दे तो धारा-138 लागू नहीं होगी।   
 (62)  पोस्टेड चैक खाता खत्म मात्र प्राप्ति की सूचना के बाद पेष होने पर भी धारा-138 लागू होगी। 
 (63)  अपर्याप्त राषि पं्रबंधक के पद की टीप धारा-138 लागू होती। 
 (64)  ओवर ड्राफ्ट की दषा में लागू होगी। 
 (65)  ओवर ड्राफ्ट की दषा में यदि बैंक एकांकी रूप से सुविधा बंद कर दे तो धारा‘138 लागू नहीं होगा। 
   धारा-138 के लिए 
 (66)   चैक पर हस्ताक्षर पर्याप्त हैे। 
 (67)  चैक पूरा निष्पादक द्वारा ही लिखा जाना अनिवार्य नहीं है। 
 (68)  पेय आडर चैक की परिभाषा में आता हैं।
 (69)   स्वयं के देय पर धारा-138 लागू नहीं ंहोता है।
 (70)  यदि चैक लेखीवाल के अपूर्ण हस्ताक्षर में हो जो बेईमानी पूर्वक न हो तभी तो धारा-138 आकर्षित होती है। 
 (71)   यदि हस्ताक्षर का मिलान नहीं हो पायेगा तो धारा-138 लागू होती है। 
 (72)  संयुक्त हस्ताक्षर की दषा में एक के भी हस्ताक्षर पर धारा-138 लागू होती है। 
 (73)  नोटिस प्राप्ति पर चैक राषि अदा करने पर नोटिस का व्यय भी अदा करना जरूरी नहीं है। 
 (74)   धारा 138 के अंर्तगत आपराधिक कार्यवाही के साथ साथ सिविल कार्यवाही हो सकती है। 
 (75)  धारा-138 के साथ सिविल कार्यवाही हो सकती है। 
 (76)  दोनो कार्यवाही एक साथ चल सकती है। 
 (77)  सिविल कार्यवाही लंबित रहने की दषा में आपराधिक कार्यवाही कारक का दुरूपयोग नहीं है। 
 (78)  सूचना पत्र कीअवधि के अवतरण के पूर्व परिवाद प्रस्तुति अपरिपक्व नहीं होगी क्यों कि संज्ञान लेना परिवाद पेष करना दो अलग अलग बाते है।   
 (79)  धारा-138 का परिवाद परिवादी की मृत्यु पर समाप्त नहीं होगा। 
 (80)  मृत परिवादी के विधिक उत्तराधिकारी मृत परिवादी की जगह षामिल होगे। 
  (81)  बेंक के संमंापन के बाद मर्जर बैंक परिवाद जारी रख सकता है। 
 (82)  गारंेटर के विरूद्ध परिवाद पेष किया जा सकता है। 
 (83)  यह कि 1 मार्च 1882 में लागू हुआ है। 
 (84)  यह कि 147 धारा है।
 (85)  बैंकर में डाक घर बचत बैंक षामिल है ं
 (86)  वचन-पत्र ऐसी लेख पर लिखा जाए जिसमें निष्चित व्यक्ति या उसके आदेषानुसार लिखत के वाहक को धन की निष्चित राषि बिना किसी षर्त के दी जाती है। 
 (87)  विनिमय-पत्र ऐसी लेख पर लिखत है जिसमें निष्चित व्यक्ति को निर्देष देने वाले के रचयिता के द्वारा हस्ताक्षर अषर्त आदेष रखता है निष्चित व्यक्ति को निष्चित राशि दिया जाए। 
 (88)  चैक वचन पत्र नहीं है। 
 (89)  चैक विनिमय पत्र है। 
 (90)  धारा-118 में लिखित के संबंध में उपधारणा दी गई है। 
 अधिनियम की धारा-118 के अनुसार जब तक कि प्रतिकूल साबित नहीं कर दिया जाता, निम्नलिखित उपधारणाएं की जाएंगी-
 (91)  प्रतिफल के विषय में यह कि हर एक परक्राम्य लिखत प्रतिफलार्थ     रचित या लिखी गई थी और यह कि हर ऐसी लिखत जब प्रतिग्रहीत, पृष्ठांकित, परक्रामित या अन्तरित हो चुकी हो तब वह प्रतिफलार्थ, प्रतिगृहीत, पृष्ठांकित, परक्रामित या अन्तरित की गई थी;
 (92)  तारीख के बारे में यह कि ऐसी हार परक्राम्य लिखत जिस पर       तारीख पडी है, ऐसी तारीख को रचित या लिखी गई थी;
 (93)  प्रतिग्रहण के समय के बारे में यह कि हर प्रतिग्रहित विनिमय-पत्र     उसकी तारीख के पश्चात युक्तियुक्त समय के अंदर और उसकी     परिपक्वता के पूर्व प्रतिगृहीत किया गया था;
 (94)  अन्तरण के समय के बारे में यह कि परक्राम्य लिखत का हर       अन्तरण उसकी परिपक्वता के पूर्व किया गया था;
 (95)  पृष्ठांकनो के क्रम के बारे में यह कि परक्राम्य लिखत पर विद्यमान     पृष्ठांकन उस क्रम में किए गए थे जिसमें वे उस पर विद्यमान हैं;
 (96)  स्टाम्प के बारे में यह कि परक्राम्य लिखत पर विद्यमान-पत्र या       चैक सम्यक् रूप से स्टापित था;
 (97)  यह कि धारक सम्यक्-अनुक्रम धारक है यह कि परक्राम्य लिखत     का धारक सम्यक्-अनुक्रम-धारक है,
   (98) अधिनियम की धारा-139 में उपधारणा दी गई है कि जब तक तत्प्रतिकूल साबित न हो यह उपधारणा की जाएगी कि चेक के धारक ने धारा 138 में निर्दिष्ट प्रकृति का चेक किसी ऋण या अन्य दायित्व के पूर्णतः या भागतः उन्मोचन के लिए प्राप्त किया है।