जीवों या पौधों के वातावरण, एक दूसरे से सम्बन्ध या आश्रय के अध्ययन को परिस्थितिकी (ecology) कहते हैं। पौधे समाज में रहते हैं। ये वातावरण को बदलते हैं और वातावरण इनके समाज की रूपरेखा को बदलता है। यह क्रम बार-बार चलता रहता है। इसे अनुक्रमण (succession) कहते हैं। एक स्थिति ऐसी आती है जब वातावरण और पौधों के समाज एक प्रकार से गतिक साम्य (dynamic equilibrium) में आ जाते हैं। बदलते हुए अनुक्रमण के पादप समाज को क्रमक (sere) कहते हैं और गतिक साम्य को चरम अवस्था (climax) कहते हैं। किसी भी जलवायु में एक निश्चित प्रकार का गतिक साम्य होता है। अगर इसके अतिरिक्त कोई और प्रकार का स्थिर समाज बनता हो, तो उसे चरम अवस्था न कह उससे एक स्तर कम ही मानते हैं। ऐसी परिस्थिति को वैज्ञानिक मोनोक्लाइमेक्स (monoclimax) विचार मानते हैं और जलवायु को श्रेष्ठतम कारण मानते हैं। इसके विपरीत है पॉलीक्लाइमेक्स (polyclimax) विचारधारा, जिसमें जलवायु ही नहीं वरन् कोई भी कारक प्रधान हो सकता है।

पौधों के वातावरण के विचार से तीन मुख्य चीजें जलवायु, जीवजन्तु तथा मिट्टी हैं। आजकल इकोसिस्टम विचारधारा और नए नए मत अधिक मान्य हो रहे हैं। घास के मैदान, नदी, तालाब या समुद्र, जंगल इत्यादि इकोसिस्टम के कुछ उदाहरण हैं। जल के विचार से परिस्थितिकी में पौधों को (१) जलोदभिद (Hydrophyte), जो जल में उगते हैं, (२) समोद्भिद (Mesophyte), जो पृथ्वी पर हों एवं जहाँ सम मात्रा में जल मिले, तथा (३) मरुद्भिद (जीरोफाइट), जो सूखे रेगिस्तान में उगते हैं, कहते हैं। इन पौधों की आकारिकी का अनुकूलन (adaptation) विशेष वातावरण में रहने के लिये होता है, जैसे जलोद्भिद पौधों में हवा रहने के ऊतक होते हैं, जिससे श्वसन भी हो सके और ये जल में तैरते रहें।

जंगल के बारे में अध्ययन, या सिल्विकल्चर, भी परिस्थितिकी का ही एक भाग समझा जा सकता है। परिस्थितिकी के उस भाग को जो मनुष्य के लाभ के लिये हो, अनुप्रयुक्त परिस्थितिकी कहते हैं। जो पौधे बालू में उगते हैं, उन्हें समोद्भिद कहते हैं। इसी प्रकार पत्थर पर उगनेवाले पौधे शैलोद्भिद (Lithophyte) तथा अम्लीय मिट्टी पर उगनेवाले आग्जीलोफाइट कहलाते हैं। जो पौधे नमकवाले दलदल में उगते हैं, उन्हें लवणमृदोद्भिद (Halophyte) कहते हैं, जैसे सुन्दरवन के गरान (mangrove), जो तीव्र सूर्यप्रकाश में उगते हैं उन्हें आतपोद्भिद (heliophyte) और जो छाँह में उगते हैं, उन्हें सामोफाइटा कहते हैं।

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