पर्ली पेनाईल पैप्युल्स

पर्ली पेनाईल पैप्युल्स (Pearly Penile Papules or PPP or Hirsuties Papillaris Genitalis), नर के शिश्न मुण्ड (Penis Glans) के कोरोना (Corona) की त्वचा पर दिखने वाली दानेदार संरचनाएँ हैं। सभी पुरुषों में इस जगह पर अदृश्य दाने होते हैं, लेकिन कुछ लोगों में ये दाने ज्यादा बड़े हो जाते हैं। इन बड़े दानों को ही “पर्ली पेनाईल पैप्युल्स” कहा जाता है।

पर्ली पेनाईल पैप्युल्स

ये बिल्कुल सामान्य संरचनाएँ होती हैं। ये ठीक उसी तरह से है, जैसे कि हमारे शरीर के अन्य हिस्से की त्वचा कभी-कभी रूपांतरित होकर तिल, मस्सा आदि बना लेती है।

लक्षण तथा पहचान

संपादित करें

इनकी विशिष्ट पहचान यह है कि ये एक या एक से आधिक ‘पंक्ति’ में पाए जाते हैं। इनका आकर ३ मिली मीटर तक हो सकता है। इनका रंग माँसपेशियों के रंग के जैसा ही होता है। इन दानों में न तो कोई दर्द होता है, न किसी प्रकार की खुजली और न ही रक्तस्राव होता है। इनका संचरण यौन - क्रिया के द्वारा नहीं होता है। अगर चिकित्सक अनुभवी न हो तो गलती से वह इसे जेनाईटल वार्ट (Genital Wart) भी समझ सकता है। जबकी यह जेनाईटल वार्ट से बिल्कुल अलग चीज़ है। “जेनाईटल वार्ट” एक यौनजनित रोग है, किंतु “पर्ली पेनाईल पैप्युल्स” कोई रोग है ही नहीं। यह त्वचा का एक रूपांतर मात्र है।

व्यापकता

संपादित करें

“पर्ली पेनाईल पैप्युल्स” शिश्न पर होता है। अतः जाहिर है कि यह सिर्फ पुरुषों में पाया जा सकता है। महिलाएँ इससे प्रभावित नहीं होती। विभिन्न प्रकार के अध्ययनों से यह पता चला है कि १३ वर्ष से अधिक आयु के ज्यादातर पुरुषों में यह पाया जाता है। कुछ देशों में ८ % तथा कुछ देशों में लगभग ४८ % पुरुषों के लिंग पर ये संरचनाएँ पाई जाती हैं। अमेरिका में १३ % पुरुषों के लिंग पर ये संरचनाएँ पाई जाती हैं।

भारत के संबंध में कोई आँकड़ा उपलब्ध नहीं है, परंतु अमेरिका में हुए अध्ययनों से यह ज्ञात है कि काली प्रजाति में इसकी संभावना अधिक होती है। अतः ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में १३ % से अधिक लोगों के लिंग पर “पर्ली पेनाईल पैप्युल्स” पाया जाता है।

अध्ययन से ये भी पता चला है कि बिना “खतना” किए हुए पुरुषों में इसकी संभावना अधिक होती है, परंतु इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि खतना किए हुए पुरुषों में यह होती ही नहीं।

“पर्ली पेनाईल पैप्युल्स” हानिरहित होता है। अर्थात् इनसे किसी प्रकार की कोई हानि नहीं होती है। यह यौनजनित रोग भी नहीं है तथा ये यौन क्रिया के द्वारा नहीं फैलता है। इनसे व्यक्ति के यौन-जीवन पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

यह रोग नहीं है

संपादित करें

इससे प्रभावित व्यक्ति को लगता है कि उसे कोई रोग हो गया है। परंतु अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर इसे रोग नहीं माना जाता है। “विश्व स्वास्थ्य संगठन” की परिभाषा के अनुसार रोग उसे कहते हैं, जिसके हो जाने पर व्यक्ति कोई विशेष प्रकार की क्रिया करने में असमर्थ हो जाता है। चुँकी इससे कोई क्रिया प्रभावित नहीं होती है; अतः यह रोग नहीं है। बिना खतना किए गए लिंग में ये ज्यादा पाया जाता है, इसका एक कारण “हस्थ्मैथुन” भी माना जाता है।

“पर्ली पेनाईल पैप्युल्स” क्यों होते हैं? इसका कारण ज्ञात नहीं है। पर इतना जरूर ज्ञात है कि ये यौन संबंध से नहीं होता है। पहले यह माना जाता था कि ये सफाई की कमी से होते हैं। लेकिन अब यह सिद्ध हो चुका है कि सफाई से इसका कोई लेना-देना नहीं है। आयुर्वेद में त्वचा पर होने वाले इस तरह के विकारों का कारण “वात दोष” माना जाता है।

चुँकी यह एक रोग नहीं है; अतः इसके उपचार की आवश्यकता नहीं है, परंतु फिर भी सौंदर्य कारणों से अगर कोई इसका इलाज कराना चाहे, तो “कार्बन-डाई-ऑक्साइड लेजर” से इसे सही किया जा सकता है। वर्तमान में इसके लिए खाने या लगाने वाली कोई प्रभावकारी औषधि उपलब्ध नहीं है।

सुझाव :- यह PPP मुस्लिमों में नहीं पाया जाता है, क्योंकि उनका बाल्यावस्था में ही खतना कर दिया जाता है, जिससे लिंग के टोपे पर कभी नमी नहीं रहती है और ये लोग अपने लिंग के टोपे पर डेला या पत्थर रगड़ते हैं, मुत्र करने के पश्चात्। मुस्लिमों के अलावा लोगों में यह PPP नमी की वजह से आती है, तो जिन लोगों में यह पाई जाती है, वे लोग यदि अपने लिंग के मुंड को खुला रखें, तो यह काफी हद तक कम हो सकती है।

इसे भी देखें

संपादित करें

मुख्य रूप से इंग्लिश विकिपीडिया से

बाह्य कड़ीयाँ

संपादित करें

और अधिक जानकारी

संपादित करें
  • Sonnex C, Dockerty WG (1999). "Pearly penile papules: a common cause of concern". Int J STD AIDS. 10 (11): 726–7. PMID 10563558. डीओआइ:10.1258/0956462991913402. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)