पर्वतारोहण या पहाड़ चढ़ना शब्द का आशय उस खेल, शौक़ अथवा पेशे से है जिसमें पर्वतों पर चढ़ाई, स्कीइंग अथवा सुदूर भ्रमण सम्मिलित हैं। पर्वतारोहण की शुरुआत सदा से अविजित पर्वत शिखरों पर विजय पाने की महत्वाकांक्षा के कारण हुई थी और समय के साथ इसकी 3 विशेषज्ञता वाली शाखाएं बन कर उभरीं हैं: चट्टानों पर चढ़ने की कला, बर्फ से ढके पर्वतों पर चढ़ने की कला और स्कीइंग की कला. तीनों में सुरक्षित बने रहने के लिए अनुभव, शारीरिक क्षमता व तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है।[1] पर्वतारोहण एक खेल, शौक या पेशा है जिसमें पर्वतों पर, चलना, लंबी पदयात्रा, पिट्ठूलदाई और आरोहण शामिल है। यूआईएए (UIAA) या यूनियन इंटरनेशनेल डेस एसोसिएशन्स डी'एल्पिनिसमे (Union Internationale des Associations d'Alpinisme), पर्वतारोहण तथा आरोहण के लिए विश्व भर में मान्य संस्था है जो पर्वतों तक जाने के रास्तों, चिकित्सा समस्यायों, बर्फ पर चढ़ाई, नवयुवक आरोही तथा पर्वत व आरोही की सुरक्षा से जुड़े अहम विषयों पर काम करती है।[2]

2004 में नेपाल के इम्जा से (आइलैंड पीक) के 20,305 (6189 मीटर) ऊँचे शिखर पर अपने अंतिम कदम बढ़ाता हुआ पर्वतारोही
एक खुली खाई

तकनीक संपादित करें

 
एईगुइल डू मिडी (फ़्रांस) की खादी से नीचे उतरते आरोही

हिम संपादित करें

ठोस बर्फ में ही पर्वतारोही के लिए पैदल चलना संभव हो पाता है। अधिक कुशल चढ़ाई के लिए पर्वतारोही अक्सर क्रैम्पोन नामक उपकरण का प्रयोग करते हैं। क्रैम्पोन उनके जूतों के साथ लगा रहता है तथा इसमें 8 से 14 दांते (स्पाइक) होते हैं। वे सख्त बर्फ के लिए बनाये जाते हैं व अतिरिक्त कर्षण प्रदान करते हैं। इससे एकदम खड़ी चढ़ाई व उतराई में सुविधा होती है। इनकी किस्मों में हल्के एल्यूमीनियम माडल हैं जो बर्फ से ढके हिमनदों पर चलने के काम आते हैं तथा इससे उच्च स्तर पर स्टील माडल हैं जो सीधी चढ़ाई व लटकती चट्टान/बर्फ पार करने में उपयोगी होते हैं। गहरी बर्फ में चलने के लिए विशेष हिम-जूतों का प्रयोग किया जा सकता है। स्की का प्रयोग उन प्रत्येक स्थानों पर किया जा सकता है जहां हिमजूतों का प्रयोग किया जाता है और इसके अतिरिक्त उनका प्रयोग सीधे व ऊँचे स्थानों पर भी किया जा सकता है। हालांकि मुश्किल मार्गों पर स्की करने के लिए उचित अभ्यास की आवश्यकता पड़ती है। सीधे व ऊँचे मार्गों पर पर्वतारोहण व स्कीइंग की कलाओं का एक साथ प्रयोग कर चढ़ाई करना और उतरना एक प्रकार का खेल है जिसे स्की पर्वतारोहण कहते हैं। बर्फ की ढलान पर सुरक्षित तरीके से चढ़ने-उतरने हेतु आरोही के लिए बर्फ की कुल्हाड़ी तथा पिछली सदी में विकसित विभिन्न पदचालन तकनीकों (जिनमें से अधिकतर यूरोप से आयीं हैं) का प्रयोग आवश्यक होता है। सबसे कम ढलान से सबसे सीधी चढ़ाई के दौरान सबसे पहले पैर को ऊंचाई की दिशा में उठाया जाता है, फिर ठोकर मारी जाती है और फिर क्रेम्पोन को आगे किया जाता है। बर्फ की कुल्हाड़ी की विधा में पहले उसको एक हाथछड़ी की तरह, फिर एक खूंटी की तरह इस्तेमाल किया जाता है, उसके बाद उसके सामने के हिस्से को कंधे के नीचे तथा ऊपर से एक चाकू के रूप इस्तेमाल किया जाता है और अंत में उसको सिर के ऊपर से घुमाकर ढलान की दिशा में फेंका जाता है। ये विभिन्न तकनीकें इस बात पर निर्भर करती हैं कि बर्फ की कुल्हाड़ी का डिजाइन कैसा है, तथा पर्वतारोही एक कुल्हाड़ी का इस्तेमाल कर रहा है कि दो का. बर्फ में रस्सियों के लिए लंगर के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुएँ कभी-कभार अविश्वसनीय होती हैं; उनमें बर्फ की खूंटी (जिसे पिकट कहा जाता है), एल्यूमिनियम से बने डेडमैन उपकरण (जिन्हें फ्लूक कहा जाता है) शामिल होते हैं; या उन्हें दबी हुई चीजों जैसे बर्फ की कुल्हाड़ी, स्की, चट्टानें एवं अन्य वस्तुओं से भी बनाया जाता है। सख्त बर्फ से भी लंगर का निर्माण किया जा सकता है, जिन्हें बोलार्ड कहते हैं।

हिमनद संपादित करें

हिमनद पर चलते समय बर्फ की खाईयां सबसे अधिक खतरनाक होती हैं। बर्फ में यह विशाल दरारें अक्सर नज़र नहीं आतीं क्योंकि इन पर बर्फ की एक पतली परत जमने से एक स्नोब्रिज सा बन जाता है। कई बार यह स्नोब्रिज केवल कुछ इंच ही मोटे होते हैं। पर्वतारोही रस्सियों की एक प्रणाली का उपयोग कर स्वयं को ऐसे खतरों से सुरक्षित रखते हैं। हिमनद यात्रा के लिए बुनियादी रूप में बर्फ की कुल्हाड़ी तथा क्रेम्पोन आवश्यक हैं। दो से पांच पर्वतारोहियों के दल एक रस्सी में समान दूरी पर बांधे जाते हैं। अगर एक पर्वतारोही गिरने लगता है तो अन्य सभी अपने स्थान पर स्थिर हो जाते हैं और सबकी शक्ति उसे गिरने से रोक लेती है। टीम के अन्य सदस्य गिरने वाले साथी को दरार से निकाल लेते हैं।

बर्फ संपादित करें

 
बर्फ पर चढ़ाई

जमी बर्फ पर सुरक्षित यात्रा के लिए कई विधियों का प्रयोग किया जाता है। यदि चढ़ाई कठिन है। परन्तु उतनी सीधी नहीं, तो आरोही बर्फ की कील गाड़ कर उनमें रस्सी लगा कर अपनी सुरक्षा करता है। हर आरोही उन्हीं कील के लंगरों का प्रयोग करते हुए चढ़ता है और अंतिम आरोही लंगर निकाल लेता है। कभी कभी बोलार्ड या हिमलम्बों का भी प्रयोग किया जाता है। यह उस दशा में अत्यंत उपयोगी रहते हैं जब सारी टीम एक साथ ही गिरने लगे. इस तकनीक को सिमुल-चढ़ाई के रूप में जाना जाता है और कभी कभी इसे खड़ी बर्फ और आसान चट्टान पर भी प्रयोग किया जाता है।

यदि चढ़ाई अत्यंत कठिन और खड़ी हो तो मानक तकनीक ही उपयुक्त रहती है। इसमें सभी एक-एक कर चढ़ते हैं औए एक स्थान पर पहुँच कर पीछे आने वाले का इंतज़ार करते हैं। सभी के एक जगह एकत्रित होने के बाद ही काफिला आगे बढ़ता है।

आश्रय संपादित करें

परिस्थितियों के आधार पर पर्वतारोही भिन्न-भिन्न आश्रयों का प्रयोग करते हैं। पहाड़ों में मौसम बहुत अप्रत्याशित हो सकता है इसलिए आश्रय पर्वतारोही के लिए सुरक्षा का बहुत महत्वपूर्ण पहलू है। ऊंचे पहाड़ों पर कई दिनों तक डेरा डालने की आवश्यकता हो सकती है।

आधार शिविर संपादित करें

"आधार शिविर" का इस्तेमाल शिखर पर जाने के प्रयास के लिए किया जाता है। आधार शिविर ऊपर की कठिन परिस्थितियों से सुरक्षित स्थानों पर बनाये जाते हैं। कई लोकप्रिय या खतरनाक पहाड़ों पर आधार शिविर स्थित हैं। जहां शिखर तक एक ही दिन में नहीं पहुँचा जा सकता है, एक से अधिक आधार शिविर बनाये जाते हैं। उदाहरण के लिए, एवरेस्ट के दक्षिण-पूर्व रिज वाले रस्ते में आधार शिविर के आलावा 4 अन्य शिविर भी मौजूद हैं।

झोपड़ी संपादित करें

विशेष रूप से यूरोपीय अल्पाइन क्षेत्रों में पहाड़ी झोपड़ियों का एक नेटवर्क है। फ्रांस में इन्हें रेफ्युजेस, इटली में रिफूगी, स्विट्जरलैंड में कबानेस, जर्मनी और ऑस्ट्रिया में हटेन, स्लोवेनिया में कोका, स्पेन में रेफ्युजियोस, तथा नॉर्वे में हाईत्त के नाम से जाना जाता है। ऐसे झोपड़ियां उच्च पहाड़ों सहित कई अलग-अलग ऊँचाइयों पर मौजूद होती हैं, हालाँकि अधिक दूरदराज क्षेत्रों में अधिक मौलिक आश्रय मौजूद होते हैं। पर्वतीय झोपडि़याँ विभिन्न आकार और किस्मों की होती हैं, लेकिन प्रत्येक में आम तौर पर एक सामाजिक भोजन कक्ष होता है और उनमें गद्दे, कंबल या दुवेट्स तथा तकिए से लैस सोने की सुविधायें होती हैं। मेहमानों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने बिस्तर स्वयं ले कर आयें. सुविधायें आमतौर पर मौलिक होती हैं, परन्तु ऐसे कठिन वातावरण में वे अत्यंत महत्वपूर्ण आश्रय प्रदान करती हैं। इसके अतिरिक्त वे मार्गों को अधिक व्यापक रूप से सुलभ बनाने का काम भी करती हैं क्योंकि आरोही यहाँ रुक कर यात्रा में विश्राम कर पाते हैं तथा भारी उपकरण उठाने से भी उन्हें छुटकारा मिल जाता है। अतः पर्वतारोहण में इनका अमूल्य स्थान माना जाता है। यूरोप में सभी झोपड़ियों में गर्मी के मौसम (मध्य जून से मध्य सितम्बर) के दौरान कर्मचारी उपस्थित रहते हैं और कुछ में वसंत ऋतु (मध्य मार्च से मध्य मई तक) में भी. अन्य स्थानों पर यह पतझड़ में भी झोपड़ियाँ खुली मिल जाती हैं। कुछ झोपड़ियों में एक हिस्सा हमेशा खुला रहता है। यह मानव रहित होती हैं और इन्हें विंटर हट कहते हैं। जब यह खुली होती हैं तब यह झोपड़ियां वेतन पाने वाले कर्मचारियों द्वारा चलायी जाती हैं, हालाँकि इनमें से कुछ को स्वैच्छिक कर्मचारी भी चलाते हैं जो अल्पाइन क्लबों के सदस्य होते हैं जैसे कि स्विस अल्पाइन क्लब तथा क्लब अल्पाइन फ्रैन्कैस. झोपड़ी के प्रबंधक, जिन्हें यूरोप में अभिभावक या वार्डेन कहते हैं, आमतौर पर जलपान और भोजन बेचने का काम भी करते हैं। यह सुविधा रात भर रुकने वालों तथा केवल दिन में रहने वाले, दोनों के लिए उपलब्ध होती है। यह देखते हुए कि अक्सर पानी सहित अधिकांश वस्तुएं हेलीकाप्टर द्वारा लायी जाती हैं, भोजन काफी विस्तृत होता है। इसमें ग्लूकोज़ युक्त आहार (जैसे आरोहियों के ले जाने के लिए मार्स व स्निकर बार), वहीँ बनायी गयी केक तथा पेस्ट्री, बीयर और शराब सहित गर्म और ठंडे पेय और रात्रि भोज के लिए उच्च कार्बोहाइड्रेट युक्त आहार सम्मिलित हैं। सभी झोपड़ियाँ हालाँकि यह सुविधायें नहीं प्रदान करतीं, तथा कुछ में आगंतुकों को स्वयं अपना इंतज़ाम करना होता है। उधर कुछ झोपड़ियाँ दोनों प्रकार की सुविधायें प्रदान करतीं हैं। आगंतुक व्यय कम रखने के लिए अपनी खाद्य सामग्री व पकाने के उपकरणों का प्रयोग कर सकते हैं अथवा अधिक व्यय करने वालों के लिए पका हुआ भोजन भी उपलब्ध रहता है। रात भर के लिए आरक्षण अनिवार्य समझा जाता है, तथा कुछ लोकप्रिय स्थानों पर तो यह आवश्यक भी होता है क्योंकि अच्छे मौसम या सप्ताहांत पर 100 बिस्तर वाली सुविधायें भी भर जाती हैं! एक बार किये गए आरक्षण को रद्द करवाना शिष्ट माना जाता है, क्योंकि इन झोपड़ियों के कर्मचारी बड़े परिश्रम से हर आरोही के रास्ते एवं चढ़ाई के प्लान का रिकार्ड रखते हैं ताकि आरोही की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. सब झोपड़ियों में टेलीफोन द्वारा संपर्क किया जा सकता है तथा सबमें भुगतान के लिए क्रेडिट कार्ड स्वीकार किये जाते हैं।

पड़ाव (बिवी या बिव्वी) संपादित करें

पर्वतारोहण के संदर्भ में, पड़ाव या बिवी एक आराम या सोने की अस्थायी व्यवस्था है, जिसमें पर्वतारोही को कैम्पिंग की पारंपरिक जगह में उपलब्ध ठहरने, खाने और उपकरणों की पूर्ण सुविधाओं से कम सुविधा प्राप्त होती है। इसमें केवल एक स्लीपिंग बैग और पड़ाव की बोरी लेना और सोना भी शामिल हो सकता है। कई बार छोटे आंशिक आश्रय क्षेत्रों जैसे हिमनदों की दरारों, चट्टानों के कटावों और बर्फ में बनी खाईओं का प्रयोग हवाओं से बचाव के लिए किया जाता है। इन तकनीकों का प्रयोग असल में आपातकाल में किया जाता था; यद्यपि जब बर्फीली गुफाओं का निर्माण करने के लिए समय और उपयुक्त बर्फ स्थिति उपलब्ध न हो, तो कुछ पर्वतारोही पड़ाव के लिए विशेष योजना के रूप में लगातार अल्पाइन स्टाइल की ओर समर्पित रहते हैं ताकि तम्बू का वजन बच सके. इन पड़ावों से संबंधित मुख्य जोखिम, अधिक मात्रा में ठण्ड की चपेट में आने का रहता है।

तम्बू संपादित करें

तम्बू पर्वतों में सर्वाधिक उपयोग होने वाले आश्रय हैं। ये साधारण तार्पलिन के टुकड़ों से लेकर अत्यधिक भारी डिजाईन वाले हो सकते हैं जो पर्वत की दुष्कर परिस्थितियों से बचने में मदद करते हैं। निरावरण की स्थिति में, तम्बू लगाने के लिए बर्फ या चट्टान के पीछे लगाने की आवश्यकता हो सकती है। तम्बू लगाने का एक खतरा यह है कि तेज हवाएं और भारी बर्फ़बारी खतरनाक हो सकती है और इस कारण से तम्बू ख़राब होकर टूट सकता है। इसके अलावा, तम्बू के कपड़े की निरंतर फड़फड़ाहट से नींद में बाधा उत्पन्न हो सकती है तथा आश्रय की सुरक्षा के प्रति आशंका बढ़ सकती है। एक तम्बू का चयन करते समय, आरोही विशेष पर्वतारोहण टेंटों पर भरोसा करते हैं जो विशेष रूप से तेज हवाओं और भरी बर्फ़बारी को झेलने के लिए बनाये जाते हैं। तम्बू के खूंटों को अतिरिक्त सुरक्षा के लिए बर्फ में दबाया भी जा सकता है।.

बर्फ की गुफा संपादित करें

जहाँ परिस्तिथियाँ अनुकूल हो तो बर्फ की गुफाएं भी पर्वत पर आश्रय का एक अन्य तरीका है। कई पर्वतारोही बहुत ऊँचाई पर तब तक टेंट का प्रयोग नहीं करते हैं जबतक बर्फ की स्थिति बर्फ की गुफा में रहने की आज्ञा देती है, क्योंकि बर्फ की गुफाएं टेंट की तुलना में काफी ज्यादा गर्म और शांत होती हैं। इन्हें एक बर्फ के फावड़े का प्रयोग करके पर्याप्त समय देकर अपेक्षाकृत आसानी से बनाया जा सकता है। ठीक तरह से बनाई गयी बर्फ की गुफा का तापमान शून्य के आसपास मंडराता रहेगा, जिसके सापेक्ष बाहरी तापमान गर्म हो सकता है। इन्हें ऐसी किसी भी जगह खोदा जा सकता है जहाँ कम से कम चार फीट बर्फ हो. क्विन्ज़ी एक अन्य प्रकार का आश्रय है, जिसे बर्फ के ढेर को मजबूत करके (प्रायः पैरों से कड़ा करके) बनाया जाता है। कुछ पर्वतारोहियों द्वारा इग्लू का प्रयोग किया जाता है, लेकिन इसे बनाना कठिन है और इसके लिए कुछ विशेष बर्फीली परिस्थितियों की आवश्यकता होती है।

खतरे संपादित करें

पर्वतारोहण में कई बार खतरे को दो श्रेणियों में विभाजित किया जाता हैं: वस्तुगत खतरे जो पर्वतारोही के उपस्थित न होने पर भी उपस्थित होते हैं, जैसे चट्टानों का गिरना, हिमस्खलन और ख़राब मौसम और व्यक्तिपरक खतरे जो पर्वतारोही द्वारा शुरू कारकों से ही संबंधित होते हैं। असावधानी के कारण उपकरण की खराबी और टूटना, थकान एवं अपर्याप्त तकनीक व्यक्तिपरक खतरे के उदहारण हैं। तूफानों और हिमस्खलन के कारण निरंतर परिवर्तित होने वाले रास्ते को वस्तुगत खतरे का उच्च स्तर माना जाता है, जबकि तकनीकी रूप से ज्यादा कठिन रास्ता जो इन खतरों से अपेक्षाकृत सुरक्षित होता है उसे वस्तुगत रूप से सुरक्षित माना जा सकता है।

संक्षेप में, पर्वतारोहियों को इन खतरों का ध्यान रखना चाहिए: गिरती चट्टानें, गिरती बर्फ, हिमस्खलन, पर्वतारोही का गिरना, बर्फीली ढलानों से गिरना, बर्फीली ढलानों का गिरना, बर्फीली दरारों में गिरना और ऊँचाई तथा मौसम के खतरे.[3] इन खतरों को कम करने के लिए अपने कौशल और अनुभव का प्रयोग करके एक रास्ते का चयन और अनुसरण करने में ही पर्वतारोही के कौशल की परीक्षा होती है।

गिरती चट्टानें संपादित करें

 
एक खड़ी चट्टान पर चढ़ना

प्रत्येक चट्टान कटाव के कारण धीरे-धीरे बिखरती है, यह प्रक्रिया विशेष रूप से बर्फ-रेखा के ऊपर तेज होती है। चट्टानों का आकार पत्थरों के गिरने के कारण निरंतर परिवर्तित होता रहता है, जिस कारण से धोखा हो सकता है। गिरती चट्टानें पर्वत पर गड्ढे बना देती हैं और इन गड्ढों (खड्डों) पर काफी सावधानी से चढ़ना होता है, इनके किनारे प्रायः सुरक्षित होते हैं जबकि मध्य भाग पर पत्थर गिरते रहते हैं। ताज़ा मौसम के अनुसार चट्टानें किसी अन्य चीज़ की तुलना में ज्यादा गिरती हैं। रात में बनी बर्फ चट्टानों को ऊपर से अस्थायी तौर पर बांध सकती है लेकिन दिन की बढ़ती गर्मी या बर्फ के पिघलने पर बहता पानी या वर्षा इन चट्टानों को हटा सकती है। ऐसे रास्तों पर गिरती चट्टानों का पता लगाने के लिए स्थानीय अनुभव मूल्यवान सिद्ध होते हैं।

चट्टान की परत के झुकाव की दिशा से कई बार विशिष्ट स्थिति पर खतरे की गंभीरता का पता चल जाता है; चट्टान की प्रकृति पर भी विचार जरुर करना चाहिए. जहां पत्थर अक्सर गिरते हों वहां नीचे उसके टुकड़े पाए जायेंगे, तथा बर्फ पर पत्थर गिरने से बड़े गड्ढे बन जाते हैं जो दूर से ही नज़र आ जाते है। किसी नए शिखर या एक अपरिचित मार्ग पर चढ़ने की योजना बनाने में पर्वतारोहियों को ऐसे निशानों पर विशेष ध्यान देना चाहिए. जब गिरते पत्थर बहुत अधिक संख्या में कीचड़दार बर्फ या पानी से मिलते हैं तो कीचड़ के स्खलन का निर्माण होता है (हिमालय में यह आम है). इस प्रकार की संभावित ढलानों में कैम्पिंग करने से बचना चाहिए.

गिरती बर्फ संपादित करें

बर्फ गिरने की प्रबल संभावना वाले स्थानों का सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। यह हिमनदों के टूटे भागों में और सकरी पर्वतश्रेणी के शिखर पर निर्मित लटकते किनारों से गिरती है। बड़े हिमलम्बों का निर्माण कड़ी चट्टानों पर होता है और ये ठन्डे और तूफानी दिनों को झेलती हुई अच्छे मौसम में ज्यादा गिरती हैं। गिरते पत्थरों की तरह इनसे भी बचना ज़रूरी है। हिमनद अत्यंत धीरे बनते हैं और अस्थिर संतुलन की स्थिति पर भी धीरे पहुँचते हैं (हिमनद की चाल के अनुसार). वे आम तौर पर दिन के सबसे ऊष्ण भाग में या उसके तुरंत बाद गिरते हैं। एक कुशल और अनुभवी आरोही आमतौर पर गिरती बर्फ के सबसे जटिल रस्ते के बीच सबसे सुरक्षित मार्ग का चिंतन करेगा परन्तु फिर भी गर्म दिनों की दोपहर में ऐसे स्थानों से बचना चाहिए. लटकते हिमनद (जैसे खड़ी ढलानों पर स्थित हिमनद) प्रायः खड़ी चट्टानों पर से एक निश्चित समयांतराल के बाद हट जाते हैं। इन्हें हमेशा नीचे पड़े इनके मलबे से पहचाना जा सकता है। इनके रस्ते से सदा बचना चाहिए.

चट्टानों से गिरना संपादित करें

एक शिला पर्वतारोही की दक्षता उसके पद व हस्त रखने के विकल्प, तथा चयन करने के बाद उनको जमाये रखने के कौशल से ज़ाहिर होती है। यह काफी हद तक उस चट्टान की क्षमता का अनुमान लगाने की काबिलियत पर निर्भर करता है, जिसपर वह खड़ा है। कई कमजोर चट्टानें एक व्यक्ति का वजन सहने के लिए पर्याप्त मजबूत होती हैं, लेकिन यह जानने के लिए अनुभव की आवश्यकता होती है कि किस पर विश्वास करें और बिना मरोड़े वजन को स्थानांतरित करने के लिए कौशल की आवश्यकता होती है। कुछ कमज़ोर चट्टानों पर रस्सी लगाते समय विशेष ध्यान की ज़रुरत होती है, क्योंकि इनसे पत्थर के नीचे गिरने की संभावना प्रबल रहती है। इसी तरह इनपर पैर व हाथ रखते हुए भी उचित ध्यान देना चाहिए. काफी जटिल चट्टानों से प्रतिबंधक को पार करते समय, एक खतरनाक स्थिति बढ़ सकती है जबतक कि प्रतिबंधक की दोनों स्थितियां अटल न हों. कठोर चट्टानों पर आपसी सहायता का बड़ा महत्त्व होता है। दो या तीन आरोही एक दूसरे की सहायता से आगे बढ़ते हैं, अथवा दूसरे द्वारा पैरों के लिए लगाई गयी बर्फ की कुल्हाड़ी पर पैर रखकर. आपसी सहयोग का सबसे प्रमुख सिद्धांत यह है कि दल के सभी सदस्य एक दूसरे की सहयता से चढ़ाई करें न कि एक स्वतंत्र इकाई के रूप में; इनमे से आगे बढ़ते प्रत्येक सदस्य को यह पता होना चाहिए कि आगे और पीछे वाला आरोही क्या कर रहा है। खराब मौसम के बाद खड़ी चट्टानों पर बर्फ की एक परत (इस परत को वेरग्लास कहते हैं) प्रायः पाई जाती है, जो इसे और भी दुर्गम बना देती है। ऐसी स्थिति में क्रेम्पोन अत्यंत लाभकारी हैं।

हिमस्खलन संपादित करें

हिमस्खलन पहाड़ों में सबसे कम आँका जाने वाला खतरा है। लोग आम तौर पर यह सोचते हैं कि वे इन खतरों को पहचानने और इससे बचने में सक्षम होंगे. सच्चाई असल में काफी भिन्न है। हर साल 120 से 150 लोग केवल आल्प्स में ही छोटे हिम्स्खालनों में मारे जाते हैं। इनमें अधिकतर 20 से 35 की आयु वर्ग के अनुभवी पुरुष स्कीयर्स होते हैं, लेकिन इसमें स्की निर्देशक और गाइड भी शामिल होते हैं।[उद्धरण चाहिए] बर्फ की पठार को पार करने में हमेशा खतरे का दबाव रहता है। वापस जाने में काफी समय और प्रयास, बेहतरीन नेतृत्व लगता है और सबसे महत्वपूर्ण कदाचित हिमस्खलन होता है जो यह साबित करता है कि सही निर्णय लिया गया था। मुड़ने का निर्णय लेना तब और कठिन हो जाता है जब अन्य लोग भी ढलान को पार कर रहे हों, लेकिन कोई भी अगला व्यक्ति कारण बन सकता है।

हिमस्खलन के कई प्रकार के होते हैं, लेकिन दो प्रकार सबसे अधिक चिंता के विषय हैं:

  1. शिला हिमस्खलन
    यह हिमस्खलन तब घटित होता है जब बर्फ की एक बड़ा प्लेट टूट कर ढलान पर नीचे की तरफ फिसलना शुरू कर देती है; ये सबसे बड़े और सबसे खतरनाक होते हैं।
    1. सख्त शिला हिमस्खलन
    इस प्रकार के हिमस्खलन का निर्माण एक संसक्त शिला में कड़ाई के साथ जमी बर्फ से होता है। यह शिला आसानी से टूटती नहीं है क्योंकि ये पर्वत से नीचे खिसक जाती हैं, जिसके परिणाम स्वरुप बड़े ब्लॉक्स पर्वत के नीचे टूटना शुरू हो जाते हैं।
    1. मुलायम शिला हिमस्खलन
    इस प्रकार के हिमस्खलन का निर्माण भी इकट्ठा हुई बर्फ के संसक्त परत से होता है, यह शिला आसानी से टूट जाती है।
  2. ढीली बर्फ का हिमस्खलन
    इस प्रकार के हिमस्खलन बहती हुई थोड़ी सी बर्फ के बड़े खंडो में जमा होने के कारण निर्मित होते हैं। इसे गीली स्लाइड या बिंदु रिलीज हिमस्खलन भी कहते हैं। इस प्रकार के स्खलन भ्रामक रूप से खतरनाक होते हैं क्योंकि ये किसी आरोही या स्कीयर के पैरों को फंसा कर उसने दफ़न भी कर सकता है या उन्हें किसी खड़ी चट्टान से एक स्थान पर फंसा भी सकती है।

खतरनाक फिसलन वाले खंड सबसे ज्यादा उसी जगह होते हैं जिस जगह को स्कीयर्स द्वारा सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है: लम्बे और चौड़े खुले हुए, कुछ पेड़ या बड़ी चट्टानें, 30 से 45 डिग्री का कोण, ताजा बर्फ की भरी मात्र, बड़े तूफ़ान के बाद, तूफानी ढलान पर. सौर विकिरण से भी स्खलन की शुरुआत हो सकती है। ये अधिकतर बिंदु रिलीज या गीला कीचड प्रकार के हिमस्खलन होंगे. गीली स्लाइड स्खलन में जुड़ा वजन शिला स्खलन का चालू करता है। हिमस्खलन का शिकार हुए नब्बे प्रतिशत शिकार उनके द्वारा स्वयं या उनके समूह के अन्य आरोहियों द्वारा ही आरम्भ किये जाते हैं .[उद्धरण चाहिए]

एल्पायिन रास्तों पर ऑफ-पिस्ट सफ़र करते समय वक़्त दलों को हमेशा इन वस्तुओं को ले जाने की सलाह दी जाती है।

  1. हिमस्खलन बीकन
  2. प्रोब
  3. बेलचा (हाथ के स्थान पर बेलचा से शिकारियों को पांच गुना तेज़ी से निकला जा सकता है)[उद्धरण चाहिए]

आरोहियों को हिमस्खलन प्रशिक्षण की सलाह भी दी जाती है। विडंबना यह है कि हिमस्खलन में हुई मौतों में सबसे प्रतिशत उन विशेषज्ञ स्कीयर्स का है जिन्होंने हिमस्खलन प्रशिक्षण किया होता है; शायद इसलिए कि वे हिमस्खलन के क्षेत्रों में स्की करना ज्यादा पसंद करते हों और शायद इसलिए क्योंकि कुछ लोग तेज और उयुक्त मुक्तक बनने के लिए अपने उपकरणों के साथ पर्याप्त अभ्यास नहीं करते हैं।[उद्धरण चाहिए]

उचित बचाव उपकरण और प्रशिक्षण के साथ भी, किसी बड़े हिमस्खलन में फंसने पर पांच में से एक की मरने सम्भावना होती है और कुछ मिनट के लिए दफ़न हो जाने पर जिंदा बचने की सम्भावना आधी होती है। इसका सबसे अच्छा समाधान यह है कि यह सीखा जाये कि किस प्रकार से जोखिम भरी परिस्तिथियों से बचा जाए.[उद्धरण चाहिए]

जमी बर्फ क़ी ढलानें संपादित करें

 
सर्दियों के उच्च तेट्रास में मिश्रित रॉक बर्फ, बर्फ और ढलान से उतरते पर्वतारोही.

बर्फ या कड़े हिमपात वाली ढलानों पर यात्रा करते समय, क्रेम्पोंस पर्वतारोही के उपकरणों का एक मानक भाग होते हैं। जबकि माध्यम कोण की बर्फीली ढलानों पर कई बार स्टेप-कटिंग का प्रयोग किया जा सकता है, फिर भी यह एक धीमी और थकाऊ प्रक्रिया है, जो क्रेम्पोंस की उच्च सुरक्षा प्रदान नहीं करती है। हालांकि, नरम बर्फ या पावडर में, क्रेम्पोंस आसानी से फंस जाते हैं, जिस कारण से इनका प्रभाव कम हो जाता है। अन्य स्थिति में, बर्फ की कुल्हाड़ी न केवल मदद करती है बल्कि आरोही को गिरने या फिसलने की स्थिति में खुद को सम्हालने की मदद भी करती है। फिर भी एक असली बर्फीली ढलान पर, बर्फ की कुल्हाड़ी बहुत कम ही खुद को पकड़ने में प्रभावी होती है। बर्फ की ढलान पर खड़े रहने के लिए सुरक्षा के अतिरिक्त एहितियत के रूप में, बर्फ में दबे बर्फ के पेंच पर्वतारोहण की रस्सी से बंधे होने चाहिए.

यूरोप में असली बर्फीली ढलान दुर्लभ है, यद्यपि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में काफी सामान्य है, जहाँ गिरी हुई नवीन बर्फ सतह पर जल्द ही पिघल जाती है और निचे बह जाती है, इसलिए अगली रात की ठण्ड में पूरा द्रव अर्द्ग-सख्त बर्फ की शीत में परिवर्तित हो जाता है।

बर्फ की ढलानें संपादित करें

 
फ्रांस और स्विट्जरलैंड के बीच हॉट रूट का भाग, बर्फ में दो आल्पसारोही को देखा जा सकता है।

बर्फ की ढलानें आम हैं और इनपर चढ़ाई करना भी आमतौर पर आसन होता है। हिमपाद या बर्फ की ढलान के नीचे सामान्यतः एक बड़ी हिम दरार होती है, जिसे बर्गस्क्रंड कहते हैं, जहाँ पर्वत की अंतिम ढलान बर्फ-क्षेत्र या हिमनद से निकलती है। ऐसी बर्कस्क्रंड चलकर पार करने के लिए बहुत चौड़ी होती हैं और इन्हें बर्फ के पुल से पार करना चाहिए, जिसके लिए ध्य्नापूर्वक परिक्षण और उद्यम पूर्वक रस्सी के प्रयोग की आवश्यकता होती है। एक खस्ता हाल खड़ी बर्फ की ढलान खतरनाक हो सकती है क्योंकि इसकी बर्फ का पूरा भाग एक स्खलन के रूप में आरम्भ हो सकता है। यदि ऐसी ढलानों पर टेढ़ा चढ़ने के स्थान पर सीधा चढ़ा जाए तो ये ज्यादा सुरक्षित होती है, क्योंकि तिरछे या क्षैतिज रास्ते इन्हें काटने लगते हैं और इनका द्रव बहना आरम्भ हो जाता है। जमी बर्फ पर गिरी नयी बर्फ विशेष रूप से खतरनाक होती है। बर्फ की संदेहास्पद स्थिति होने पर प्रगति की साध्यता की जांच कर लेने की आवश्यकता होती है। चट्टानों पर हिमपात अक्सर ख़राब होता है जबतक कि वह सख्त न हो जाए; बर्फ पर बर्फ एक सा लगता है। एक दो दिन का साफ़ मौसम बर्फ को अच्छी स्थिति में ला देगा. बर्फ बहुत खड़े कोण में पड़ी नहीं रह सकती है, यद्यपि आँखें इसकी ढलान से धोखा खा सकती है। बर्फ की ढलान कदाचित 40 डिग्री तक झुकी हो सकती है। सख्त जमी बर्फ (आईस) ज्यादा कोण तक टिक जाती है। सुबह बर्फ की ढलानें कड़ी और सुरक्षित होती हैं, परन्तु इसी प्रकार से दोपहर में कुछ नर्म और खतरनाक होती जाती हैं; इसलिए जल्दी चलने में फायदा है।

हिम दरारें संपादित करें

हिम दरार वे दरारें या गहरी खाईयां हैं, जो किसी हिमनद के पदार्थों के असमान तल से गुजरने पर निर्मित होती हैं। ये खुली या छिपी हुई हो सकती हैं। हिमनद के निचले भागों में हिम दरारें खुली होती हैं। बर्फ रेखा के ऊपर ये प्रायः सर्दी की बर्फ के धनुषाकार संचय से छिप जाते हैं। छुपी दरारों का पता लगाना बड़ी सावधानी और अनुभव का काम है। ताजा बर्फ के गिरने के बाद इन्हें बर्फ की कुल्हाड़ी की छड की आवाज द्वारा पता लगाया जा सकता है, या दांये और बांये देखकर जहाँ आंशिक रूप से ढकी हिम दरार का कोना बिलकुल खुला हो सकता है। दुर्घटना के खिलाफ रस्सी ही सुरक्षा है और किसी को भी कभी भी बर्फ से ढका हिमनद तबतक पार नहीं करना चाहिए जबतक उसके पास रस्सी न हो, या फिर दो साथी हो तो और अच्छा है। दरारों को पार करने वाले किसी भी व्यक्ति को हिम दरार से बचाव में भी पारंगत होना चाहिए.

मौसम संपादित करें

ख़राब मौसम के कारण बर्फ और चट्टान कि स्थितियों में होने वाले परिवर्तन मुख्य रूप से खतरनाक होते हैं, सामान्य परिस्तिथियों कि तुलना में अचानक घटित होने वाली ये घटनाये ज्यादा दूभर और हानिकारक होती हैं।

 
बर्फानी तूफान के हालात में अपर्याप्त दृश्यता.

बर्फ की सफ़ेद चादर में किसी रास्ते का पुनः पताgc लगाना कठिन है जबकि बारिश सूखी स्थितियों के सबसे आसान रास्ते में जाने से भी रोकती है। तूफ़ान में केवल अनुभव्युक्त पर्यवेक्षकों कि तुलना में दिशा के लिए कम्पास का प्रयोग करने वाले पर्वतारोहियों को ज्यादा लाभ होता है। बिलकुल, बड़े बर्फीले क्षेत्रों में, चट्टान कि तुलना में गलत रास्ते पर जाना आम होता है, लेकिन वतुगत खतरों से सुरक्षित बचकर निकलने के लिए बुद्धि और अनुभव सबसे अच्छे सहायक हैं।

गर्मी की आंधी तीव्र बिजली का निर्माण भी कर सकती है।[3] अगर पर्वतारोही शिखर पर या उसके निकट हों तो मारे जाने का खतरा हो सकता है। ऐसे कई केस हैं, जिनमे पर्वत चढ़ते समय बिजली से मारे गए। ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्रों में, स्थानीय तूफ़ान सुबह के बाद और दोपहर के पहले उत्पन्न होते हैं। अधिकतर आरोही "अल्पाइन शुरुआत" लेते हैं; जो सुबह से पहले या पहली किरण से होता है ताकि तूफ़ान की गतिविधि और बिजली तेज होने पर और अन्य मौसमी खतरों से सुरक्षित रहें. तेज़ हवाएं हाइपोथर्मिया के आक्रमण को बाधा सकतीं हैं, साथ ही उपकरणों को हबी नष्ट कर सकती हैं जैसे कि आश्रय के लिए उपयोग होने वाला टेंट.[3][4] कुछ विशिष्ट स्थितियों में, तूफ़ान जलप्रपात का निर्माण भी कर सकते हैं, जिस कारण से पर्वतारोहण कि प्रक्रिया धीमी या बंद हो सकती है। आयिजर पर्वत पर फान हवाएं इसका जीता जागता उदहारण हैं।

ऊंचाई संपादित करें

तेज़ी से चढ़ाई करने से 'ऐटीट्यूड सिकनेस' हो सकती है।[3][5] इसका सबसे अच्छा इलाज यह है कि तुरंत नीचे उतर आये. बहुत ऊँचाई पर आरोही का नारा यह होता है कि "ऊंचा चढो, कम सो", जिसका अर्थ है कि संरक्षक अभ्यस्त होने के लिए ऊंचे पर्वत पर चढ़े लेकिन सोने के लिए नीचे उतर आए. दक्षिण अमेरिका के एंडीज़ में, ऐटीट्यूड सिकनेस बीमारी से बचने के लिए पारंपरिक रूप से कोका की पत्तियों चबाया जाता रहा है।

ऐटीट्यूड सिकनेस के सामान्य लक्षणों में सख्त सिरदर्द, सोने की समस्या, मतली, भूख की कमी, सुस्ती और बदन दर्द है। पर्वतीय कमजोरी बढ़कर हेस (हाई ऐटीट्यूड सेरेब्रल एडेमा) और हेप (हाई ऐटीट्यूड पल्मनरी एडेमा) में परिवर्तित हो सकता है, इन दोनों से 24 घंटे के अन्दर मौत हो सकती है।[3][5][6]

ऊंचे पर्वतों में, वायुमंडलीय दाब कम होता है और इस कारण से सांस के लिए ऑक्सिजन की कमी होती है।[3] यह ऐटीट्यूड सिकनेस का आधारभूत कारण है। हर किसी को अभ्यस्त होने की आवश्यकता है, यहाँ तक कि उन अनुभवी पर्वतारोहियों को भी जो इतनी ऊंचाइयों पर पहले भी चढ़ चुके हैं।[7] सामान्यतया, 7000 मीटर से ऊपर की चढ़ाई करते समय पर्वतारोही बोतलबंद कृत्रिम आक्सीजन का प्रयोग कर लेते हैं। कुछ विशेष पर्वतारोही ऑक्सिजन के बिना ही 8000 मीटर तक की चोटी पर चढ़ जाते हैं (इसमें एवरेस्ट भी शामिल है), जिसके लिए हमेशा अभ्यास का सुनियोजित आयोजन होता है।

सौर विकिरण संपादित करें

ऊंचाई में सौर विकिरण काफी बढ़ जाता है क्योंकि ऊँचाई बढ़ने पर वायुमंडल पतला होता जाता है जिस कारण से यह कम पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित करता है।[3][4] बर्फ का आवरण विकिरण को परावर्तित करके बाधा सकता है जिस कारण से धुप में झुलसने और बर्फ के अंधेपन का खतरा 75% तक बढ़ जाता है।[4]

2005 में, शोधकर्ता और पर्वतारोही जॉन सैम्पल ने यह सिद्ध किया कि तिब्बती पठार में औसत से अधिक ओजोन सांद्रता पर्वतारोहियों के लिए एक अतिरिक्त जोखिम का जोखिम खड़ा कर सकती है।[8]

ज्वालामुखीय गतिविधियां संपादित करें

कुछ पर्वत सक्रिय ज्वालामुखी होते हैं जैसे कि संयोजित ज्वालामुखी जो द्वीप खण्डों की सबसे ऊंची चोटी और एंडीस के कुछ भागों में बनते हैं। इन ज्वालामुखीय पर्वतों के फटने के कारण कई खतरे उत्पन्न हो सकते हैं, जैसे लहरे, पायरोक्लास्तिक प्रवाह, चट्टानों का गिरना, लावा बहना, भरी मात्रा में तेफ्रा का गिरना, ज्वालामुखी बम का फटना और टॉक्सिक गैसें.

== पर्वतारोहण की शैलियाँ == पर्वतारोहण की दो मुख्य शैलियाँ हैं: अभियान चढ़ाईएल्पायिन पद्धति . == स्टाइलिंग शैल्या == पर्वतारोहण दोन मुख्य शैली आहेत: 'मोहिमेवर चढाई' आणि अल्पाइन प्रणाली '. यूरोप में पर्वतारोहण को एल्पायिन पद्धति के रूप में लोकप्रियता प्राप्त है। पर्वतारोहण युरोपमध्ये अल्पाइन प्रणाली म्हणून प्रचलित आहे. अमेरिका में यह पर्वत चढ़ने की एक विशिष्ट शैली है जिसमें बर्फ आरोहण, चट्टान आरोहण और मिश्रित आरोहण का मिश्रण होता है जहाँ आरोही अपना पूरा सामान पूरे समय वहां करता है। यूएस मध्ये, ही पर्वत चढणे एक विशिष्ट शैली आहे ज्यामध्ये हिमवर्षाव, रॉक क्लाइंबिंग आणि मिश्र वर्गीकरण यांचे मिश्रण आहे, जेथे चढत्या क्रमाने त्याच्या संपूर्ण सामग्रीचे सर्व वेळ वाहून जाते. अमेरिका में उपयोग होने वाले शब्द अल्पाइन पद्धति अभियान स्टाइल के आरोहण के साथ प्रयोग होता है (जैसा की प्रायः हिमालय क्षेत्र में प्रयोग किया जाता है) जहाँ आरोही अपने सामान और खाने को ढोने के लिए कुलियों, मालवाहक पशुओं, रसोइयों आदि का प्रयोग करते हैं। अमेरिकेत वापरल्या जाणार्या अल्पाइन पद्धतीचा वापर मोहीम शैली राख (जसे हे बर्याचदा हिमालय प्रदेशात केले जाते) मध्ये केला जातो ज्यामध्ये त्यांचे सामान व अन्न आणण्यासाठी पोस्टर्स, मालवाहू प्राणी, स्वयंपालन इत्यादी वापरतात. . हिमालय में अभियान स्टाइल के आरोहण का प्रचलन काफी हद तक इस क्षेत्र में पर्वत की प्रकृति के कारण है। हिमालयाच्या मोहिमेच्या शैलीची हालचाल मुख्यत्वे या भागातील डोंगराच्या स्वरूपामुळे आहे. चूंकि हिमालय के शिविर इसतक की यात्रा में कई दिन या हफ्ते लगा सकते हैं और हिमालय के पर्वत पर चढ़ने में कई हफ्ते या शायद महीने लग सकते हैं, इसलिए पर्याप्त मात्रा में उपयोगी सामानों की आवश्यकता होती है। हिमालय शिबिराने या यात्रेमध्ये काही दिवस किंवा आठवडे लागतात म्हणून हिमालय पर्वत चढण्यासाठी काही आठवडे किंवा महिने लागतील, त्यामुळे आवश्यक उपयुक्त वस्तू पुरवणे आवश्यक आहे. यही कारण है कि अक्सर हिमालय की बड़ी और सुदूर चोटियों पर अभियान शैली ही प्रयोग की जाती है। हेच कारण आहे की मोहिम शैली हिमालयाच्या मोठ्या आणि दुर्गम शिखरावरच वापरली जाते. यूरोप और उत्तरी अमेरिका में अभियान शैली की आवश्यकता कम पड़ती है क्योंकि अधिकतर पहाड़ों पर हवाई यात्रा या कार से पहुंचा जा सकता है, ये कम ऊंचे होते हैं और इन पर एक या दो दिन में ही चढ़ा जा सकता है। युरोप आणि उत्तर अमेरिकेमध्ये, मोहिमेच्या शैलीची गरज कमी आहे कारण बहुतेक पर्वत हवाई प्रवासाने किंवा कारद्वारा पोहोचू शकतात, ते कमी उच्च असतात आणि त्यांना एक किंवा दोन दिवसांत खरेदी करता येते. दोनों आरोहण शैलियों के भेद, तथा लाभ व खतरे इस प्रकार हैं:[1] === अभियान आरोहण === * निचले शिविरों से ऊपरी शिविर तक सामान ढोने के लिए कई यात्राएं करनी पड़ती. Arohan शैली आणि फायदे आणि जोखमी या दोन्ही गोष्टींचे फरक खालीलप्रमाणे आहेत: [9] === कॅम्पेन माउंटिंग === * निम्न छावणीपासून वरच्या छावणीपर्यंत सामान घेऊन जाण्यासाठी अनेक ट्रिप करणे आवश्यक आहे. * अल्पाइन स्टाइल की तुलना में शिविरों के बीच अधिक आपूर्ति की ज़रुरत के कारण दल का आकार भी बड़ा होता है। * अल्पाइन शैलीशी तुलना केल्यास, शिबिरादरम्यान अधिक पुरवठ्याची गरज यामुळे संघाचा आकार अधिक मोठा असतो. * शिविरों के बीच आने जाने में होने वाले खतरे को कम करने के लिए प्रायः स्थापित रस्सियों का प्रयोग किया जाता है। * स्थापन केलेल्या दोरीचा वापर सहसा शिबिराच्या दरम्यान येण्याचा धोका कमी करण्यासाठी केला जातो. * पर्वत पर अधिक समय बिताया जाता है और इसका अर्थ है कि आरोही लम्बे समय के लिए वस्तुगत खतरे को झेलते हैं। * अधिक वेळ डोंगरावर खर्च झाला आणि याचा अर्थ असा की चढत्या अस्वलाला दीर्घ कालावधीसाठी एक धोका आहे. * कृत्रिम ऑक्सीजन का प्रयोग बार बार किया जाता है। * कृत्रिम ऑक्सिजन वारंवार वापरले जाते === एल्पाइन पद्धति === * पर्वतारोही किसी मार्ग पर केवल एक बार चढ़ते हैं क्योंकि वे शिविरों के बीच सामान के साथ बार-बार उतरते चढ़ते नहीं हैं। === अल्पाइन पध्दत === * चढून चढतांना चढून जाणारे चढ-उतारा केवळ एकदाच चढतात कारण ते शिंपांमध्ये वारंवार माल चढत नाहीत. * कम सामान का प्रयोग किया जाता है, इसलिए कम कर्मियों कि आवश्यकता होती है। * काही गोष्टी वापरल्या जातात, म्हणून कमी कर्मचारी आवश्यक आहेत. * एल्पाइन पद्धति में आरोहियों को वस्तुगत खतरों को उतना नहीं झेलना पड़ता है जितना कि अभियान स्टाइल में; * आल्पाइन मोडमध्ये, पर्वतारोहण मोहिमेच्या शैलीत जितक्या जास्त उद्दीष्ट होण्याची गरज नाही; फिर भी, चूंकि इसकी गति अभियान स्टाइल आरोहण के सापेक्ष होती है इसलिए दशानुकुलन के लिए कम समय होता है। असे असले तरी, त्याच्या गतीची मोहीम स्टाईल क्लाइंबिंगशी संबंधित असल्याने, समायोजनसाठी कमी वेळ असतो. * कृत्रिम ऑक्सीजन का प्रयोग नहीं किया जाता. * कृत्रिम ऑक्सिजन वापरले नाही.

स्थान संपादित करें

पर्वतारोहण दुनिया भर में एक लोकप्रिय खेल बन चुका है। यूरोप में यह काफी हद तक आल्प्स में आरम्भ हुआ था और अभी भी वहाँ बेहद लोकप्रिय है। आरोहियों के बीच प्रसिद्ध अन्य पर्वत श्रंखलाये कौकासस, पायेरेनीस, रिला पर्वतमाला, तत्र पर्वतमाला तथा करपाथीयन पर्वत श्रंखलायें हैं। उत्तरी अमेरिका में पर्वतारोही चट्टानी पर्वतमाला, कैलिफोर्निया के सिएरा नेवादा, उत्तर पश्चिमी प्रशांत के कास्कैड्स तथा अलास्का की चोटियों को काफी पसंद करते हैं। द ग्रेट रेंजेज़ में अभियान ले जाने की आरोहियों की एक लम्बी परंपरा रही है, एक सामान्य शब्द जो प्रायः एंडीज और एशिया के ऊंचे पर्वतों के लिए उपयोग किया जाता है जिसमे हिमालय, कराकोरम, पामीर और टीएन शान शामिल हैं। अतीत में यह प्रारंभिक यात्रा या पहली चढ़ाई करने के लिए किया जाता था। लम्बी दूरी की सस्ती हवाई यात्रा आ जाने से अब इन 'ग्रेट रेंजेज़' की पर्वतारोहण की छुट्टियाँ अधिक सुलभ हो गयीं हैं। यहाँ तक की एवेरेस्ट तथा विन्सन मैसिफ (अन्टार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी) के अभियान को अब एक छुट्टी के पैकेज के रूप में बेचा जाता है। पर्वतरोहियों के अन्य पसंदीदा क्षेत्रों में न्यूजीलैंड का दक्षिणी आल्प्स, जापानी आल्प्स, दक्षिण कोरिया के पर्वत, ब्रिटिश कोलम्बिया के तटीय पहाड़, स्कॉट्लैंड के पहाड़ी क्षेत्र तथा स्केंडिनेवियाके पहाड़, विशेषकर नोर्वे शामिल हैं।

इतिहास संपादित करें

  • यद्यपि यह ज्ञात नहीं है कि उसका प्रयोजन शिखर पर जाना था या नहीं, लेकिन "ओत्ज़ी" ने करीब 5,300 वर्ष पहले एल्प्स पर आरोहण किया था। उसके मृत अवशेष उस ऊँचाई पर एक हिमनद में संरक्षित पाए गए।
  • आम युग में दर्ज किया गया सबसे पहला पर्वतरोहण रोमन शासक हेड्रियन की एटना(3,350 मीटर) पर पर किया गया आरोहण था, जो 121 में सूर्योदय देखने के लिए किया गया था।
  • अरागोन के पीटर तृतीय ने 13वी शताब्दी के अंत में पायरेनीस में कैनिगोऊ पर आरोहण किया था।
  • पोपोकेटपेटल(मेक्सिको की 5426 मीटर ऊंची) पर प्रथम आरोहण का ज़िक्र 1289 में स्थानीय आदिवासियों (तेकनुअपा) द्वारा किया गया है।[उद्धरण चाहिए]
  • जेअन बुरिदन ने 1316 के आसपास माउंट वेंटॉक्स पर आरोहण किया था।[10]
  • इतालवी कवि पेत्रार्च ने यह लिखा है कि अप्रैल 26, 1336 को उन्होंने अपने भाई व 2 नौकरों के साथ माउंट वेंटॉक्स (1,909 मीटर) के शीर्ष पर विजय प्राप्त की. उनकी इस यात्रा का वृत्तांत बाद में उनके एक मित्र दियोंजी डि बोर्गो सैन सैपोल्क्रो को लिखे पत्र के रूप में उपलब्ध हुआ।[11]
  • 1358 में इतालवी एल्प्स में रोषमेलन (3,538) पर आरोहण किया गया था।
  • पंद्रहवी शताब्दी के अंत एवं सोलहवीं शताब्दी के आरम्भ में, इंका साम्राज्य के नागरिकों और उनके अधीनों ने धार्मिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एंडीज़ पर्वतमाला की कई चोटियों पर चढ़ाई की. उन्होंने कई शिखरों पर कई मचान, वेदियाँ व घर भी बनाये और कई बलिदान भी किये, जिसमे मानव बलिदान भी शामिल है। सबसे ऊंची चोटी जिस पर उनकी विजय निश्चित रूप से ज्ञात है वह लूलालिआचो 6739 मीटर ऊंची थी। उन्होंने शायद एंडीज में सबसे ऊंची चोटी अकोंकागुआ (6,962 मीटर) पर भी विजय प्राप्त की थ, क्योंकि इस चोटी पर 5,000 मीटर की ऊँचाई पर बलिदान का एक शिकार मिला है।[12]
  • 1492 में फ्रांस के सम्राट चार्ल्स सप्तम के आदेश पर माउंट आयगिल पर विजय पायी गयी। सोलहवीं सदी के मानववादियों ने पहाड़ों को एक नए दृष्टिकोण से देखना शुरू किया परन्तु यूरोप की व्याकुल दशा ने ज्यूरिक स्कूल के नस्सेंट पर्वतारोहण के विकास को अलग कर दिया.
  • एक बार लियोनार्डो दा विन्ची मान्टे रोज़ा के निकट एक बर्फीले इलाके में चढ़ गए और वहां वैज्ञानिक शोध किया।
  • 1573 में, फ्रांसिस्को डी मार्ची मध्य इटली में स्थित ग्रेन सैसो की चोटी पर पहुँच गए।
  • 1642 में डर्बी फील्ड ने न्यू हैम्पशायर में माउंट वाशिंगटन का पहला आरोहण दर्ज किया, जिसे बाद में एगिओकोचूक कहा गया।
  • ज्यूरिख के कोनराड गेस्नर और जोसिअस सिम्लर ने कई पर्वत घूमे और उनका वर्णन किया और निरंतर आरोहण किया। रस्सी व बर्फ की कुल्हाड़ी के उपयोग का स्थानीय आविष्कार उस समय हो गया था। सत्रहवीं सदी में कोई पर्वतारोहण अभियान दर्ज नहीं किया गया।
  • रिचर्ड पोकॉक व विलियम विन्धम की ऐतिहासिक शैमॉनिक्स यात्रा 1741 में हुई थी और इसके पश्चात हिमनदों पर जाने का सिलसिला शुरू हो गया।
  • 1744 में टाइटस पर आरोहण किया गया, जो किसी बर्फीले पर्वत पर पहला आरोहण था।
  • मांट ब्लैंक पर आरोहण का पहला प्रयास 1875 में कुछ स्थानिकों ने किया था। 1786 में डॉ॰मिशेल पेकार्ड और जाक बालमत पहली बार शिखर पर पहुंचे। हौरैस-बेनेडिक्ट डि सौश्योर ने अगले वर्ष पहले आरोहण का आरम्भ किया।
  • 1798 में नार्वे के पर्वतारोही जेंस एस्मार्क दक्षिणी नार्वे में स्थित दोव्रेजेल श्रंखला की स्नोहेट्टा पर आरोहण करने वाले प्रथम पर्वतारोही बने. इसी वर्ष उन्होंने बीटीहॉर्न के पहले अभियान का नेतृत्व किया, जो नॉर्वे में जोतून्हायिमन के के दक्षिणी उपनगर में स्थित एक छोटा सा पर्वत है। 1810 में वे टेलेमार्क, नोर्वे स्थित माउंट गौस्ताटोप्पन के शिखर पर चढ़ने वाले पहले व्यक्ति बने.
  • 1800 में ग्रौस्स्ग्लोक्नर, 1804 में ओट्लर, 1811 में जन्ग्फ्राऊ, 1812 में फिन्स्तारार्होर्ण, तथा 1813 में ब्रायिथोर्ण में आरोहण किया गया। इसके बाद पर्यटकों ने पर्वतारोहण में रूचि दिखाई और इसके परिणाम स्वरूप अल्पाइन गाईडों का एक नया व्यवसाय अस्तित्व में आने लगा.
  • एंडीज की सबसे ऊंची चोटी अकांकागुआ (22,831 फीट) पर 1897 में पहली बार चढ़ा गया था और उत्तरी अमेरिका के चट्टानी पर्वत ग्रांड टेटोन (13,747) पर 1898 में चढ़ा गया था।
  • 1897 में अब्रुज्ज़ी के इतालवी ड्यूक ने माउंट संत एलिअस (18,009 फीट) पर विजय हासिल की, जो अलास्का और कनाडा की सीमा पर स्थित है और 1906 में पूर्वी अफ्रीका के रुवेंजोरी समूह (16,795 फीट) में मार्गरीता पर आरोहण किया। 1913 में एक अमरीकी हडसन स्टक ने अलास्का में स्थित उत्तरी अमरीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट मकिन्ली (20,320 फुट) पर विजय प्राप्त की.
  • सित्लातिपेत्ल (मेक्सिको में 5720 मीटर ऊंचा) पर प्रथम विजय 1848 में एफ. मेनार्ड व जी. रेनोल्ड्स ने पायी.
 
लगभग 1900 में पर्वतारोही
  • एक खेल के रूप में, सुनियोजित पर्वतारोहण 1854 में सर अल्फ्रेड विल्स के वेटरहोर्न के आरोहण से आरम्भ हुआ। मोंटे रोज़ा पर पहला आरोहण 1855 में किया गया।
  • एल्पाइन क्लब 1857 में लन्दन में स्थापित किया गया, तथा शीघ्र ही इसका अनुकरण ज्यादातर यूरोपीय देशों में किया गया। 1865 में एडवर्ड व्हिम्पर के मैटरहॉर्न का आरोहण अल्पाइन विजय का मुख्य समय के पास माना जाता है, अल्पाइन पद्धति का स्वर्ण युग, जिस दौरान आरोहण की कला का अविष्कार और विकास हुआ, व्यावसायिक गाइड्स का ढांचा बना और उनकी परंपरा निश्चित हुई.
  • अन्य पर्वतामालों में, पाएरेनीस का अन्वेषण आल्प्स के साथ ही चलता रहा. इसके बाद कौकासस, मुख्य तौर पर डी. डब्लू. फ्रेश्फील्ड के आरम्भ के कारण; इसे पहली बार 1868 में खोजी पर्वतारोहियों द्वारा देखा गया और 1888 में इसकी ज़्यादातर चोटियों पर चढ़ा गया।
  • साल्जबर्ग में 1881 में एडेलवाइस क्लब साल्जबर्ग की स्थापना की गई, तथा उनके समूह में 3 ऐसे सदस्य थे जो 8000 मीटर से ऊंची 2 चोटियों पर सबसे पहले चढ़े, ब्राड पीक (1957) व धौलागिरी(1960).
  • 1888 में प्रशिक्षित पर्वतारोहियों का ध्यान उत्तरी अमरीकी पर्वतों की ओर आकर्षित हुआ जब रेव. डब्ल्यू.एस. ग्रीन ने सेलकिर्क पर्वतों का अभियान चलाया। तब से यह अन्वेषण ज़ोर शोर से चल रहा है और कई अमरीकी तथा ब्रिटिश पर्वतारोहियों के दलों ने कई उच्चतम चोटियों का सर्वेक्षण किया है; पाइक्स चोटी (14,110 फुट) पर श्री ई. जेम्स व उनके साथियों ने 1820 में विजय हासिल की, तथा माउंट सैंट एलिअस (18,008 फुट) पर अब्रूज़ी के ड्यूक व उनके सहयोगियों ने 1897 में. एंडीज़ की चोटियों का अन्वेषण 1879-1880 में प्रारंभ हुआ, जब व्हिम्पर चिम्बोराजो के शिखर पर पहुंचे और वहां से इक्वाडोर के पहाड़ों का निरीक्षण किया।
चिली और अर्जेंटीना के बीच स्थित कोर्डिलेर्रा का निरीक्षण 1883 में डॉ॰ गुस्स्फेल्ट ने किया, जिन्होंने बाद में मायपो (17,270 फुट) पर विजय पायी और अकांकगुआ (22,841 फुट) पर चढ़ने का प्रयास किया। इस शिखर पर पहली बार 1897 में फित्ज़गेराल्ड अभियान सफल हुआ था।
  • बोलिविया के एंडीज़ पर्वतों का प्रथम बार अन्वेषण 1898 में एक सर विल्लियम मार्टिन कान्वे ने किया था। 1885-1889 में चिली और अर्जेंटीना द्वारा चले गए अभियान ने दक्षिणी कोर्डिलेर्रा की संरचना को उजागर किया। कान्वे ने टिएरा डेल फुएगो के पहाड़ों का दौरा किया।
  • न्यूजीलैंड के दक्षिणी आल्प्स का पहला अन्वेषण 1882 में रेव.डब्ल्यू. एस. ग्रीन ने किया, तथा उसके कुछ ही बाद न्यूजीलैंड एल्पाइन क्लब की स्थापना की गई और उनकी गतिविधियों से पर्वतों के अन्वेषण का यह कार्य आगे बढ़ा. 1895 में, मेजर एडवर्ड आर्थर फिट्ज़जेराल्ड ने इस श्रंखला की एक महत्वपूर्ण यात्रा की. टॉम फाईफ और उनके सहयोगियों ने 1894 में क्रिसमस के दिन सबसे प्रथम आओर्की /माउंट कुक पर विजय पाकर फिट्ज़जेराल्ड को इससे वंचित कर दिया था। फिट्ज़जेराल्ड उस समय स्विस गाइड मथायेस ज़ुर्ब्रिग्गन के साथ ब्रिटेन से न्यूजीलैंड चोटी पर दावा करने चला था। इस घटना से वे इतने विक्षिप्त हुए कि उन्होंने माउंट कुक पर चढ़ने से ही इनकार कर दिया और इस क्षेत्र की अन्य चोटियों पर ध्यान केंद्रित कर दिया. बाद में ज़ुर्ब्रिग्गन ने अकेले एक अनजान पहाड़ी के रास्ते इस चोटी पर विजय पायी. आज यह रास्ता आज उनके नाम से जाना जाता है।
  • आर्कटिक क्षेत्र के पर्वतों का पहला अन्वेषण 1896 और 1897 में सर डब्लू. एम्. कांवे का स्पित्स्बर्गन के पर्वतों का अभियान था।
  • 1889 में डॉ॰ हैंस मेयर द्वारा अफ्रीकन चोटी किलिमंजारो,1899 में हेल्फोर्ड जॉन मैक्काइन्दर द्वारा माउंट केन्या[13] और 1900 में एच. जे. मूरे द्वारा रुवेन्जोरी की चोटी पर फतह हासिल की गयी।
  • एशियाई पर्वतों का प्रारंभिक सर्वेक्षण ब्रिटिश साम्राज्य के आदेशों पर किया गया। 1892 में, सर विलियम मार्टिन कान्वे ने कराकोरम हिमालय का अन्वेषण किया और उसकी एक चोटी पर पहुंचे।23,000 फीट (7,000 मी॰) 1895 में अल्बर्ट ऍफ. ममरी की मृत्यु नंगा परबत पर चढ़ने का प्रयास करते हुए हुई, जबकि 1899 में डी.डब्ल्यू. फ्रेश्फील्ड ने सिक्किम के बर्फीले क्षेत्रों का अभियान चलाया। 1899, 1903, 1906 एवं 1908 में श्रीमती फैनी बैल वोर्कमन ने हिमालय में कई आरोहण किये, जिनमें नुन कुन की चोटियों में से एक (23,300 फुट) भी शामिल है। मेजर हान. सी.जी. ब्रूस. ने कई गुरखा सिपाहियों को पर्वतारोहण में प्रशिक्षित किया और उनके द्वारा कई महत्वपूर्ण अन्वेषण किए गए।
  • 1892 में जान मुयिर ने सान फ्रांसिस्को, कैलिफोर्निया में द सिएरा क्लब का संगठन किया।[14]
  • 1902 में मैनचेस्टर, इंग्लॅण्ड में द रकसेक क्लब की स्थापना हुई.
  • अमेरिकी अल्पाइन क्लब 1902 में स्थापित किया गया।
  • 1902 में, आस्कर एकेन्स्तीन व लेखक एवं रहस्यविद एलिस्टर क्राऊली के नेतृत्व में एकेनस्टाइन-क्रोव्ली अभियान चोगो री नामक चोटी पर चढ़ने का पहला प्रयास था (इस चोटी को अब के2 के नाम से जाना जाता है). ख़राब मौसम तथा कुछ दुर्घटनाओं के कारण वापस लौटने से पहले वे शिखर पहुँच चुके थे।22,000 फीट (6,700 मी॰)
  • 1905 में एलिस्टर क्राऊली ने विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा पर पहले अभियान का नेतृत्त्व किया। उनके दल के चार सदस्य एक हिमस्खलन में मारे गए थे। कुछ लोगों का दावा है की वे 21,300 फीट (6,500 मी॰)आसपास तक पहुंचे जबकि क्राऊलीकी आत्मकथा में 25,000 फीट (7,600 मी॰)उस तक पहुँचने का दावा किया गया है।
  • 1920 के दशक में कुछ ओलिम्पिक खेलों में अल्पाइन पद्धति के लिए ईनाम रखे गए, परन्तु द्वितीय विश्व युद्ध बाद इन्हें बंद कर दिया गया।[15]
  • अंग्रेजों ने 1920 के दशक में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के कई प्रयास किए. 1921 का पहला प्रयास मूलतः अन्वेषण अभियान के लिए ज्यादा था,8,320 मीटर (27,300 फीट) परन्तु 1922 के अभियान को 7 कुलियों की मौत के कारण तीसरे शिखर प्रयास में बीच में ही छोड़ना पड़ा. 1924 का अभियान और ऊँचाई तक पहुंचा लेकिन शिखर तक जाने में असफल रहा, जब इस अभियान के दो पर्वतारोही, जार्ज मालोरी तथा एंड्रयू अर्वायिन लापता हो गए।
  • 1938 में एन्द्रीआस हेक्मायर, वीग्गेर्ल वोर्ग, फ्रित्ज कैस्परेक तथा हेनरिक हर्रेर ने आल्प्स की आयिगर नामक चोटी के उत्तर पक्ष पर प्रयास में सफलता पायी. इस मार्ग को " आल्प्स की अंतिम चुनौती" (कईयों में से एक) माना जाता था।
  • 1950 के दशक में दो को छोड़ कर विश्व की 8000 मीटर से ऊंची सभी चोटियों पर पहला आरोहण किया गया, जिसकी शुरुआत मौरिस हर्जोग व लुईस लेचेनल ने 1950 में अन्नपूर्णा चोटी से की. विश्व की सबसे ऊंची चोटी नेपाल में माउंट एवेरेस्ट (8,848 मीटर) पर सर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे ने 29 मई 1953 को दक्षिणी ओर से आरोहण करते हुए विजय प्राप्त की. कुछ ही महीने बाद, हरमन बूल ने नंगा परबत पर प्रथम बार चढ़ाई की, यह चढ़ाई उन्होंने घेराबंदी की शैली में की थी और उल्लेखनीय रूप से अकेले ही उस शिखर पर विजय प्राप्त की; 8000 मीटर से ऊपर की चोटियों पर पहले प्रयास में अकेले ही शिखर पर जाने का यह एकमात्र उदाहरण है। दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची चोटी, के2(8611 मीटर) पर पहली बार 1954 में लीनो लेसेदेल्ली व आचिल्ल कोम्पानोनी द्वारा विजय पाई गयी। 1964 में, शीशापंगमा (8013 मीटर) पर भी विजय पा ली गई, जो विश्व की आठ हजार मी से अधिक की ऊंचाई वाली चोटियों में सबसे छोटी है।

अग्रिम पठन संपादित करें

  • शेरी बी. ओर्टनर, लाइफ एंड डेथ ऑन माउंट. एवरेस्ट: शार्प्स एंड हिमालयन माउंटेनियर (प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस, 1999).
  • मौरिस आइज़र्मैन और स्टीवर्ट वीवर, फॉलेन जाइंट्स: दी हिस्ट्री ऑफ हिमालयन माउंटेनियरिंग फ्रॉम दी एज़ ऑफ एम्पायर टू दी एज़ ऑफ एक्सट्रीम्स (येल यूनिवर्सिटी प्रेस, 2008). आईएसबीएन 978-0-300-11501-7

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Cox, Steven M. and Kris Fulsaas, ed., संपा॰ (2003-09). Mountaineering: The Freedom of the Hills (7 संस्करण). Seattle: The Mountaineers. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0898868289. |year= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: editors list (link) सीएस1 रखरखाव: फालतू पाठ: editors list (link)
  2. UIAA Activities. UIAA. http://theuiaa.org/activities.html 
  3. Cymerman, A; Rock, PB. "Medical Problems in High Mountain Environments. A Handbook for Medical Officers". USARIEM-TN94-2. US Army Research Inst. of Environmental Medicine Thermal and Mountain Medicine Division Technical Report. मूल से 23 अप्रैल 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 मार्च 2009. Cite journal requires |journal= (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  4. Hamilton, AJ. "Biomedical Aspects of Military Operations at High Altitude". USARIEM-M-30/88. US Army Research Inst. of Environmental Medicine Thermal and Mountain Medicine Division Technical Report. मूल से 29 जून 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 मार्च 2009. Cite journal requires |journal= (मदद)
  5. Roach, Robert; Stepanek, Jan; and Hackett, Peter. (2002). "24". Acute Mountain Sickness and High-Altitude Cerebral Edema. In: Medical Aspects of Harsh Environments. 2. Washington, DC. मूल से 11 जनवरी 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 जनवरी 2009. |location= और |place= के एक से अधिक मान दिए गए हैं (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  6. Roach, James M. and Schoene, Robert B. (2002). "25". High-Altitude Pulmonary Edema. In: Medical Aspects of Harsh Environments. 2. Washington, DC. मूल से 11 जनवरी 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 जनवरी 2009. |location= और |place= के एक से अधिक मान दिए गए हैं (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  7. Muza, SR; Fulco, CS; Cymerman, A (2004). "Altitude Acclimatization Guide". US Army Research Inst. of Environmental Medicine Thermal and Mountain Medicine Division Technical Report (USARIEM-TN-04-05). मूल से 23 अप्रैल 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 मार्च 2009.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  8. "माउंटेनियरिंग प्लेट्यू क्रियेट्स ओज़ोन "हालो" अराउंड तिबेत". मूल से 11 अप्रैल 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 अप्रैल 2011.
  9. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; स्वातंत्र्य नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  10. लिन थोर्न्दिक, रिनेसां और प्रीनेसां, जर्नल ऑफ दी हिस्ट्री ऑफ आइडियाज़, वॉल्यूम 4, संख्या 1. (जनवरी 1943), पीपी. 69-74.
  11. The Ascent of Mount Ventoux http://www.idehist.uu.se/distans/ilmh/Ren/ren-pet-ventoux.htm Archived 2011-09-30 at the वेबैक मशीन http://www.fordham.edu/halsall/source/petrarch-ventoux.html Archived 2011-05-12 at the वेबैक मशीन http://petrarch.petersadlon.com/read_letters.html?s=pet17.html Archived 2011-05-11 at the वेबैक मशीन
  12. Cameron, Ian (1990). Kingdom of the Sun God: a history of the Andes and their people. New York: Facts on File. पपृ॰ 174–175. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-8160-2581-9.
  13. Mackinder, Halford John (1900). "A Journey to the Summit of Mount Kenya, British East Africa". The Geographical Journal. 15 (5): 453–476. डीओआइ:10.2307/1774261. अभिगमन तिथि 28 मई 2007. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  14. कोहेन, माइकल पी., दी हिस्ट्री ऑफ दी सिएरा क्लब 1892-1970 (सिएरा क्लब बुक्स, सैन फ्रांसिस्को, 1988) आईएसबीएन 0-87156-732-6
  15. विच इवेंट्स आर ओलिंपिक? Archived 2011-05-11 at the वेबैक मशीन Sports Reference.com पर ओलिंपिक 2008

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें