पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंक

पाकिस्तान के सभी पड़ोसी देशों तथा अमेरिका [1], ब्रिटेन[2], रूस आदि पश्चिमी देशों का यह आरोप रहा है कि पाकिस्तान प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विभिन्न आतंकी कार्यवाइयों में लिप्त रहा है। सन २०११ में ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान की राजधानी के पास अमेरिका द्वारा मारे जाने पर यह आरोप पुष्ट हुआ है। इसे 'आतंकियों का स्वर्ग' कहा जाता है और संसार का सर्वाधिक ख़तरनाक देश माना जाता है।[तथ्य वांछित] प्रमुख इस्लामी आतंकी संस्थाएँ जैसे लश्कर-ए-तैयबा, लश्कर-ए-ओमर, जैश-ए-मोहम्मद, हरकतुल मुजाहिद्दीन, सिपाह-ए-सहाबा, हिज़्बुल मुजाहिदीन आदि सब के सब पाकिस्तान में रहकर अपनी आतंकी गतिबिधियाँ चलाते हैं। कई मामलों में आईएसआई से इन्हें सक्रिय प्रशिक्षण एवं अन्य सहयोग मिलते हैं।

यदि 11 सितंबर 2001 को अमेरिका में वह आतंकवादी घटना घटित नहीं होती तो पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आई.एस.आई.) समर्थित अलकायदा आतंकवादियों का प्रभाव बढ़ना जारी रहता। इस विकास को किसी निश्चित सीमा में बाँधना कठिन होगा। बस, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि इसे कुछ और वर्षों तक नियंत्रित नहीं किया जाता तो उसमें इनमें से कोई या सभी क्षमताएँ विकसित हो सकती थीं-

  • चेचन्या के युद्ध को अन्य रूसी गणतंत्रों में विस्तृत किया जा सकता था।
  • कश्मीर में गतिविधियों को उस स्तर तक विस्तृत किया जा सकता था, जहाँ भारत सरकार को पाकिस्तान के साथ युद्ध करने का फैसला लेना पड़ सकता था।
  • इंडोनेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और मलेशिया में अधिक हिंसक इसलामी आंदोलन शुरू किए जा सकते थे।
  • अफगानिस्तान पर पूरी तरह कब्जा किया जा सकता था।
  • मध्य एशिया के कई भागों पर प्रभावी प्रभुत्व स्थापित किया जा सकता था।
  • विद्यमान सऊदी सत्ता पलट दी जाती या इसके कगार पर होती।
  • यूरोप, भारत, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों के कई भागों में 11 सितंबर की तरह आतंकी हमले करने की प्रभावी क्षमता स्थापित की जा सकती थी
  • परमाणु क्षमता का विकास किया जा सकता था।
  • रासायनिक और जैविक हथियार विकसित किए जा सकते थे।
  • अमेरिका तथा उसके हितों को पूरे विश्व में अधिक उच्च स्तरों पर नुकसान पहुँचाने की क्षमता विकसित की जा सकती थी।
  • मध्य-पूर्व और अन्य स्थानों पर सत्तापलट करने के लिए इसलामी दस्तों के पूर्ण विकसित प्रशिक्षण केंद्र के रूप में अफगानिस्तान को विकसित किया जा सकता था।
  • पाकिस्तान का तालिबानीकरण हो सकता था या पाकिस्तानी सेना और आई.एस.आई. के तत्त्वों के साथ पर्याप्त तालमेल किया जा सकता था।
  • मध्य पूर्व और मध्य एशियाई तेल उत्पादन तथा प्रवाहों को नियंत्रित करने के प्रयास किए जा सकते थे।
  • नशीले पदार्थों का अंतरराष्ट्रीय व्यापार स्थापित किया जा सकता था।
  • अमेरिका, पश्चिम और विश्व में अन्य कहीं रह रहे मुसलमानों को उनकी आय का एक हिस्सा इसलामी कोषागार में देने के लिए आतंकित किया जा सकता था।
  • विश्व पूँजी-प्रवाह को प्रभावित करने के लिए कई नकली कॉरपोरेशनों द्वारा विश्व की चुनिंदा कंपनियों को टेक-ओवर किया जा सकता था।
  • बांगलादेश का जेहादीकरण किया जा सकता था।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. International Terrorism: Threats and Responses: Hearings Before the Committee on the Judiciary By United States Congress House Committee on the Judiciary, ISBN 0-16-052230-7, 1996, pp. 482. Overview of State-Sponsored Terrorism 30 April 2001 U.S. State Department
  2. "UK says Pakistan must stop infiltration across LoC". Daily Times. 29 May 2002. Archived from the original on 4 April 2006. Retrieved 20 August 2013.

इन्हे भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें