पल्सेटिला निग्रिकेस, रेननकुलेसेइ परिवार का बारहमासी पौधा है। यह पौधा ३ से ५ इंच लम्बा होता है व इसके ढ़ीले ढ़ीले घंटी की आकार के फूल, बैंगनी रंग के होते हैं या नीले होते हैं। पौधे के ऊपर, हर तरफ लम्बे सिल्क जैसे धागे होते हैं। यह खेतों में व समतल मैदानों में व खुष्क स्थानों पर पैदा होता है। यह विंडफ्लॉवर कहलाता है, क्योंकि हवा द्वारा इसके बीज चारों ओर फैला दिए जाते हैं। इसे पेक फ्लॉवर इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह `ईस्टर' के समय पैदा होते हैं।

इस का चिकित्सा जगत से पहली बार सन् १७७१ में एन्टी वॉन स्टॉइरक द्वारा परिचय करवाया गया था। उन्होंने इसका आँखे की बीमारियों, जोड़ों के दर्दों, फालिज, मासिक स्राव बन्द हो जाने पर अकेलेपन, व त्वचा के भिन्न रोगों के इलाज में प्रयोग किया। इसका प्रयोग फिर कम हो गया था, तब सन् १८०५ में हैनिमैन ने इसके परीक्षण संग्रह को प्रकाशित करवाया। हैनिमैन ने इस दवा का प्रयोग आँखों की बीमारियों, गर्भाशय की बीमारियों में, मासिक धर्म की अनियमितताओँ, गोनोरिया (यौन रोग) के लिए किया। उन्नीसवीं सदी के अन्त तक ऐलोपैथि के चिकित्सक भी इन्हीं रोगों के लिए इस दवा का प्रयोग करने लगे।

लक्षण व उपयोग

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पल्सेटिला होम्योपैथी में प्रयोग की जाने वाली दवा है। पल्सेटिला रोगी बहुत नम्र, नाजुक, जल्दी रो से पड़ने वाला सबको प्यार करने वाला होता है। यह दवा खासकर महिलाओं को दी जाती है व भूरे गोलमोल व गुलाबी बच्चों को विशेषकर मदद करती है। फिर भी इसे महिलाओं की ही दवा माना जाता है, क्योंकि यह महिलाओं के जननांगों को अधिक प्रभावित करती है। पुरूषों को मदद करती है जिनका स्वभाव महिलाओं की तरह ही नम्र होता है। पल्सेटिला रोगी की सभी तकलीफें खुलीं हवा में कम हो जाती हैं व गर्म कमरे में व अधिक मेहनत से, शरीर गर्म हो जाने पर बढ़ जाती हैं व हल्के-२ हिलने से कम हो जाती हैं। पल्सेटिला द्वारा श्लेश्मा झिल्ली से गाढ़ा हरा व पीलापन लिये हुए स्राव निकलता है। लेकिन योनी से निकलने वाला स्राव अंगों को जला देता है। रोगी को गर्मीं बहुत लगती है इसलिए ठंड़े मौसम में भी वह हल्के पतले कपड़े ही पहनता है। इस दवा के साथ पेट व पाचन की कमजोरी व मासिक धर्म की अनियमितता जरूर बनी रहती है। लक्षण लगातार बदलते रहते हैं, दर्द अपनी जगह बदलता रहता है लेकिन अन्तर केवल लक्षणों के स्थान में आता है न कि उनकी प्रकृति में। बहुत से लक्षणों में मासिक स्राव शुरू होने पर आराम आ जाता है। पल्सेटिला में रोगी के सिर के केवल एक ही तरफ दर्द होता है, बहुत सी तकलीफें शरीर के एक ही तरफ होती हैं।

पल्सेटिला रोगी औरों पर निर्भर रहता है, दूसरों को खुश करने को उत्सुक रहता है, अति भावुक होता है व संवेदनशील होता है। मानसिक लक्षणों में नम्रता, रूआंसा रहना, उदासी व मायूसी प्रमुख है। रोगी हमेशा सहानुभूति चाहता है व औरों को भी सहानुभूति देता रहता है। चिड़चिड़ा रहता है व बहुत भावुक होता है। मूड बदलता रहता है। अजीब-२ से ख्याल बनाता रहता है। मानसिक व भावनात्मक लक्षण खाना खाने के बाद व शाम को बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं।

मासिक धर्म के पहले व दौरान सिरदर्द बना रहता है। चेहरे व सिर के एक तरफ पसीना आता है। चेहरा एसे लाल रहता है मानो बहुत अच्छा स्वास्थ हो। पल्सेटिला रोगी चूंकि दिखने में स्वस्थ लगता है, इसलिए कई बार लगता है कि रोगी अपने लक्षण बढ़चढ़ा कर बता रहा है। आंखों के कई लक्षणों में-आँखों से स्राव निकलता है,-गाढ़ा हरा व पीला स्राव। गुहेरी (श्ट्ये) के साथ गाढ़ा स्राव निकलता है। ठंड का असर आँख व नाक में बैठ जाता है, सूघने की क्षमता कम हो जाती है खासकर पुराने जुखाम में। नाक गर्म कमरे में व शाम को बन्द हो जाती है, दिन में खुब बहती रहती है व खुली हवा में भी बहती रहती है। हाज्मा धीमा पड़ जाता है, पेट खराबी के साथ पेट तना व फूला रहता है, खासकर तली चीजों खाने के बाद। गर्म भोजन व गर्म पेय व तली चीजों को खाने का दिल करता है। मुहं गला व पेट के लक्षण सवेरे के समय सबसे ज्यादा होते है। मुंह खुष्क होने पर भी प्यास नहीं लगती है। छोटे बच्चों के पेट में, तली चीजें खाने के बाद दर्द हो जाता है। बच्चों मे बहुत गैस की तकलीफ व उल्टियां रहती है। मल की प्रकृति जल्दी-२ बदलती रहती है-कोई भी दो मल एक जैसे नहीं होते है। शाम व रात को यह लक्षण बहुत तेज हो जाते हैं। पुरूषों में कनफेड़े के साथ वृषण (टेसिटिकल्स) सूज जाते हैं। गोनोरिया में जब हरा व पीला स्राव निकला है तब यह दवा बहुत कारगर सिद्ध होती है। मासिक धर्म देर से होता है, पैरों के भीग जाने से मासिकस्राव बन्द हो जाता है। मासिक स्राव दिन में ज्यादा हो जाता है। मासिक स्राव के दौरान बहुत दर्द होता है, गर्भावस्था व प्रसव के दौरान यह दवा बहुत कारगर सिद्ध होती है। प्रसव के दौरान दर्द बहुत कमजोर, अनियमित व रूप बदलते रहते है। जब रोगी को हेज्वर (हे-फीवर) हो जाता है तब बाकी के लक्षणों को आराम आ जाता है। छाती से बलगम आता है, गाढ़ा हरा व पीला बलगम निकलता है। ब्रॉन्काइटिस व निमोनिया हो जाता है। शाग को खुष्क खांसी हो जाती है जो सवेरे ज्यादा हो जाती है। जोड़ों व रीढ़ की हड्डियों मे दर्द रहता है। दर्द एक जगह से दूसरी जगह बदलता रहता है। रात मे देर से नीद आती है, सवेरे देर तक गहरी नींद में सोता रहता है, पीठ के बल हाथों को सिर के ऊपर रख कर सोता है।

रूपात्मकता खराब करने वाले कारण - गर्मी, तला हुआ भोजन, शाम के समय, गर्म कमरा, बाईं ओर या दर्द की ओर, पैर लटका कर बैठना

आराम देने के कारण - खुली हवा, गति, ठंड़ी चीजें लगाना, ठंड़ा खाना व ठंड़ा पेय जबकि प्यास भी नहीं होती है।